जिंदगी की राहें

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Friday, August 26, 2022

ज़ख़्म


सहेजा हुआ है, मैंने ज़ख़्म अपना छिले हुए टखने और कोहनी बता रही मेरी गुस्ताखियाँ दिखते हैं उस पर रक्त के धब्बे जैसे गुलाब की सुर्ख़ पंखुड़ियां देह मेरी जैसे मिट्टी-उर्वरक अंकुरित होती रही उस पर कुछ मासूम यादें, हमने उसके माथे पर लगा दिया है काजल का टीका ओस के निर्मल अहसास सी, बलबलाई खून की एक बूँद मेरे ही सूखे घाव पर ओह, सुवासित हो गयी पीड़ा भी अपने दर्द में अपनी गरम फूंक से दे रहा सांत्वना कि वो याद करती होगी न पक्का-पक्का क्यारियों में बेशक न खिल पाये गुलाब आखिर कौन सींचे हर दिन, हर पल पर, तुम्हारा दिया ज़ख़्म तो स्मृतियों में रिसता रहेगा ताउम्र वैसे भी, कुरेदे हुए घाव दिख जाते हैं सुर्ख लाल किसी ने कहा भी, कैक्टस के फूल खिलखिलाते हैं रेगिस्तान में आखिर कुछ टीस जिगर में ख़ुश्बू जो भरती है जिंदगी तुम बस दर्द देती रहना बेइंतहा ! माय लॉर्ड दर्द, जिन्दा रहना और जख्म को सहेजे रखना, जिन्दादिली का सबूत है न ! ~मुकेश~



Thursday, August 18, 2022

लिपस्टिक


 

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आलमीरा में चिपके आईने पर
चिपकती हुई युवती
या यूं कहूँ कि अर्द्ध चंद्राकार मुड़कर
नशीले नजरों से निहारते हुए
चला रही थी उँगलियाँ
और बस गुलाबीपन
पसरता जा रहा था होंठो पर
जो गुलाबी होंठ को कर रहा था
सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों सा
थी शायद कुछ ऐसी जल्दी
जैसे एक व्यक्ति ने कुछ
लगातार पोस्ट डेटेड चेक पर करते हुए हस्ताक्षर
ली हो जम्हाई
और फिर से उंगली घुमाई
बेशक फलो गड़बड़ाया
पर फिर भी सिग्नेचर उग आई चेक के पत्ती पर
हाँ होंठ के बाएँ कोने से ज्यादा ही छितरी लग रही थी
पर कोई ना, होता है
एक्वेरियम में
फडफड़ाती लाल मच्छलियों सी
दर्द के बावजूद चमकती छमकती सी
दृढ़ निश्चय की लाली सहेजे
हर गुजरने वाले को
करती है आकर्षित
उद्दाम आकर्षण
और रंग का प्रतिफल
जा चुकी स्त्री के द्वारा छोड़ा हुआ ग्लास
कुछ बची रह जाती है कॉफी
और ग्लास के कोने पर रह जाते हैं
मासूम गुलाबी एहसास
जैसे सिल्ड वसीयत पर लगा हो सरकारी ठप्पा
वो आई ही थी ' का कन्फ़र्मशन
एनिवे
जिंदगी का गुलाबी होना जरूरी है न
तो, गुलों से कह दो फूल खिलखिला रहे ।
~मुकेश~



Wednesday, April 6, 2022

हुकूमत



रात
नींद
सपने
बिस्तर
देह
और आराम
फिर
इन सबका घाल मेल
और इनके बीच
घुसपैठ करती तुम
ऐसे कोई कहता है क्या कि
मुझ पर कविता लिखना
हर जगह तो दिखाती हो हुकूमत
रात की चंदा
नींद के सपने
सपने की नायिका
बिस्तर की सिलवटें
देह की सिहरन
और, और आराम की खूबसूरत खलल बनकर
क्यों पहुंचती हो इस हद तक
कि कविता पहुंचें
हदों के पार
खैर, मानोगी थोड़ी
नींद के साथ, नींद से पहले भी
आया ही करोगी तुम
वजह बेवजह।
आती रहना !
... है न!
~मुकेश~


