जिंदगी की राहें

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Wednesday, April 27, 2016

कॉम्पन्सेशन अपॉइंटमेंट


गूगल  से
सरकारी ऑफिस की फाइलें भी करती हैं बातें ,
बेशक अगर सुनो तो
ठुनकती हैं , मुस्कुराती हैं कभी
पर रो भी पड़ती हैं अक्सर, निराश होकर
बैठा ही था कार्यालय में,
टेबल पर खुली फाइल में टैग किया आवेदन चमका
पिता की मृत्यु के कॉम्पन्सेशन के रूप में
एक अदद नौकरी की आस
सामने आई रूल्स बुक, ऑफिस प्रोसिज़र और जाने क्या क्या
रूल्स बुक फुस्फुसाई, ये काम नहीं है आसान
ढेरों पेचीदगियां,
सरकारी ख़ज़ाने में सेंध लगाने जैसी है हरक़त
ना करना पिघल कर
ऐसी कोई नोटिंग /ड्राफ्टिंग
जिस से, जगे कोई आस, कोई झूठी उम्मीद
दिमाग के भी अपने पैंतरे, अरे छोडो भी
नहीं मिलती तो न मिले नौकरी, हमें क्या
बेकार की खटर-पटर और उलझन क्यूँ झेलना
सोचते सोचते अचानक निगाह पड़ी
सिग्नेचर के कोने में छोटा सा एक धब्बा
निसंदेह रहा होगा आँसू का क़तरा
एकदम से आँखों में तैर गया एक मासूम सा चेहरा
न पूरा वयस्क न बच्चा, भोला सा युवा
जिसने खो दी अपने सर की छत्रछाया
हमेशा के लिए
माँ का लाडला,
जिसे खेल कूद की इस उम्र में उठानी थी
घर की तमाम ज़िम्मेदारी पिता की तरह
बेशक कमज़ोर कंधे नहीं हैं सक्षम इस बोझ के लिए
फिर भी, पिता के फ़र्ज़ पूरे करने हैं उसको ही
बेशक कंधे में नहीं है दम
पर वन्दे मातरम् !!
लगा
ठुनकता हुआ आवेदन कह रहा, कुछ ऐसा करो न
कि,
इस पर लिखा हुआ सिग्नेचर, एक दम से लगे चहकने
खिलखिला कर कर ले सारे काम,
और फिर निकल पड़े खेल के मैदान !!
दौड़ने लगी अंगुलियां, टाईप होने लगा नोट
चलने लगा दिमाग,
कुछ कूद-फांद ताकि मिले लड़के को नौकरी
चल गयी, फ़ाइल, उसके अन्दर की ताकत से लग गयी दौड़ने
फ़ाइल जो अब तक नहीं ले पा रही थी सांस
अब भर गयी थी उर्जा के साथ
आखिर आ गया समय ऑफिस आर्डर के टाईप का
अपॉइंटमेंट का आर्डर रिसीव करवा रहा था
फ़ाइल चहककर महकते हुए
चलो बंद करें अब ये फ़ाइल, बाँध दे उसका लेस
लगा दें ऊपर वाली अलमारी के रेक में
जा रहा था लड़का नौकरीशुदा होकर
ओस की बूँद सी पलकों पे अब भी थी
पर मुस्कान के साथ !!!

अभिनव मीमांसा में रंजू चौधरी द्वारा की गयी हमिंग बर्ड की समीक्षा 

Friday, April 15, 2016

"श्री यन्त्र"


सुनो !
आज एकदम से मेरे पर्स से खनक कर
वो ख़ास "श्री यन्त्र" सा सिक्का गिरा
और, गिरते ही छमक कर तेरी यादें भी कुलांचे मारने लगी !

हाँ, बता दूं पहले ही संजो रखा है
अब तक
उस ख़ास "दस पैसे के सिक्के को "

याद है न वो मेरी करतूत !
जिस पर तुम खिलखिलाते हुई कही थी
बेवकूफ, उल्लू - क्या बच्चो सी करते हो हरकत !

एक छोटे चिंदी से कागज के टुकड़े को
दिल के शेप में काटकर
लिखा था तुम्हारा नाम
रेनोल्ड्स के कलम से !
हाँ, मैंने खुद से लिखा था,
तुम्हे तो पता ही था, मेरी हैण्ड रायटिंग
थी थोड़ी खुबसूरत
अब उसको चिपका कर
उस ख़ास सिक्के पर........!

रख दिया था ट्रेन की पटरी पर
दूर से आती आवाज.........कू  छुक छुक !
साथ ही मेरा मासूम धड़कता दिल ... धक् धक्!
और, बस  कुछ पलों  बाद !!

गोल चमकते सिक्के में गुदा हुआ था तुम्हारा नाम !
चंचल सोच  कह उठी - अमर  हो  गयी तुम !
और तब से, वो
पतला  सा  चमकीला सिक्का, तुम्हारे नाम के साथ
है मेरे पर्स में सुरक्षित
तुम्हारे चले जाने के बाद भी !!

आखिर कर दिया था,
दस पैसा कुर्बान मैंने
तुम पर, बिना बताये !

वो तुम्हारी चिढ़न, वो जलन
वो अमूल्य प्यार
और नाम
सब है धरोहर ............पर्स के कोने में !!
___________________
तभी सोचूं ये पर्स इतना भारी क्यों होता है :D


Tuesday, April 5, 2016

ड्रोन

ड्रोन


काश होता मेरे पास भी "ड्रोन"
या ड्रोन जैसा ही कुछ
या बना पाता उसके तकनीक पर ऐसा ही कुछ
कोई यन्त्र या तंत्र !!
बस एक बदलाव होता जरुरी, मेरा ड्रोन रहता अदृश्य !!
मिस्टर इंडिया सा लाल या नील प्रकाश के अलावा न दिखने वाला !!

जो भी होते अपने या होते बेगाने
बिना किसी पायलट या व्यक्ति के
हर टार्गेट के दिल और दिमाग पर  करता फायर
सामने से बेशक दिखता सीज फायर !!
मुस्कान सजाता, और पता लगा लेता !!

पल भर में होता कुछ ऐसा
ड्रोन के चश्मे से दिख जाता उनका
दिल दिमाग है मेरे प्रति कैसा !
उनका मेरे प्रति सोच समझ स्वाभाव या जलन
यहाँ तक कि मेरे से उनकी जगती उम्मीदें भी !

अन्दर ही अन्दर समझ पाता
क्या चल रहा है, क्या सोच रहे लोग
बिना कुछ कहे, बिना मुस्काये या खीज दिखाए
डिप्लोमेटिकली परफेक्ट, आँखे मटकाए
हम भी होते उनके अनुरूप
होते हर एक के करीब ........ !!
शायद हो जाते मशीनी. पर हर के चाहत के अनुरूप !!

याद रखना, जल्दी ही मंगवाऊंगा  "ड्रोन"
अगर तुम सब के लिए हो गया मैं परफेक्ट
तो समझ लेना, आ गया मेरा "ड्रोन"
...........बच के रहना !!
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ड्रोन चालक रहित विमान है, इसे सुदूर स्थान से नियंत्रित करते हुए इसका  प्रयोग जासूसी करने, बिना आवाज किए मिसाइल हमला करने हेतु किया जाता है