जिंदगी की राहें

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Saturday, December 16, 2017

स्मोकिंग इज इंज्यूरियस टू हेल्थ


जा रहा था अकेले
नहीं थी कोई फिक्र, नहीं हो रहा था लेट
था समय काटना, तो बस एक ढाबे पर
ली, सिगरेट की डब्बी
था उस पर बना भयानक सा चित्र
था लिखा भी
"स्मोकिंग इज इंज्यूरियस टू हेल्थ" !!

पढ़ा, देखा, व डरा भी
फिर भी स्टाइल से एक सिगरेट निकाली
माचिस की तीली से सुलगाई
गोल हुआ मुंह, बना धुएं का छल्ला
छल्ले में मौत का जिन्न !!
लेकिन साथ में था अंदर तक पहुँचता तेज लहर
ठीक वैसे जैसे महसूसा हो पहला स्पर्श !! इनक्रेडिबल !!

याद है न तुम्हे भी
हर कदम दर कदम खुद ही आगाह करते थे
पर, खुद ही उँगलियाँ थामे आगे भी बढ़ते थे
ये प्यार नही आसां कह कर
फिर, आसानी से छुड़ा ली थी तुमने ही अंगुलिया
जलते सिगरेट सा वजूद बना दिया न!!
अब जल रहा हूँ, जला रहा हूँ
कुछ राख कुछ अधजली सी सूरत
रह गए शेष
सुपुर्दे खाक की जिम्मेवारी तुम्हारी !!


~मुकेश~


Thursday, November 30, 2017

सत्रहवीं सालगिरह



मई 2000 की बात थी, जब पहली बार अपने शहर में, भैया के साथ अंजू जिस लखोटिया कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में जॉब करती थी, वहां मिलने गया था | अर्रंजड मैर्रेज का एक पार्ट था, वहां से निकले तो मैंने सहमते हुए भैया को कहा - पसंद नहीं आई पर उससे से भी तो पूछ लो ! उन्होंने मई की गर्मी में कोल्ड ड्रिंक पिलवाते हुए इतना थीसिस दे दिया कि पंद्रह मिनट के अन्दर ही सबसे खुबसूरत लगने लगी, और फिर करीब छः महीने हमने भी लबालब रोमांस के छौंक वाला जीवन जिया| अंततः 30 नवम्बर 2000 को दांपत्य सूत्र में बांध दिए गए थे 

सत्रह वर्ष हो गए, अपने उच्छ्रिन्ख्लता और उसके गंभीरता के गठबंधन को सहेजे जिए जा रहे हैं | बहुत सारे यादगार पल रहे, बहुत सारे ऐसे भी पल आये जिसने दर्द ही दिया और खूब दिया ! एक यादगार पल ये भी था कि पहली एनिवर्सरी हमने अपने बड़े बेटे के साथ मनाई

वर्ष 2010 को एनिवर्सरी का ही दिन था, दस वर्ष होने के ख़ुशी थी, कुछ अभिन्न लोगो को बुला भी रखा था, शाम के लिए अधूरी तैयारी सुबह ही हो चुकी थी, मंदिर गए फिर अंजू को छोड़ा और फिर ओफ्फिस बाइक से जा रहे थे ! तुगलक रोड थाने के पास एक दम साफ़ सुथड़े सड़क पर एक शराबी बीच सड़क पर लडखडाते हुए जा रहा था, और पता नहीं मेरे दिमाग को क्या हुआ, खाली सड़क में सिर्फ वही दिखा गले मिलाने को | सीधा बाइक लेजाकर उसको ठोक मारा, वैसे तो बाइक की स्पीड भी बेहद कम ही थी, पर हम दोनों गिरे, और मैं गिरते ही बेहोश हो गया | दो तीन मिनट बाद होश में आते ही पहले तो मैंने उसको ढूंढा क्योंकि धक्का तो मैंने मारा था, गलती मेरी ही थी | पर भाई साहब दूर लडखडाते हुए जा रहे थे| अब मैंने खडा होने की कोशिश की, तो मेरा टखना अन्दर की ओर एकदम से मुड़ गया, समझ ही नहीं आया की क्या हुआ, हथेली में भी बेहद पेन हो रहा था | कुछ लोग आ चुके थे | एक बार फिर से आराम से उठा, तो दर्द के बावजूद उठ गया, बाइक किसी व्यक्ति ने उठा दी, अब बाइक स्टार्ट करने के लिए जैसे ही किक मारी, उई अम्मा, फिर से टखना गजब तरीके से बाहर की ओर मुड़ गया | पुलिस भी आ गयी थी, मोबाइल से अंजू को बुला चुका था| फिर किसी भले आदमी ने घर पूछा, घर भी मेरा नजदीक ही था, तो उसने मुझे पीछे बिठा कर मेरी बाइक से घर पहुंचा दिया | दर्द जान निकाल रही थी, करीब एक घंटे बाद ओर्थोनोवा हॉस्पिटल पहुंचे, पता चला टखने का फिलामेंट कट गया और दुसरे तरफ के हाथ की हड्डी बुरी तरह से टूट गयी, जिसमें रोड डालेगा | इतना सुनकर मैडम को अब चक्कर आने लगा, समझ नहीं आ रहा था कौन किसका ध्यान रखे | तो एक यादगार एनिवर्सरी का दिन वो भी रहा |

