
खुले आँखों से देखा है मैंने सपना
जो था बहुत सुहाना......
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माना अपने चालीसवें बसंत में कदम रख चुका हूँ
पर उस दिन
जब टीवी के परदे पर
दिखा थिरकता सैफ
और उसके बाँहों
हसीन कटरीना कैफ
तो मेरी मटर सी आँखे हो गयी स्थिर!!
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पहले तो परदे पे चेहरा झिलमिलाया
फिर आँखे बौरायीं
हो गया चमत्कार
दिख रह था मेरा हमशक्ल
ख़्वाबों सा मस्त, कड़क, जवान!!......:)
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ओंठो पे तैर उठी मुस्कान
आँखें चमकीं मटक के
दिल...."वो तो बच्चा है जी"
की तर्ज़ पर हो गया नादान!!
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इस सुहाने सपने में ही
था पूरा डूबा
की एक आवाज ने
कर दी तन्द्रा भंग..........
"पापा!!!!!!!!!!
साईकल में हवा भरवा दो........!!"
हकीकत का झटका दिया!
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उफ़!
खुले आँखों से देखा था जो सपना
जो था सुहाना......
पर ... सब हुआ बेगाना ! !!
