रोड़े पत्थर के मिश्रण से बनी सड़क
पता नहीं कहाँ से आयी
और कहाँ तक गयी
जगती आँखों से दिखे सपने की तरह
इसका भी ताना - बाना
ओर - छोर का कुछ पता नहीं
कभी सुखद और हसीन सपने की तरह
मिलती है ऐसी सड़क
जिससे पूरी यात्रा
चंद लम्हों में जाती है कट!
वहीँ! कुछ दु: स्वप्न की तरह
दिख जाती है सड़कें
उबड़-खाबड़! दुश्वारियां विकट!!
पता नहीं कब लगी आँख
और फिर गिर पड़े धराम!
या फिर इन्ही सड़कों पर
हो जाता है काम - तमाम!!
इस तरह कभी आसान
तो कभी मुश्किल दिखती सड़क
और उस पर मिलते हैं
उम्र जैसे मिलते हैं
"मील के पत्थर"
जो बीतते ही हो जाते हैं खामोश
लेकिन बोलती उनकी ख़ामोशी
और इस ख़ामोशी में भी
कट जाता है पथिक का सफ़र
है न जिंदगी के हर पहलु
को उजागर करती सड़क!!!