कल अपनी एनिवर्सरी है
और आज रात
चलचित्र के भांति
सामने से गुजर रहा
तुम्हारा ये सत्रह साल का साथ !
पहली बार तुम्हारे ही ऑफिस मे मिलना
दूसरे बार एक साथ रिक्शे पर सफर
तीसरे बार इंगेजमेंट पर स्पर्श
और फिर चौथी, पाँचवी ... अंतहीन
सफर व साथ ... अबतक ... !!

जब भी मैं याद करता हूँ तुम्हारा प्यार
तो याद आता है तुम्हारा गुस्सा
पर साथ में मेरे लिए
तुम्हारा केयर व पोजेसिवनेस
कई बार देखा व परखा
जब भी हमारे में होते हैं झगड़े
तुम रैक पर रखे लकड़ी के लव वर्ड्स के चोंच को
लगती हो मिलाने
घर के ईशान कोण पर
थोड़ा पानी का रखना
ताकि दाम्पत्य जीवन रहे खुशहाल !

याद है मुझे
तुम्हें नहीं था पसंद
चाय, चाकलेट, बिस्किट आदि
और भी बहुत कुछ !
पर आज वो सब है पसंदीदा
क्योंकि तुम्हें चाहिए बस मेरा साथ !
याद है मुझे वो दिन भी
जब हाथ-पैर दोनों तुड़वा बैठा था
और तुम दिखाना चाह रही थी साहस
पर डाक्टर के सामने
तुम्हारी बेहोशी के साथ दिखी तुम्हारी
बेचैनी और प्यार !

ओह 12 बजने वाले हैं
और देखो हम दोनों की मोबाइल का अलार्म
बता रही है
हमें एक दूसरे को करना है विश
क्योंकि हैं एक दूसरे के लिए अहम !
सदैव रहेंगे न !!
___________________________
आज हमारे शादी की सालगिरह है, आप सबके शुभकामनाओं की जरूरत है 






Saturday, November 18, 2017

टॉफ़ी



कुछ टॉफियों के रैपर से
निकाल कर गटक ली थी
लाल पिली नारंगी टॉफियाँ

फिर सहेज लिए रैपर्स, जिसमे था
स्वाद, खुशियाँ, प्यार

आज पुराने किताबों से झांकते
ये चटक रंगों के रैपर्स
एक पल को बोल गये ''धप्पा"

पलकें झपकाते हुए
मुस्काते चेहरे के साथ
हूँ अब तक विस्मृत !!

~मुकेश~



Tuesday, October 31, 2017

~करेले~


हरी लताओं से लटके करेले
सुर्ख पीले फूलों के साथ
खूब चटकीले व गड्डमगड्ड सी सतह वाले
हरे-हरे करेले

दिखते तो हैं ऐसे,
जैसे कुछ लम्बे व कुछ गोल
दिवाली की रात को
अंधियारे को दूर करने के लिए
लटके हो तारों में
हरे-हरे खिलखिलाते
तारों से प्रस्फुटित प्रकाश!

पर,
मनभावन दिखने वाली
हर चमकती वस्तु
कहाँ होती है सुहानी
होंठो पर रखने भर से
शायद अन्दर का कड़वापन
दूर कर देने को रहती है
उतावली

नहीं कर पाते उदरस्थ
पर है याद कि अम्मा समझाती
पढ़े हो न
"निंदक नियरे राखिये
आँगन कुटीर छवाय
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय"

खाओ तो कड़वा
पर कड़वापन होता है
रक्त प्रवाह को सहज करने का
एक उपाय।
नमकीले पानी से धुलकर
इन्द्रधनुष दिखाना
है इसका सहज स्वाभाव
मने
हर कड़वेपन में होता है
जिंदगी जीने का सच्चा फलसफा !

