जिंदगी की राहें

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Sunday, November 18, 2012

लेंड-क्रूजर का पहिया




एक महानगर से सटे
एक छोटे से गाँव में
थी चहल पहल
चमक रहा था
कैमरे की लैंस 
न्यूजरूम के स्टीकर वाले
चौकुठे काले माइक्रोफोन पर
बोल रही थी
रोती कलपती 
मनसुख की मैया -
हमरा एक ही बेटा रहा
ऊ भी जवान
हाँ पीता था दारू
बीडी की लत तो रहबे करी 
पर था, हमरा जिगर का टुकड़ा 
हमरे बुढ़ापे का लाठी रहा
अब कैसे जियेंगे 
ई  फ़ट्ट्ल  साड़ी 
औ सुख्खल रोटी
तो मिल जात रही 
अब तक, ओकरा वजह से....
.
दूर पड़ी थी 
सफ़ेद कपडे में ढकी लाश 
पर मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज
मैं नहीं थी, मनसुख की मैया
या उसका  इंटरव्यू ...
टी.आर.पी. कहाँ बनती है ..
भूखी बेसहारा माँ से 
इसलिए टी.वी. स्क्रीन पर
चिल्ला रहे थे..
न्यूज रीडर...
लेंडक्रूजर के नीचे
सी.पी. के व्यस्त चौराहे पर
गया मेहनतकश नौजवान
और बार बार सिर्फ ...
दिख रहा था स्क्रीन पर
चमकता लेंड-क्रूजर
व उसका
निर्दयी पहिया...