जिंदगी की राहें

जिंदगी की राहें

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Monday, December 13, 2021

क्षणिका (खर्राटा)

1.

खर्राटा
वो फड़फड़ाती प्रेम कविता है
जिसको सुनाते हुए प्रेमी सुख का गोता लगता है
जिसको सुनते हुए माशूका
दर्द में होती है
2.
खर्राटा
है आवाज़ की तरंगित वेवलेंग्थ
जिसमें घटते-बढ़ते आयामों के साथ
ख़ुद की नींद पक्की करते हुए
साथ वाले की नींद को तोड़ने की
कोशिश मात्र होती है
3.
खर्राटा
है एक के लिए नींद का ऑक्सीजन
जो साथ वाले के लिए
बन जाता है
कार्बन-डॉय-ऑक्साइड का सबब।
~मुकेश~



Wednesday, October 6, 2021

लखनवी प्रेम



मेरा प्रेम
था अलिंद के बाएं कोने पर
ऐसा रिक्त स्थान
जहाँ हमने सहेजी
सिर्फ व सिर्फ तुम्हारी मुस्कान
परत दर परत
चिहुंकती चौंकती खिलखिलाती
तो कभी मौन स्मित मुस्कान

ओ मेरे प्रेम
हो अगर इजाजत तो
बस, बहक कर कह दूं
क्यों लगती हो इतनी सुंदर
क्यों डिम्पल बनते गालों पर
छितरा जाती हैं लटें
जैसे गोमती ने बदला हो बहने का रास्ता
क्यों खो जाता हूँ
इन मुस्कानों के भूलभुलैया में,
इमामबाड़े सी हो गयी हो तुम
और मैं एक बेवकूफ पर्यटक
बिना गाइड के, खोया हुआ
तसल्लीबख़्स घूम रहा
हाँ पहुंच ही जाऊंगा अंततः
क्यों होना परेशान

जुल्फों का झटकना ऐसे
जैसे हो उसमें भी
नफासत से भरा लखनवी अंदाज
चिकन के कुर्ते सा
झक्क चमकता हुआ चेहरा
जिस पर थीं कुछ लकीरे
महीन कारीगरी थी बनानेवाले की।
सच में
कहूँ या न कहूँ
तुम्हारी मुस्कुराहटें मेरी हैरानियाँ,
तुम्हारी नादानियाँ मेरी गुस्ताखियाँ,
बिना इजाजत करती रहती है अठखेलियाँ
कहीं नबाबों वाली नबाबी तो नहीं?
~मुकेश~


Tuesday, September 14, 2021

ब्लॉग पर करीबन नौ लाख (9,00,000) पेज-व्यू

हिंदी दिवस के अवसर पर ख़ुश होने के लिए एक बहाना भर ही तो है मेरा ब्लॉग !!! 

ब्लॉग 'जिंदगी की राहें' मेरे लिए हर समय अदम्य जिजीविषा जैसी अनुभूति भरता है, इसकी बातें मेरे लिए हर समय एक नई शुरुआत सी लगती है। लगता है जैसे कहीं तो एक पहचान के काबिल हिस्सा है मेरे लिए भी । कुछ एडिटेड रिपोस्ट आंकड़ों और भावों को भी एडिट करते रहते हैं 😊

बात 2008 की थी, उन दिनों ऑरकुट का जमाना था, तभी एक नई बात पता चली थी कि "ब्लोगस्पॉट" गूगल द्वारा बनाया गया एक अलग इजाद है, जिसके माध्यम से आप अपनी बात रख सकते हैं और वो आपका अपना होगा | जैसे आज भी कोई नया एप देखते ही डाउनलोड कर लेता हूँ, तो  कुछ वैसा ही ब्लॉग बनाना था।  रश्मि दीदी ने बताया था ब्लॉग भी गूगल की एक फेसिलिटी है जो एक तरह से इंटरनेटीय डायरी सी है। पहली पाठक भी वही थी।

ये सच्चाई है कि ब्लॉग के वजह से ही हिंदी से करीबी बढ़ी, टूटे फूटे शब्दों में अपनी अभिव्यक्ति को आप सबके सामने रखने लगे। ये भी सच है पर कि इन दिनों ब्लॉग पर जाना कम हो गया है, फेसबुक पर संवाद ब्लॉग के तुलना में थोडा श्रेयस्कर है। पर, आज भी मेरा लिखा सब कुछ ब्लॉग पर देर सवेर पोस्ट होता है, बेशक हर रचनाकार के तरह उनको कागज़ पर प्रकाशित होना देखना चाहता हूँ ! पर मेरा ब्लॉग मेरे साहित्यिक जीवन की अमूल्य थाती है। slow and steady के सिद्धांत पर रहा हूँ ! ब्लॉग पर बेशक पोस्ट करने में अंतराल लम्बा रहता है लेकिन कोशिश रहती है अपडेट बराबर होती रहे !  स्मृतियों में कुछ चटख रंग ढूँढने की कोशिश करूँ तो उनमें कुछ रंगीन छींटे इस ब्लॉग ने दिये ! दो बार ब्लॉग के लिए ब्लोगोत्सव का अवार्ड पा चुका हूँ | 2019 में भी बेस्ट ब्लॉग का रनर अप रह चुका है मेरा ब्लॉग 😊