भीतरी कड़वाहट को निगलना
फिर घोंटने का उतावलापन
है बड़ी समझ और हिम्मत का काम
तभी तो कहते हैं न
कभी अनजाने कभी जानबूझ कर
मज़बूरी का कड़वा घूँट
देता है सार्थक दिशा जीवन के प्रवाह का

~मुकेश~




Wednesday, October 18, 2017

कुल्हड़



उफ़ ये सर्दी भी क्या न करवाए !
सर्द आहों से निकलती ठंडी वाष्प व
चाय से भरे कुल्हड़ से निकलती गरम भाप
दोनों गडमगड हो कर
कुछ अजब गजब कलाकृति का कर रहे निर्माण
बनते रहे कुछ भी
हम तो बस, तुमको ही पायेंगे
धुएं में भी .........
चेहरा तुम्हारा बनायेंगे
पानी, पत्थर पर कई बार बना चुके
अबकी धुएं में बलखाती बालों वालीं मल्लिका
कुछ अजूबा ! आश्चर्यजनक है ना
ये प्रतिबिम्ब तुम्हारा !
याद है न
तुम्हारे चश्मे पर
ठन्डे वाष्प की करके फुहार
कर अँगुलियों से कारीगरी
बना देते थे प्रेम प्रतीक
वही उल्टा तीन और मिला हुआ छोर
फिर कहते
एक बार इन प्रेम भरी नज़रों से देख लो न !
तुम्हारी छेड़खानियाँ भी तो कम न थी
मूँद कर खरगोश सी चमकती आँखों को
कहती तुम तो दिखते ही नहीं
मोतियाबिंद हो गया मुझे ...
और फिर पल भर में
चश्मा हटा
डाल आँखों में आँख धीरे से कह उठती ...
ये लो झाँक कर देख लो
नजर मेरी .........प्रेम भरी !!
अब तो भाप से
संघनित हो
बन कर ओस के कण
छितर कर रह गया प्रेम ......
तुम्हारा मेरा !!
यादें प्रेम सिक्त हों तो
सर्दियाँ भी ख़ुशी भरती हैं..!
~मुकेश~


Saturday, September 23, 2017

गुड बाय 'पापा'



'पापा' तो होते है 'आसमान'
एक बेहद संजीदा अभिव्यक्ति
कहती है ये 
फिर अंतिम बार उनसे मिलने
समय के कमी की वजह से
कर रहा था हवाई यात्रा
बेहद ऊंचाई पर था शायद
पड़ रहा था दिखाई
विंडो के पार दूर तलक
फटा पड़ा था आसमान
बिखड़े थे बादलों के ढेर इधर-उधर
पापा दम तोड़ चुके थे।
तेज गति से भाग रही थी ट्रेन
उसके स्लीपर कूपे में बैठा
द्रुत गति से भाग रहा था अशांत मन
टाइम फ़्रेम को छिन भिन्न कर
बना रहा था रेतीली मिट्टी के घरौंदे
पर, गृह प्रवेश से पहले
टूट चुके थे ख़्वाब
मिट्टी में ही तिरोहित हो चुके थे पापा
ट्रेन फिर भी भाग रही थी
अपने सहज वेग के साथ।
अब ऑटो से चल पड़ा
रेलवे स्टेशन से पापा के करीब तक
खटर-पटर करता रिक्शा
उछल कूद कर रही थी 
सुषुप्त संवेदनाएं,
सड़कों ने चिल्ला कर बताने कि
की कोशिश
स्मृति पटल पर चल पड़ी
पापा की 'मोपेड'
उनके कमर पर हाथ था मेरा।
मर चुके थे पापा
फिर भी उनकी ठंडी हथेली ने
भर दी थी गर्माहट
बेशक आंखे छलछलाई
पर रो नहीं सका एक भी पल
कंधे पे था स्नेहसिक्त हाथ
छोटे भाई का,
कहना चाहता था कुछ
लेकिन कुंद हो गयी आवाज
रुआंसा हो कह पाया
बस
गुड बाय 'पापा'

~मुकेश~

दैनिक जागरण, पटना में प्रकाशित 

Tuesday, August 22, 2017

अपाहिज प्रार्थना



"या देवी सर्वभूतेषु...."
गूंजती आवाज के साथ
जैसे ही शुरुआत की प्रार्थना की
पर नाद अनुनाद में बंध कर
बिना किसी मुकम्मल गूँज के
धप्प से दब कर रह गयी प्रार्थना!
बेशक रही हो
अंतर्मन से निकली आवाज
पर, सिसकती रुंधी हुई
किसी दूर बैठी लड़की की आवाज के
हल्के से रुदन में खो गयी प्रार्थना!
ऐसे लगा, प्रार्थना ने की हो कोशिश
सफ़र कर देवियों तक पहुँचने की
पर पगडण्डियों से हाइवे/ मेट्रो तक
जाने की दौड़ में
वाहन के पायदान पर फिसल गयी प्रार्थना!
अपाहिज हो कर बेचारी..
ऐसे में कचरा ढोने वाले
म्युनिस्पेलीटी के ट्रक पर
उछल कर बैठ ही गयी प्रार्थना!
न ही हवाओं ने दिया साथ
न ही संघनित बादल ही ले जा सके
खुद के साथ दूर तलक
बहुत बुरा हुआ, बादलों ने बरस कर
सूखी मिटटी में खो दी
सच्चे दिल की प्रार्थना!
ये इन्कार कुछ कहता है शायद
मत करो सिर्फ प्रार्थना!!
समझ गये न, क्या कह रही है देवियाँ !!
~मुकेश~

