जिंदगी की राहें

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Thursday, March 7, 2019

एक बोसा




किसी एक चांदनी रात में
केदारनाथ सिंह के प्रेम से लवरेज शब्दों को
याद करते हुए मैंने भी,
उसके हाथ को
अपने हाथ में लेते हुए सोचा
दुनिया को इस ख़ास हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए
पर सोच हाथों से होते हुए
रुकी उसके ठुड्डी पर
और फिर अटकी
उसके रहस्य से गहराते गालों के डिंपल पर
तत्क्षण वो मुस्काई
मैंने भी कह ही दिया
दुनिया क्यों नहीं, इस तरह मुस्कुरा सकती कि
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
कहते हुए झाँकता चला गया
फिर उसकी आँखों में
वो बेपनाह गहराई वाली नजरों में
डूबते उतरते, महसूस पाया मैं
उन प्रेमसिक्त आंसुओं में नहीं था नमक
थी तो सिर्फ़ गंगा की पाकीज़गी
क्या दुनिया गंगा सी पवित्र नहीं हो सकती
चलो नहीं हो सकती तो क्या
उसकी आँखों में चमकती एक बूँद जो
पलकों से बस गिरने को थी,
और फिर आ गिरी मेरी उंगली पर
मैंने उस ऊँगली को तिरछी कर
उसमे से झांकते हुए उसको ही देखा
था एक प्रिज्मीय अनुभव
दुनिया सिमट चुकी थी
सतरंगे अहसास से इतर
एक चमकती शख़्सियत के रूप में, मेरे सामने
फिर बुदबुदाते हुए हौले से बोला
दुनिया तुम इसके जैसी बनो
मेरी दुनिया ने भी खुश होकर
मेरे बित्ते भर माथे पर
बस ले ही लिया
'एक बोसा', सिर्फ एक।
~मुकेश~