ये भी आज की सच्चाई है कि बहुत से नामी गिरामी साहित्यिक ब्लोग्स के बीच चुप्पी साधे मेरा ब्लॉग "जिंदगी की राहें" अपने पाठक संख्या में उतरोत्तर वृद्धि को दर्ज होते देख पा रहा है ! मेरा दूसरा ब्लॉग "गूँज...अभिव्यक्ति दिल की" है।

आंकड़े बताते हैं कि एक समय करीब 200 कमेंट्स तक पोस्ट पर आवागमन होता था जो किसी सामान्य हिंदी पत्रिका से कम नहीं था। पर आज भी ट्रैफिक की संख्या बताती है साइलेंट पाठको की संख्या में इजाफा हुआ है बेशक प्रतिक्रिया देने से हिचकिचाते हैं।

अपने 407 फोलोवर्स की संख्या के साथ हिंदी दिवस पर इस ब्लॉग ने कछुए के चाल के साथ अपने पाठक के संख्या (viewers) को करीबन नौ लाख छूते हुए देख रहा है जो बहुत से सामूहिक ब्लॉग् मैगजीन के तुलना में भी बहुत आगे है, पिछले वर्ष हिंदी दिवस के ही दिन ये संख्या साढ़े छह लाख से ज्यादा थी | तो इन वजहों से आज धीरे से कह पा रहा है कि गिलहरी के मानिंद हम भी साहित्यिक पुल को बनाने में लगे हैं। 

इसी ब्लॉग से बने आकर्षण के वजह से आज मेरे हिस्से में भी एक कविता संग्रह "हमिंगबर्ड", एक लप्रेक संग्रह "लाल फ्रॉक वाली लड़की" और हिन्दयुग्म से छः साझा संग्रहों - कस्तूरी, पगडण्डीयाँ, गुलमोहर, तुहिन, गूँज और 100कदम का सह संपादन और कारवां का संपादन है | समर प्रकाशन से सौ कवियों के कविताओं का संग्रह शतरंग प्रकाशनाधीन है। करीबन 350 नए/पुराने साथियों को अपने साझा संग्रह के माध्यम से प्रकाशन का सुख दे पाए, जिसकी पहुँच भी ठीक ठाक रही | हिंदी से जुड़े अधिकतर पत्रिकाओं ने कभी न कभी कागज़ का कोई एक कोना मेरे नाम भी किया है | आल इंडिया रेडिओ/आकाशवाणी के माइक के सामने अपनी आवाज रख पाया हूँ | पिछले वर्ष ही Blogger of the Year 2019 में उप विजेता के लिए चुना गया हूँ । बेशक औसत हूँ, पर आंखो पर छमकते सपने हमारे भी हैं|

तो इन सबसे इतर बस ये भी जोर देकर कहना है - हाँ, इस ब्लॉगर के अन्दर छुटकू सा हिंदी वाला दिल धड़कता है, जो हिंदी की बेहतरी ही चाहता है

और हाँ, बताना भूल गया, गूँज के माध्यम से भी कुछ दूर तक हिंदी की गूँज पहुंचाने की कोशिश भी करते रहे हैं 😊

हिंदी दिवस की शुभकामनायें ! 

~मुकेश~।



Sunday, August 8, 2021

क्षणिकएं : कोरोना से जुड़ी हुई



 🔴 मास्क


मास्क
है वजह
ताकि
न दें पाएं चुम्बन
न लें आलिंगन
बेशक तेज हो श्वसन
बदले आवाज की आवृत्ति
जिससे बढ़ जाए धड़कन

मास्क
है आश्वासन
ताकि बस बचा रहे जीवन
मुझसे ज्यादा उसका जीवन

🔴 सोशल डिस्‍टेंसिंग

दो गज की दूरी पर
बने दो गोले का
सम्मिलन

आवाज/भाव और स्नेह
के वजहों से हो रहा है
सर्वनिष्ठ

सोशल डिस्‍टेंसिंग
अपनाते हुए बुदबुदाया मन
दूरियां नजदीकियां बन गई
अजब इत्तिफ़ाक़ है !

