जिंदगी की राहें

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Tuesday, March 1, 2011

आइना




मेरे कमरे में रखी 
गोदरेज के अलमारी में
लगा आदमकद "आइना"
जब भी देखता हूँ अपना अक्स
खुल जाती है पोल
न चाहकर भी चेहरे पर
दिख जाते हैं अशुद्ध विचार
हो ही जाता है सच का सामना...
बहुत की कोशिश
मिटा पाऊं बुरी इच्छाएं
मन में रह पाए सत्य
और सुगन्धित विचार
ताकि चेहरा दिखे विशुद्ध
जब सामने हो चमकीला आइना...
पर बदल न पाया
अन्दर का विचार
अत्तः नहीं आने देता
मैं चेहरे पे भाव
ताकि वो दिखे निर्विकार
पहचान न पाए आइना...
आखिर क्यों आईने के कांच के
अन्दर की गयी कलई
खोल ही देती है मेरी कलई
ऐसा ही तो करती है नारियां
पर दर्पण तब नहीं पढ़ पाता
भावनाओ को छुपाता
उद्गारों को दबाता
नारी का स्याह चेहरा
परिपक्वता के रंग में रंगा
बेशक दिखा देता है
काला हुआ सफ़ेद बाल
हमेशा की तरह
जिसको कभी
महसूस भी नहीं कर पाता आइना
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना !!