कल जब टहल रहा था सड़कों पर
तो मुंह में थी चुइंग-गम
और मन में उभरी एक सोच
क्या ढाई अक्षर का प्यार
और चुइंग-गम है नहीं पर्यायवाची ?
नवजीवन की नई सोच !
फिर चूंकि सोच को देनी थी सहमति
इसलिए मुंह में घुलने लगा चुइंग-गम !
देखो न शुरुआत में अधिक मिठास
जैसे मुंह से निकलती मीठी “आई लव यू” की आवाज
अंतर तक जाते ठंडे-ठंडे प्यारे एहसास
वाह रे मिंट और मिठास
कुछ वक्त तक चुइंग गम का मुंह में घुलना
जैसे कुछ समय तक प्यार का
दो दिलों के भीतर प्यारे से एहसास को
तरंगित करते हुए महसूसना ...
पर समय के साथ
यही मिठास और ठंडे एहसास
घूल कर रिस जाते हैं
रह जाती है इलास्टिक खिंचवाट
जो न देती है उगलने, न ही निगलने
उगलो तो कहीं चिपकेगा
निगले तो सितम ढाएगा
ऐसा ही कुछ गुल खिलता है
ये आज का प्यार
और मुंह में डाला हुआ चुइंग गम !
जो फिर भी होता है सबका पसंदीदा
आखिर वो पहला मिठास
और तरंगित खूबसूरत एहसास
है न सबकी जरूरत !!
अंत में मेरी रचना चाय का एक कप सुनिए यू ट्यूब पर :)


