जिंदगी की राहें

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Tuesday, December 4, 2012

~ धुएँ का छल्ला ~




भैया !!
देना एक छोटी गोल्ड फ्लेक
एक मेंथोल टॉफी भी
सररर…….
माचिस के तिल्ली की आवाज
अंदर की और साँस
और फिर धुएँ का छल्ला 
मिलता-जुलता म्यूजिक भी
"सिगरेट के धुएँ का छल्ला बना कर"
ऐसा ही होती है न
शुरुआत स्मोकिंग की
सब कुछ परफेक्ट
.

पर कितना अजीब है न
ये धुआँ भी
अगर आँखों में लगे
तो लगता है जलने
पर श्वांस नाली के द्वारा
अंदर जाकर यही धुआँ
जब पहुँचता है फेफड़े तक
बेशक इसको देता है जला
पर एक अतृप्त नशा
कुछ क्षणों का अहसास
दे जाता है 
अंदर तक जलने की क्षमता
 .
हाँ ये बात है अलग
यही अंदर तक
जलाने की लगातार कोशिश
जब लाती है रंग...
अरे रंग नहीं बदरंग
खराश, खाँसी, हिचकी 
छाती में दर्द
कैंसर या फिर अंततः मौत
 .
लेकिन फिर भी
कुछ नहीं बदलता
बस एक उस इन्सान 
और उसके विरासत को 
मिलता है दर्द
बेपनाह दर्द
जो नहीं बदल पाया आदत
स्मोकिंग की आदत
 .
बदलोगे?
अब तो बदल पाओगे?
बदल लेना......