लोकजंग में प्रकाशित कविता "एक्वारजिया"

Tuesday, August 1, 2017

भीगती कविता


काश मेरे शब्द होते
बारिश की बूंदों से निश्छल
जो भावों के रूप में संघनित हो कर
हरहरा कर बरस पड़ते
और, बस बन जाती ताजगी भरी 
मासूम सी कविता!
काश मेरे उदर के बदले
दिमाग में गुडगुड करते अक्षर
फिर एंटासिड की गोली की तरह
सहेजे हुए उसके प्रेम सिक्त बोल
उन अक्षरों को बना देती
प्रेम कविता !
काश तुम्हारा सौंदर्य, लावण्य,
जिसको देख कर मेरे कलम में
भर जाती
सन-स्क्रीन लोशन व टेलकम पाउडर
ताकि कागज़ पर उतर पाती
यौवन के रस को छलकाती
बेहतरीन सी कविता !!
काश
कोई तो वजह होती
ताकि बन पाती
तुम्हें समर्पित करने हेतु
एक खास कविता !
____________________
काश !


😊💐

Tuesday, July 25, 2017

बारिश की बूंदें और स्मृतियाँ


थोडा बुझा सा मन और
वैसा ही कुछ मौसम
धुआँसा उज्जड कलपता
शुन्य आसमान पर टिकी नजरें
जिंदगी मृगतृष्णा सी
झांकती खिड़की से
उम्मीद हरियाली के लहलहाने की

और और,
ठंडी हवा के झोंके के साथ
जागी, उम्मीद बरसात की
उम्मीद छमकते बूंदों की
उम्मीद मन के खिलखिलाने की
होने लगी स्मृतियों की बरसात
मन भी हो चुका बेपरवाह
सुदूर कहीं ठंडी सिहरन वाली हवा
बह चले थे शायद मंद मंद
सूखी-सूखी धूल धूसरित भूमि
सौंधी खुश्बू बिखेरती पानी की बूंदे
टप-टप की म्यूजिक के बेकग्राउंड के साथ
छिछला बरसाती पानी
सूरज की उस पर पड़ती सीधी किरणें
परावर्तित हो, दे रही
सप्तरंगी चकमक फीलिंग !
गोल गोल गड्ढों में
बिखरे स्टील के थाली से
चमकते जल
और उसमे पल-पल
बदलती तस्वीरें
एकदम से आ ही गयी एक
चंचल शोख मुस्कराहट

क्योंकि
एक थाली में था मैं निक्कर टीशर्ट में
तो, दुसरे में जगमगा रही थी तुम
रेनबो कलर वाले फ्रॉक में
आज नहीं पहना था तुमने लाल फ्रॉक !
नकचढ़ी तुम, अकडू मैं
मुस्कुराते मन ने कहा तुम्हे 'धप्पा'
और खेलने लगे आइस-पाइस
तो कभी उसी पानी में मारा बॉल
खेला 'पिट्टो'
ठंडा बरसाती पानी ने बरसा ही दिया मन
खिलखिलाया आसमान
सहेजी स्मृतियों के साथ.......!

ओ बारिश की बूंदों
फिर बरसना
खोलूं खिड़की या दरवाजा
करूँगा इन्तजार
तुम्हारा और उस
नकचढ़ी का भी !
आओगी न!
ओ बारिश की बूंदें और स्मृतियाँ !

~मुकेश~



Tuesday, July 4, 2017

पैकेज शानदार व्यक्तित्व का


चाहिए मानवीयता का विटामिन
दयालुता का प्रोटीन
पुरुषार्थ से लबालब कार्बोहाईड्रेट
और
फिसलती हुई प्यारी सी वाणी की हो वसा भी !
ताकि सबको घोंट पीट कर
बना पाऊं खुद का
एक सम्पूर्ण पैकेज
कुछ शानदार व्यक्तित्व सा !!
काश इन उपरोक्त
संवेदनाओं से परिपूर्ण
मानवीय पोषक पदार्थों के छोटे पैकेट
होते मार्केट में उपलब्ध
हम
लो मीडियम इनकम ग्रुप वाले लोगो के लायक
तो सच्ची !!
खरीद लाता
हरेक का एक दो पैकेट
अपने कमियों के हिसाब से
किसी डाक्टर के सलाहानुसार
फिर बस, बना कर होम्योपैथी दवा सी खुराक
पुर्जे में छोटी बड़ी गोलियां और पाउडर
सुबह नाश्ते से पहले, ब्रश के बाद
दोपहर खाने के बाद, पानी के साथ
और
रात, सोने के बाद, सपने देखने से पहले !
फिर कुछ हो ऐसा
कि, कहे सब, देखो
आमूलचूल, अभूतपूर्व परिवर्तन
हो चला इसमें !!
अब नहीं है शिकवा या गिला किसी को !
सुनो !
बस, ये पता तो बता दो
कहाँ मिलेगा ये
संवेदनाओ से परिपूर्ण पोषक तत्व !!

इन्तजार है !!

Friday, June 30, 2017

प्रेम का भूगोल



आज अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग दिवस के तौर पर हम सभी ब्लॉगर मना रहे हैं , तो ये प्रेम कविता झेलिये :)

भौगोलिक स्थिति का क्या प्रेम पर होता है असर ?
क्या कर्क व मकर रेखा के मध्य
कुछ अलग ही अक्षांश और देशांतर के साथ
झुकी हुई एक ख़ास काल्पनिक रेखा
पृथ्वी के उपरी गोलार्ध पर मानी जा सकती है ?
ताकि तुम्हारे उष्ण कटिबंधीय स्थिति की वजह से
ये आभासी प्रेम का तीर सीधा चुभे सीने पर
फिर वहीँ मिलूँगा मैं तुम्हारे सपने में
आजाद परिंदे की मानिंद
और हाँ, वो ख्व़ाब होगा मानीखेज
उस ख़ास समय का
जब सूर्य का ललछौं प्रदीप्त प्रकाश
होगा तुम्हे जगाने को आतुर
हलके ठन्डे समीर के कारवां में बहते हुए
तुम्हारे काले घने केश राशि को ताकता अपलक
उसमें से झांकता तुम्हरा मुस्कुराता चेहरा
कुछ तो लगे ऐसा जैसे हो
बहती गंगा के संगम सा पवित्र स्थल
और खो चुके हम उस धार्मिक इह लीला में
क्या संभव है हो एक अजब गजब जहाज
जो बरमूडा ट्रायंगल जैसे किसी ख़ास जगह में
तैराते रहे हमें
ताकि ढूंढ न पाए कोई जीपीएस सिस्टम
बेशक सबकी नजरें कह दे कि हम हो चुके समाधिस्थ
पर रहें हम तुम्हारे प्रेम के भूगोल में खोएं
एक नयी दुनिया बसायें
अपने ही एक ख़ास 'मंगल' में
काश कि तुम मिलो हर बार
मेरे वाले अक्षांश और देशांतर के हर मिलन बिंदु पर
काश कि
हमारे प्रेम का ध्रुवीय क्षेत्र सीमित हो
मेरे और तुम्हारे से ....

~मुकेश~


Wednesday, June 21, 2017

~पप्पा~



बेवजह मुस्कुराते हुए पापा
इनदिनों खिलखिलाते नहीं हैं
आजकल बिना गुस्सा किये
बच्चो से इतराते हुए
नकार देते हैं, हम सबकी कही बातों को
शायद वे ऐसा करके
अपने दर्द को जज्ब करते हुए
दूसरे पल ही देखते हैं नई जिंदगी

सबसे प्यारा लगता है,
जब वो मम्मी के बातों को करते हैं अनसुना
फिर मम्मी के चिल्लाने पर तिरछी हंसी के साथ निश्छल भाव से देखते हैं ऐसे
जैसे कह रहे हों,
बेवकूफ, मैं तो अपनी ही चलाऊंगा ताजिंदगी
बेशक तुम्हे लगे बात मान लूंगा

खाते हुए खाना या पीते हुए दूध
अक्सर गन्दा करते हैं शर्ट,
फिर होती है उनकी जिद
पल में बदलने की
पापा को अब भी पसन्द है
झक्क सफेद बुशर्ट पहनना
पापा नहीं चाहते कभी भी
बूढ़ा कहलवाना

मम्मी के इतना भर कहते ही कि
बूढ़े हो गए हो
चाहते हैं तन कर खड़े होने की करें कोशिश
आंखों में बचपना कौंधता है
या शायद अपनी खूबसूरत जवानी

बाहर से कमरे में ले जाते समय
चौखट पकड़ कर
मचाते हैं जिद
कुछ देर और....
शायद खुले आकाश से रहना चाहते हैं पापा
पापा हम सबके आसमान ही तो हैं

अपने छोटे बेटे को देखते ही
आंखे छलछला जाती है इनकी,
क्योंकि उम्र केयर मांगती है
जो बेहद संजीदगी से पूरा कर पाता है वो
पर बड़े बेटे से
कभी भी बहुत करीब न होकर भी
उसके दूर जाने की कसक
नम कर जाती है पलकें इनकी ।

जिंदगी हर पल नम होती हुई बताती है
पापा आपका जीना,
बताता है अभी मुझमे भी बचपना है
थोड़ा बहुत बाकी

इनदिनों आपके बचपन में
ढूढने लगा हूँ अपना बुढापा
दिन बेहद तेजी से गुजर रहा है पापा।

जीते रहिये पप्पा 😊

~मुकेश~

Friday, June 16, 2017

टिफिन


एयरटाइट प्लास्टिक टिफिन के
डब्बे का
लिड युक्त लीक प्रूफ ढक्कन
से बंद होना
इस आश्वस्ति के साथ 
कि संजोयी गयी है ताज़गी
तभी तो
भोजन की सोंधी सोंधी ख़ुशबू को
संजोये रखता है
ये कलरफुल डब्बा
अपने अन्दर
डब्बे के अन्दर ही
रोटियां तो कभी परांठे
लिपटी होती है
सिल्वर फॉयल में
जैसे किसी ने बाहों में भर कर
फूंक रखी हो ताजगी
साथ ही होती है
सब्जी की अलग कटोरियाँ
सलाद व अचार जैसा भी कुछ
ऐसे लगता है,
जैसे प्यार का बहता स्वरुप !!
करीने से रखा एक चम्मच भी
माने, एक परिवार जिसके
कुछ सदस्य हैं साथ साथ
अलग अलग रंग रूप में
दोपहर में
जैसे ही खुलता है
ये ढककन और हटती है फॉयल
खुशबू भोजन की
खुशबू प्यार की
खुशबू मेहनत की
खिलखिला कर कह उठती है
प्रेम का रास्ता
बनता है
उदर के माध्यम से ही
हर बार
पेट भर जाने के बाद
अँगुलियों से आती है खुशबू
तुम्हारे प्यार की
बस
प्रेम और पेट की भूख बनी रहे !
एक अजूबा सा ख्याल टिफिन के डब्बे से !!

पुरवाई पत्रिका में मेरी कविता

Tuesday, May 23, 2017

स्किपिंग रोप: प्रेम का घेरा





स्किपिंग रोप
कूदते समय रस्सी
ऊपर से उछल कर
पैरों के नीचे से
जाती है निकल 
जगाती है
अजब सनसनाती सिहरन
एक उत्कंठा कि वो घेरा
तना रहे लगातार
एक दो तीन ... सौ, एक सौ एक
इतनी देर लगातार !!
बैलेंस और
लगातार उछाल का मेल
धक् धक् धौंकनी सी भर जाती है ऊर्जा!
जैसे एक कसा हुआ घेरा
गुदाज बाहों का समर्पण
आँखे मूंदें खोये
हम और तुम !!
उफ़, सी-सॉ का झूला
अद्भुत सी फीलिंग
साँसे आई बाहर, और रह गयी बाहर
ऐसे ही झूलते रहा मैं
तुम भी ! चलो न !
फिर से गिनती गिनो, बेशक ...
बस पूरा मत करना !!
काश होती वो रस्सी थामे तुम और
.....और क्या ?
मैं बस आँखे बंद किये बुदबुदाता रहता
एक दो तीन चार पांच...............निन्यानवे ...........एक सौ तेरह ...!!

Thursday, May 11, 2017

लजाती भोर



सुखी टहनियों के बीच से
ललछौं प्रदीप्त प्रकाश के साथ
लजाती भोर को
ओढ़ा कर पीला आँचल
चमकती सूरज सी तुम
मैं भी हूँ बेशक बहुत दूर
पर इस सुबह के
लाल इश्क ने
कर दिया मजबूर
तुम्हे निहारने को !!
_______________
सुनो ! चमकते रहना !


Saturday, April 22, 2017

जिंदगी में फड़फड़ाता अखबार

दो न्यूज पेपर - एक हिंदी व एक अंग्रेजी के
एक रबड़ में बंधा गट्ठर
फटाक से मेरे बालकनी में
गिरता है हर सवेरे
मुंह अँधेरे !

हमारी जिंदगी भी
ऐसे ही हर दिन सुगबुगाती
लिपटे चिपटे चद्दरों में बंधे
चौंधाई आँखों को खोलते हुए
अखबार का रबड़ हटाते हैं
और छितरा देते हैं बिछावन पर
जैसे स्वयं छितर जाते हैं
चाय से भरे कप के साथ

हमारे बीच का संवाद
रहता है
कभी हिंदी अखबार सा
प्रवाह में पिघलता हुआ तो
कभी अंग्रेजी सा
सटीक व टू द पॉइंट
आदेशात्मक

हर नए दिन की शुरुआत
अखबार के हेडिंग की तरह
मोटे मोटे अक्षरों में
बिठाते हैं मन में
आज फलाना ढिमका कार्य
जरूर सलटा दूंगा
और देर नही हो सकता है अब!

