जिंदगी की राहें

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Tuesday, April 24, 2012

मेरे अंदर का बच्चा
























मेरे अंदर का बच्चा

क्यूँ करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।



जब मैं था

खूबसूरत सा गोलमटोल बच्चा

तो मेरे अंदर का बच्चा

बना हुआ था पूरे घर का प्यारा।

दादा-दादी का दुलारा |



जब मैं हो गया था जवान

थी उम्र कुछ कर दिखाने की

थी उम्र प्यार की, रोमांस की

पर, वक़्त की जरूरत

व कमियों मे खोने लगा मैं

लेकिन वो अंदर का बच्चा

भर देता एक अदम्य ताकत मुझमें

लड़कर थके हुए जीवन

के शुरुआत मे भी

सँजो कर रखता था

 से मुझको ।



हर एक नए दिन मे

मेरे अंदर का वो साहसी बच्चा

प्यार से कहता

"आज तू जरूर जीत पाएगा"

पर वो बात थी अलग

सुबह की जीत

बन जाती

शाम की हार |

फिर भी वो बच्चा

हर दर्द व विषाद के बाद भी

मुझमे भर देता खुशी

कुछ क्षणिक मुस्कुराहट

"कल जीतेंगे न" |



मेरे अंदर का बच्चा

क्यूं हर बार दिल से बनाये अपने को
क्यों दिखाता है गुस्सा

क्यों सँजो कर रखता है प्यार ।



आज़ भी वो बच्चा

कभी कूकता है कान मे

तो कभी खींचता है बाल

इस कठोर से जीवन मे भी

कभी तो लाता है मासूमियत

तो कभी कभी

मचलता है उसका दिल

भर देता है छिछोरी हरकत

मेरे अंदर का ये कमजोर बच्चा

पर छोटे से दुख मे भी कराहता है

छटपटता है ..।

ढूँढता है .। किसी को

पर किसको ? पता नहीं ?


मेरे अंदर का बच्चा


क्यूँ करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।