जिंदगी की राहें

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Tuesday, December 23, 2014

पुरुष मन और ये मछलियाँ


ओये ! सुनो !
पता है, कल की रात हुआ क्या ?
था, सोया
तभी कान के पोरों पर
लिपिस्टिक का दाग बन गया !
उठा चिंहुक कर !!
इस्स! चारों ओर से,
था घिरा, तैर रही थी मछलियाँ !!

तैरते हुए सो रहा था मैं
ठंडी जलधारा में !
चारों और घूम रही थी
मछलियाँ !
हाँ, सिर्फ मछलियाँ
फैशनपरस्त मछलियाँ !!

सबने लगा रखी थी लिपिस्टिक
गलफड़े थे हलके रंगीन
कुछ ने पहने थे जींस
जो थे घिसे हुए, स्टाइल वाले जींस
तो कुछ थी, अधोवस्त्र में, ऐसे कहो स्विमिंग सूट में
कुछ थीं, बुर्के और साड़ियों में भी !!

समझ नहीं आ रहा था
मैं था, उनके उदरपूर्ति का साधन
या वो थीं
मेरे मनोरंजन का साथन !!
तैरती हुई मछलियाँ
कर रही थी कैट-वाक
कर रही थी अठखेलियाँ !!

पानी के अन्दर भी
खुल चुकी थी मेरी सपनीली आँखे
मेरा पुरुष मन
हो रहा था अचंभित और उत्तेजित !
मुझे दिखने लगी थी
मसालेदार तली हुई मछलियाँ
मेरी ही नजरें तलने लगी थी उनको !!

नजर के अलाव ने
आखिर पका ही दिया था उनको
अठखेलियाँ करती मछलियाँ
कब परिवर्तित हो कर दिखने लगी
प्लेट में सजी मछलियाँ
ये पता न चला ....... !!
और भोर हो गया !!
_____________
ये पुरुष मन और ये मछलियाँ !!


Tuesday, December 16, 2014

सुन रहे हो पकिस्तान !


वर्षों का अंतहीन दर्द झेला
माँ रूपी भारत वर्ष ने
और तुम कपूत 'पाकिस्तान'
जन्मे थे न 1947 में ...

जन्म के समय ही दी थी  तूने
असहनीय दर्द और पीड़ा
जिसको ता-जिंदगी झेल रही
तेरी माँ !! ये भारत माता !!

तुम्हारा जन्म नहीं था
एक सामान्य प्रक्रिया
सिजेरियन सेक्शन ही कहेंगे न
इस नए देश के बनने की प्रक्रिया को

सर्जरी से बनी
एक माँ की नाभि के पास
उस समय बनी रेडक्लिफ लाइन
आज तक दे रही दर्द व दंश

और तुम पाकिस्तान
आवारा, बदतमीज बच्चे की तरह
माँ के दर्द पर खिलखिलाते हो
तोड़ते हो हर पल
माँ का विश्वास और  गुरुर

धर्मान्धता की आड़ में
पता नहीं क्यों खेलते हो खेल
छलते हो,  करते हो
तोड़ने की कोशिश अपने ही भाई का हाथ

स्वर्ग जैसे कश्मीर पर
करते हो खून के छिंटो की बौछाड़
फिर भी कहाँ रहता है तुम्हे चैन
हर दिन दिखाते हो नया खेल

लो, अब भुगतो ! करो बर्दाश्त !
झेलो
समझो !!
कितना असहनीय होता है
वह दर्द
वह कराह
जब जाती है जान
नन्हो की,
सोचो उन माओं के लिए, जिनकी औलादें थी
इस सब का कारण तुम हो पाकिस्तान !!

पाकिस्तान !!
अब भी तेरी माँ, नहीं देगी बद्दुआयें !
बस संभल सकते हो तो संभल जाओ
नहीं तो ...
मरोगे तुम, नम होगी आँखे हमारी !!
सहोदर हो तुम, पाकिस्तान !!

पाकिस्तान !!
सुन रहे हो !
जियो और जीने दो !! प्लीज !!
अच्छा लगेगा !!
________________________
दिल से श्रद्धांजलि उन नन्हों के लिए .......... !!

पेशावर के एक स्कूल मे नन्हें बच्चों पर आतंकवादियों ने हमला कर सैकड़ों बच्चो की हत्या कर दी थी, ये कविता उन्हे समर्पित है !


Sunday, December 7, 2014

समझिये, आप प्यार में हैं !!


कभी अगर
ड्रेसिंग टेबल के सामने
उल्टा जैकेट पहन कर खुद को निहारें
और ढूंढें स्मार्टनेस
तो समझिये आप प्यार में हैं !
कभी, जब
मेट्रो का वेट करते हुए स्टेशन पर
सामने आ कर मेट्रो लगे, दरवाजा खुले
फिर बंद हो जाये
और आप सिर्फ हलके से सर खुजाएँ, और मुस्काएं
तो समझिये आप प्यार में हैं !
कभी खाने के टेबल पर अगर
खूब तीखें खाने को खाते हुए भी
लाल डबडबाते आँखों के साथ मुस्कुराते हुए,
कह दें, लाजबाब खाना, सामने वाले के आँखों में झांकते हुए
तो समझिये आप प्यार में हैं !
कभी कॉलेज में
मैडम पढ़ा रही हो केमिस्ट्री
और आप एक दम से चिल्ला कर कहें
यस सर, प्रेम पर कविता लिख कर दिखाऊं
तो समझिये आप प्यार में हैं !
आखिर प्यार व पागलपन
एक ही रास्ते में पड़ने वाला
है दो लगातार पडाव
पागल कहना, करेगा अचरज
इसलिए मान लीजिये
या समझिये आप प्यार में हैं !!!