पर
कुछ मर्डर मिस्ट्री वाले न्यूज़ की तरह
कोई न कोई
अलग व अजीब सा कार्य
टपक ही पड़ता है हर दिन
तो, अख़बार के संपादकीय की तरह
होता है अहम
जिंदगी में भी अर्द्धांगिनी के
दिशा निर्देश!

मन तो भागता है
साहित्यिक पुनर्नवा या
स्पोर्ट्स पेज पर
लेकिन दाल चावल की महंगाई
व कम आमदनी
खोल देता है
व्यापारिक परिशिष्ट या
बिग बाजार जैसे सेल के प्रचार का पृष्ठ

मैन विल बी मैन
बेशक न पढ़े अंग्रेजी समाचार पत्र
पर उसके सिटी न्यूज और
कलरफुल पेज थ्री
चेहरे पर भरते हैं रंग

तो अखबार और जिंदगी
दोनों ही कभी होते हैं तह में
सब कुछ परफेक्ट
तो कभी फड़फड़ाते दोनों
रहते हैं गडमगड

लेकिन एक अंतिम उम्मीद
जिंदगी रद्दी अख़बार सी
कबाड़ न बन कर रह जाए
बस अंत होने से पहले
बेशक ठोंगे या पैकिंग मटेरियल बन कर ही
उपयोगी बन दिखाएँ

काश मेरी जिंदगी ख़त्म हो कर भी
रीसाइकल्ड हो जाए

~मुकेश~



Tuesday, April 11, 2017

APN न्यूज़ पर म्यूजिकल शो "मेरा भी नाम होगा"


"टेक रीटेक, साउंड कैमरा म्यूजिक, हाफ स्केल ऊपर-नीचे"

हाँ तो कुछ ऐसे शब्दों से वास्ता पड़ा, जब APN न्यूज़नेटवर्क के नोएडा सेक्टर 68 स्थित शानदार स्टूडियो में उनके आगामी म्यूजिकल रियलिटी शो "मेरा भी नाम होगा" के पहले राउंड के लिए होने वाले सुरोत्सव हेतु मैं भी एक क्रिटिक ज्यूरी के रूप में उपस्थित था |

APN विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और पूर्वांचलके दर्शकों के बीच अपने ख़ास जुड़ाव के लिए उस क्षेत्र के दर्शकों के लिए बेहद लोकप्रिय श्रेणी के टीवी चैनल में अपना स्थान रखता है | APN खबर के साथ साथ अन्य सांस्कृतिक माध्यम के द्वारा जनजागृति में अपना योगदान बराबर देता आया है | और इसी अभियान के एक कड़ी के रूप में इस न्यूज़नेटवर्क ने अब पूर्वांचल की माटी की सौंधी सुंगंध वाले भोजपुरी लोकसंगीत के माध्यम से भी जनचेतना जगाने हेतु एक अनूठे प्रयास के तौर पर म्यूजिकल रियलिटी शो "मेरा भी नाम होगा" लेकर आयी है | जिसमे म्यूजिकल धुनों के अलावा बिरहा, चैता, कजरी, छठ, निर्गुण गायकी, भजन आदि के माध्यम से सामाजिक सरोकारों से जुड़े विविध कार्यक्रमों पर प्रतिभागियों से ये अपेक्षा की जाएगी की वो सुरों में अपनी बात रखें |



गायिकी के क्षेत्र में बड़ा नाम तृप्ति शाक्या ने जैसे ही इस राउंड का आगाज फिल्म काला पानी के गीत "नजर लागी राजा तोरे बंगले पर....." के साथ दमदार और सुरीली प्रस्तुति के साथ शुरू किया, एक समां बंधता चला गया जो पूरे समय जानदार तरीके से सबकी मेहनत और सुरों को समेटे दीखता रहा | कार्यक्रम के जज के रूप में तृप्ति शाक्या, म्यूजिक डायरेक्टर शेखर त्रिपाठी, स्टैंड अप कामेडियन सिद्धार्थ सागर और दर्शन जी के रूप में विराजमान थे और हर बार इनके कमेंट्स सुनकर ऐसा लग भी रहा था कि जजों से जो अपेक्षा रहती है उससे जरा भी कमतर नहीं हैं ये |


