जिंदगी की राहें

जिंदगी की राहें

Followers

Friday, October 28, 2016

पटाखे

बीडी पटाखे के लड़ियों की
कुछ क्षण की चटख चिंगारी सा
है न तुम्हारा प्यार
फिस्स्स्सस !

इस्स्स्सस की हल्की छिटकती ध्वनि
जैसे कहा गया हो - लव यू
फिर जिसकी प्रतिध्वनि के रूप में
छिटक कर बनायी गयी दूरी
जैसे होने वाली हो आवाज व
फैलने वाली हो आग
और उसके बाद का डर
- 'लोग क्या कहेंगे'

शुरूआती आवाज न के बराबर
पर फिर भी, फलस्वरूप
हाथ जल जाने तक का डर
उम्मीद, आरोप से सराबोर

पटाखे के अन्दर का बारूद 'मैं'
उसके ऊपर लिपटे सारे लाल कागज़
तुमसे हुए प्रेम के नाम के,
और फिर मेरी बाहों जैसी
प्रेम सिक्त धागों की मदमस्त गांठे
धागे के हर घुमाव में थी लगी ताकत
ताकि छुट न पायें साथ
ताकि सहेजा रहे प्रेम,
पटाखे के पलीते जैसे तुम्हारे नखरे
चंचल चितवन !

पटाखे के ऊपर लिखे
स्टेट्युरी वार्निग सी
सावधानी बनाये रखें
- प्रेम भी जान मारता है !

पर जो भी कहो
समझो या न समझो
बस चाहतें कहती हैं
प्रेम का दीपक डभकता रहे 😊

~मुकेश~


100 कदम की प्रतिभागी 

Thursday, October 13, 2016

उम्मीदों का संसार



"लो मीडियम इनकम ग्रुप" के लोग
मतलब इतनी सी आमदनी
कि, बस पेट ही भर सके
पर है, चाहत यह भी कि
रख सके एकाध निवाले शेष
अगले सुबह तक के लिए


हो घर की दीवारों पर
मटमैली सी रौशनी
लेकिन दरवाजे पर झीने परदे के टंगने के लिए
कर रहे इन्तजार
अगले दीपावली पर बोनस का

बहुत सोच-समझ कर
जलाये हैप्पी बर्थडे का कैंडल
पर, केक व दो पारले जी के बिस्किट के साथ
रहे उम्मीद
आने वाले गिफ्ट का

ऑफिस में हर दिन
बेशक खाएं डांट
और, पा जाएँ कामचोरी का तमगा
पर,
रौब दिखाएँ अपनी सरमायेदारी का
कॉलर खड़ी रहने की चाहत के साथ

फेयर एंड लवली का छोटा पैकेट
पोंड्स पाउडर का इकोनोमी डब्बा
व गुच्ची के नकली बैग के सहारे
कोशिश हो मिले
पत्नी की सूखती मुस्कराहट का
और हो चाहत, पार्टी में
इतरायें पत्नी को 'मैडम' बना पाने के गुमान पर

गृह प्रवेश की
कुंठित इच्छाओं की पूर्ति के लिए
किराए के मकान में
लगा लें नेम प्लेट
"श्री" के संबोधन के साथ

बेशक बैंक की पासबुक में
हो निल बटा सन्नाटा
पर अपडेट करवाएं पन्ना
हर महीने

मने
हम
लो मीडियम इनकम ग्रुप के लोग
रचते हैं उम्मीदों का संसार
हर दिन देखते हैं सपनों का बाजार
छलछलाती नज़रों के साथ ......!
"उम्मीद" शब्दों को पकड़े हुए
खिलखिलाए भी राशन के साथ ।

~मुकेश~
100कदम: एक प्रतिभागी रचनाकार के साथ 

Thursday, October 6, 2016

मशीनी जिंदगी




क्या नहीं लगता ?
मशीनी जिंदगी के बीच रोबोटिक शख्सियत से बन चुके हैं हम

शारीरिक श्रम या दौड़ने-कूदने के बदले टीएमटी मशीन पर
जबरदस्ती की दौड़ लगा कर
मोटापे/ डायबिटीज/बीपी से  लड़ने की सौगंध खाते हैं हम !!

विटामिन्स/कैल्शियम/आयरन की अजीब अजीब सी गोलियों से
संतुलित भोजन का अॉप्शन ढूंढने लगे हैं हम

यहाँ तक कि अपने अन्दर की उत्तेजना भी
वियाग्रा की गोली गटक कर मापने लगे हैं हम

सुबह थायराइड की गोली, फिर नाश्ते के बाद बीपी
सोडियम रहित नमक, ओर्गेनिक आटा या दाल
हर पल स्वस्थ रहने की ललक के साथ टिके रहने लगे हैं हम

नींद नहीं आती तो क्या हुआ, काले चश्मे से बंद कर आँखों के
काले कोर्निया को सुलाने की बेवक्त कोशिश करने लगे हैं हम

अगर वक़्त और खुदा ने मान लिया हमारा कहना
तो, सपने भी सीडी पर लोड कर, देख लिया करेंगे हम

कैसी कैसी मृग तृष्णा सी जी रहें हम
बस जिए जा रहे हैं, हम
जीने की तरकीब ढूंढें जा रहे हैं हम !!

मेरे द्वारा सह सम्पादित संग्रह 100 कदम, प्रतिभागी रचनाकारा के  हाथों  में