जिंदगी की राहें

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Tuesday, May 10, 2011

हे भ्रष्टाचारी !!




हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तुम्हें क्यूँ लोग
इतने विशेषणों से करते हैं संबोधित
इतने अलंकारो, उपमाओं से करते हैं सुसज्जित
असम्मानीय शब्दों से करते हैं विभूषित.!!

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
कहते हैं...
भ्रष्टाचार हमारे देश को घुन की
तरह खा गया
और फिर कहतेहैं
"
भ्रष्टाचार को भागना होगा.
देश को बचाना होगा.........."

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही लोग क्यूं
क्यूं पिछले दिनों
अन्ना के बूढ़े कंधो का सहारा लेकर
बाब रामदेव की ओट से कहते हैं..
भ्रष्टाचारी को दे दो फांसी ....
उड़ा दो इन सबको  को ....

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तू इस कलियुग में
कब तक लेता रहेगा अवतार
कभी तेलगी तो कभी बंगारू
कभी राजा तो कभी कलमाड़ी
तो कभी कोड़ा .....
हर दिन एक नए रूप में
होते रहेंगे दर्शन बारम्बार...

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ एक आम भारतवासी क्यूँ
अपने बारे में सिधान्तवादी
होने की पाल रखी है 
ग़लतफ़हमी...

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही क्यूं इतना कोसने पे भी
तुम बिन बेमानी हो गया है जीवन
जैसे ऑक्सीजन बिन लेना साँस.
हमारे खून में प्रवाहित हो गया है तू
ऐसा लगने लगा है.....

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही तेरे विरूद्ध झंडा उठा कर
तेरा कर रहे हैं महिमा मंडन
अगर तुम्हें भागना है
जड़ से उखाड़ना है
तो हमें अपने अन्दर झांकना होगा
तू जो हम में बैठा है.
उसे भागना होगा...
उसे भागना होगा...

हे भ्रष्टाचारी !!
ऐवेंइ ही....................