🔴 आइसोलेशन

इतने स्ट्रिक्ट लॉक डाउन और
आइसोलेशन के बावजूद
न जाने किन गलियों से गुजरकर
तुम आ ही जाती हो
मेरे दिल के अंदर

रहो फिर परमानेंटली वहीं
ताकि बना रहे
बायो बबल।

बच कर रहना, बचाये रखना
समझी न।

🔴 वैक्सीनेशन

दो बूंद जिंदगी के
कह कर पिलाया था कभी
पल्स पोलियो का डोज

बढ़ती उम्र कहती है
इन दिनों
तुम्हे नज़रों में रखना
वैक्सीनेशन प्रोग्राम में आता है क्या।

नज़रों में रहना
बेशक दोनों बाहें वैक्सिनेटेड हो
चाह रही बाहें फैलाना।

~मुकेश~



Monday, June 21, 2021

सुनहरी बूंद


अलसुबह
मॉर्निंग मैसेज के प्रत्युतर में
पता नहीं कैसे तो
मोबाइल स्क्रीन पर
भीगा सा एक प्रदीप्त चेहरा मुस्काया
कुछ बूंदें छलमलाई
तीखे नयन नक्शों के ऊपर
छिटकते हुए
बूंदों ने टकरा कर सोचा पर वे कह नहीं पाए
हाय ये कैसा विघटन जल के संयोजन का
ऑक्सीजन की लहराती दरिया
छितरा गयी गालों पर
जबकि डिम्पल पर लटकते हुए हैड्रोजन मुस्काया
देवी तुमने हमें आजाद करवाया !

तब तक कुछ और बूंदों ने
जो इतवार के बहाने से
कुछ ज्यादा ही देर तक सोते रहे थे
कुछ देर से जग कर
चकमक चेहरे वाली बाला
जो जस्ट चेहरे को धो कर निहार रही थी आइना
उसके ही
लहराते लटों से ठुमकते हुए छिटके
कह उठे अलसाए आवाज में
झाँक ही लो मुझमें
मेरे प्रिज्मीय अपवर्तन और परावर्तन के वजह से
तुम कह सकते हो
है ये बाला - चंचल चितवन, स्नेहिल और खूबसूरत !

जिंदगी बहती है और बहते हुए ही जाना है
भरे हुए आँखों वाली के
पलकों से ठिठक कर एक सुनहरी बूंद ने कहा
नहीं जान देना है मुझे
प्लीज एक बार पलकों को हौले से समेटो
ताकि
जैसे हो तुम आगोश में
और मैं यानी बूँद समा जाऊं तुम्हारे ही नजरों में

खोना पाना भी तो शायद प्रेम ही है न !
क्या ऐसा सम्भव नहीं है क्या।

~मुकेश~


Thursday, April 15, 2021

सफर

 


याद आ रहा आज वो पहला सफर
जब वो एलएमएल वेस्पा के पीछे बैठ कर
कर रही थी नाखून से कलाकारी
और थी उम्मीद कि समझ पाऊँ
उन हिज्जे को कि शब्द क्या बोल रहे !

सफर के दरमियान आगे से आ रहा था
ट्रक, पर खोया था
गुलाबी अहसासों के दबाव को
बिना बनियान के पहने बुशर्ट पर,
हॉर्न की तीव्रता बता रही थी मेरी गलती
पर स्पर्श की रूमानियत
मौत को धप्पा कहते हुए ट्रक के सामने से
कुलांचे भरते हुए मुड़ी और फिर
टाटा बाय बाय कह कर ट्रक को,
फिर से खो जाना चाह रही थी
उस चित्रकार के तूलिका के स्पर्श को
जो मेरे बुशर्ट को समझ बैठी थी
गुलाबी कैनवास!

सफर और शर्ट बदलते रहे
कभी कभी बदल गए वाहन भी
पर नहीं बदली सड़क
न ही बदल पायी वो चित्रकार
और उसकी तूलिका ने हर बार
एक ही चित्र बनाई पीठ पर
हर बार सफर पर होने का अर्थ
हमने यही समझा कि
आज फिर से मोनालिसा
मुस्कुराएगी
आज फिर से पीठ पर
लिखा जाएगा प्रेम गीत

और क्या बताऊँ
कभी तो बिना वाहन के भी
उसने कहा चिट्ठियों के लिए है महफूज
ये पीठ
और कलम के निब के नोक जैसे
उसके नाखून करते रहे
संवाद या बताते रहे
गुस्से की बेवजह वाली वजह
कई बार सीखा बैलेंस बनाना
क्योंकि रीढ़ की हड्डियों को
रखना पढ़ता था स्थिर
ताकि नोट पैड पर निब के दबाव को समझूँ
और कहूँ धीरे से
आई अंडरस्टूड, ध्यान रखूँगा न, आगे से !

उसी ने समझाया था कभी
प्रेम में अंधा हो जाना चाहिए
ताकि संवाद की लिपि बदले
खैर, कुछ सेंस ऐसे ही जागृत हुए थे
फिर, जिंदगी बीतती चली गई पर आज भी
उस खास ब्रेल लिपि की सिहरन
महसूस लेता हूँ कभी कभी !

~मुकेश~