जिंदगी की राहें

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Monday, July 1, 2013

'मैं हो चुकी किसी और की'..



'मैं हो चुकी किसी और की'..
कहते कहते फफक पड़ी थी
जब दिखाया था उसने..
मुझे अपने मेहँदी रचे हाथ..

था, साल रहा.. अब उम्र भर की
जुदाई का ख्याल
तभी तो ज़ोर से पकड़ा
हुआ था अंतिम बार मेरा हाथ !!

वो निशानियाँ प्यार की..
वो चिट्ठियाँ.. तोहफे..
सब धू-धू कर जल रहे थे
मेरे सामने.. मेरे साथ !!

खुद थी अश्कों से सराबोर..
और मुझे दिला रही थी दिलासा,
'अगले जनम में, पक्का-पक्का
रहेंगे न साथ-साथ!!'

था, मुझसे ज्यादा ग़म,
बिछड्ने का उसे..
तभी तो वक्त-ए-रुखसत
पर
भाग गयी थी.. छुड़ा कर मुझसे अपना हाथ!!