जिंदगी की राहें

जिंदगी की राहें

Followers

Thursday, April 25, 2013

मैं शर्मिंदा हूँ !














हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं पुरुष हूँ, क्योंकि मैं भारतीय हूँ
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि मैं निवासी हूँ उस शहर का
जहां महफूज नहीं है, "मासूम बच्ची" भी  
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !
क्योंकि पहले मैं शान से अपने
बिहारी होने पर करता था गर्व
क्योंकि ये भूमि
सीता-बुद्ध-महावीर-गुरु गोविंद की भूमि थी
बेशक लचर शासन व्यवस्था/ साक्षरता ने
हमारे बिहार को बना दिया सबसे गरीब
पर हम बिहारी कभी दिल से गरीब नहीं रहे  
पर, आज ये भूमि
खूंखार बलात्कारियों
की जन्मभूमि कहला रही है
हाँ मैं शर्मिंदा हूँ !

(ये बात दिल को लगती है, और बुरी भी है... जो बिहार आज भी सबसे ज्यादा प्रशासनिक अधिकारी भारत को देता है, जो देवो की भूमि रही है, वहाँ से पैशाचिक बलात्कारी पकड़े जा रहे हैं।)

Sunday, April 21, 2013

मजदूर दिवस


आज एक सोच मन मे आई
क्यूँ न समर्पित करूँ एक कविता
एक "मजदूर" को ...
पर उसके लिए
कविता/गीत/छंद/साहित्य
का होगा क्या महत्व ?
फिर सोचा
मेहनतकश जिंदगी पर लिख डालूँ कुछ
पर रहने दिया वो भी
क्योंकि तब लिखनी पड़ेगी "जरूरतें"
और जरूरत से ज्यादा
भूखप्यासदर्दपसीना
पर भी तो लिखना पड़ेगा ...

और हाँअहम जरूरतेंइन पर क्या लिखूँ
गेहूंचावल - दाल
मसाला व तेल भी
कहाँ से ला पाऊँगा उनके लिए
कुछ क्षण सुकून के
ठंडे हवा का झोंका भी तो
नहीं बंध पाएगा शब्द विन्यास में

छोड़ो यार! रहने देते हैं !
मना लेते हैं "मजदूर दिवस"
आने वाला है "एक मई" ...........

Thursday, April 11, 2013

ये वाइल्ड फेंटेसिस (Wild Fantasies)



ये वाइल्ड फेंटेसिस
और उसमे सिर्फ तुम
सच में, ढाती है कहर !

अस्पताल का
बेड न. 26, वार्ड न. 3
उसके जिस्म से जुड़ा मशीन
दिखा रहा था
सारे ग्राफ मौत के करीब ..
उसके बदन से जुड़े थे ढेरों पाइप
जिसमें से जा रहा था ब्लड,
फूड पाइप भी थी जुड़ी 
आंखो के सामने धुंधला दृश्य
पावर शायद होगा +15 या +16
पर डाक्टर का आश्वासन
जिंदगी अभी बाकी है ....

पर वो वाइल्ड फेंटेसिस
जिसमे थी सिर्फ तुम ! तुम !
एक कातिल मुस्कुराहट के साथ!
और फिर
10-12 दिन से एडमिट रोगी ..
जिस्म हो गया उसका
ठंडा-निस्तेज-निर्विकार !

उफ़्फ़ !! ओ कातिल हसीना......