क्रिटिक ज्यूरी के तौर पर मिडिया से हिन्दुस्तान के सीनियर एडिटर विशाल ठाकुर, शायर जुनैद खान और एक कवि/ब्लॉगर के रूप में मैं उपस्थित था | इंडियन आयडल फेम रवि त्रिपाठी और न्यूज़ एंकर अभिलाषा ने मंच सञ्चालन के लिए जो समा बाँधा, वो उल्लेखनीय है, रवि ने अपने सुरों के साथ और अभिलाषा ने अपने शब्दों की बाजीगरी के साथ दर्शकों को बांधे रखने की बेजोड़ कोशिश की !!बैक स्टेज पर मनीष और सोनाक्षी अपने कार्यों के साथ दिख रहे थे, कि मेहनत करनी पड़ती है, एक प्रोग्राम के सक्सेस के लिए | मैंने अपने वक्तव्य में एक दम से कुछ सुनी सुनायी पंक्तियों को ही तोड़ मरोड़ कर एक पंक्ति कही जो दिल की बात थी :
".....मैंने चाहा ही नहीं, वरना हालात बदल सकते थे
मैं तो चुप ही रहा वरना खुशियों होंठों से छलक सकती थी
मैं तो रुका ही रहा झील की तरह, बहता तो निकल सकता था दरिया के तरह .........
..........हाँ, चाहत होती तो अपने समय में मैं भी तो कह सकता था "मेरा भी नाम होगा"  |"

प्रतिभागियों के रूप में अलग अलग जगहों से आये हुए युवक/युवतियां और एक नन्ही परी भी उपस्थित थी | कौशलेन्द्र, शुभम, आव्या, मुस्कान, रितेश, श्रेया, अमन, राहुल और आशुतोष ने बखूबी अपने गायकी से ये दिखाने की कोशिश की कि क्यों वो "मेरा भी नाम होगा" में आये हैं, और वो क्यों चाहते हैं कि उनका नाम हो | हर गायक/गायिका अपने परफोर्मेंस के साथ सर्वश्रेष्ठ था | इन युवाओं के लिए कुछ पंक्ति कहना चाहूँगा, याद रखना बच्चो :)
मिटटी पे धंसे पाँव
देते हैं आधार
देते हैं हौंसला
देते हैं पोषण

हमने संगमरमर पर
बराबर फिसलते देखा है
नर्म पांवों को ... !

स्टैंडअप कामेडियन सिद्धार्थ सागर ने भी कुछ देर के लिए अपने जलवे से एक अलग छटा बिखेरी, ये देखना की उन्हें भी म्यूजिक के साथ गजब का लगाव है, अच्छा लगा, क्योंकि हार्मोनियम के साथ उन्होंने वडाली बंधुओं की शानदार आवाज निकाली |

कुल मिला कर एक शानदार एंटरटेनमेंट पैकेज जो सामाजिक सरोकार से जुड़ा होने के बावजूद कभी भी नीरस नहीं लगा, पूरा प्रोग्राम एकदम शानदार ग्रिप में कसा हुआ था, और मेरी उम्मीद कहती है, एक ब्लॉक बस्टर शो का आगाज बस होने ही वाला है ......! अगर मैं समीक्षक भी होता तो इस शो के लिए अभी से पांच में साढ़े चार स्टार तो दे ही सकता हूँ !!






Monday, April 3, 2017

खास उम्र की महिलाएं



उम्र की एक निश्चित दहलीज
पार कर चुकी खूबसूरत महिलायें
उनके चेहरे पर खिंची हलकी रेखाएं
ऐसे जैसे ठन्डे आस्ट्रेलिया के
'डाउंस' घास के मैदान में
कुछ पथिक चलते रहे
और, बन गयी पगडंडियाँ
ढेरों, इधर उधर
पथिकों की सुविधानुसार

चलते चलते थकी भी, रुकी भी
अपने पैरों पर चक्करघिन्नी काटी
और, बस चेहरे पर बन गए, कुछ अजूबे से
गड्ढे, डिम्पल ही कह लो न

लटें उनकी
कुछ बल खाती काली सुनहरी
एक दो सफ़ेद लटें झाँकती हुई
आ कर गिरती हैं चेहरे पर
जैसे हरीतिमा और
उनमे कुछ सुन्दर लाल जंगली फूल

यूँ तो उम्र हर एक की होती है
पेड़ जो ठूंठ बन कर सो रहे
पेड़ जो सदाबहार दूर तक छांव दे रहे
या जो हरी पत्तियों और चमकीले फूलों संग लह लहा रहे
कभी देखा है ?
अलग अलग सेल्फ़ियाँ को
सूख चुके तने संग ली गयी सेल्फी
लगती है न मन को भली
समझ गए न !!
वैसे भी एंटी एजिंग क्रीम का जमाना है
फिर बरगद जितना पुराना उतना छायादार

ये खास उम्र की महिलाएं भी,
होती हैं अपने में परिपूर्ण
चाहें तो समेट ले अपने में,
दे पाये खूबसूरत सी जिन्दगी का अहसास
हर मौसम में वसंत
पर, होती हैं, संवेदनाओं और मान्यताओं से बंधी
नहीं चाहती उनके वजूद में कोई और खोये
या वो अधर जो लगे हैं सूखने
नहीं हो किसी और के वजूद से गीले

एक सच और भी है
इन को भी चाहने वाले करते हैं इन्तजार, बहुत देर तलक
पर,
इन्तजार जान तो नहीं लेगा न

~मुकेश~