जिंदगी की राहें
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Saturday, September 12, 2020
परिधि प्रेम की
परिधि सीमा नहीं होती
पर फिर भी,
एक निश्चित त्रिज्यात्मक दूरी में
लगा रहा हूँ वृताकार चक्कर
खगोलीय पिंडों सा
तुम्हारी चमक और तुम्हारा आकर्षण
जैसे शनि ग्रह के चारों ओर का वलय !
कहीं मैं धूमकेतु तो नहीं ।
2.
काश
संबंध होते
किवाड़ के कब्जे सरीखे
जो समेटे रखते परिधि में
काश
अधिकतम दूरी का भी होता ज्ञान
फिर संबंधों की
चिटखनी होती मजबूत
~मुकेश~
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