Sunday, February 27, 2022

बारूद और प्रेम


जब हवाओं में
हो बारूद की गमक
उस समय सबसे जरूरी होती हैं
कि लिखी या पढ़ी जाएं
प्रेम कविताएँ।

ताकि 
बारूद के प्रयोग की आशंका
हो सके निर्मूल
प्रेमिल एहसासों से पगे
प्रेम पत्र बदल जाएं
संधियों के दस्तावेज़ में ।

प्रेम भी बेशक युद्ध ही है
पर इन गुलाबी युद्धों में
सेनापतियों पर बरसती हैं
गुलाबी पंखुड़ियां । 
ऐसे में बाणों को 
इश्क़ के इत्र से डुबो कर
छोड़ी जाती हैं बिन कहे,
गर लगे तो प्रेम सफल।

और न हुए सफल तो भी
मुस्कुराहटों के बादल ही संघनित होंगे।
...है न!

~मुकेश~



Thursday, February 3, 2022

मन्नत का धागा



कभी निहारना
मेरे घर से तुम्हारे घर तक
पहुंचने वाले रास्ते को
रास्ते में है एक पेड़
पेड़ पर बंधा मिलेगा
मन्नत का धागा
धागे का ललछौं रोली सा रंग
है रंग मेरे प्रेम का
बेशक जिंदगियां जी रही हैं
कठिनतम दौर में
विषाणु तैर रहे हवाओं में
फिर भी, लॉकडाउन के गलियारे में
जब भी चाहो मेरी उपस्थिति
बांध लेना उसी मौली को
कह देना धीमे से
"लव यू" - संस्कृत में
शायद प्रेम में बहती ये आवाज
शिवाले से आती
ॐ की प्रतिध्वनि सी हो
जो प्रस्फुटित हो
धतूरे के खिलने से
या आक के फूल के
बैगनी रंग में लिपटे अहसास तले
जिस कारण
शायद शिवलिंग से
छिटके एक बेलपत्र
जिस के तीन पत्तों में से
एक पर हो मेरा नाम
बाकी दो है न सिर्फ तुम्हारे खातिर
आखिर
तभी तो महसूस पाता हूँ कि
तुम चंदा सी छमकती हो
जटाओं के बाएं उपरले सिरे पर
मेरे चंदा
कल फिर उसी रास्ते से जाते हुए
तुम्हारे घर की सांकल को
हल्के तीन आवाज से बता दूंगा
कि हूँ तुम्हारे इर्द गिर्द
बेशक दूर-दूर पास-पास
के इस खेल में
समझते रहना
तुम प्रेम में हो, और मैं
मैं तो प्रेम समझता ही नहीं।
समझी न ! बकलोल !!
~मुकेश~


Monday, January 10, 2022

... है न !

पहली कविता जब रश्मि दीदी केव वजह से एक साझा संग्रह में प्रकाशित हुई थी और उस अधपके प्रेम को इमरोज के हाथों विमोचित होते देखा था पर तब ये तक न पता था कि इमरोज़ क्यों पहचाने जाते हैं । यानी मैं ये इसलिए बताना चाहता हूँ कि पता चले उमर से इतर मेरा साहित्यिक सफर बेहद छोटा है । 😊

मैं मन से, वो नादान बालक जैसा हूँ जो हर बार कुछ भी नया कर पाने पर, पीठ पर स्नेह की थाप महसूसना चाहता है । ☺️ तभी तो जब पिछले दिनों अमिताभ बच्चन ने "है न" ट्वीट किया, तो मैंने सहेज लिया 😊

पहला कविता संग्रह "हमिंग बर्ड" हिन्द युग्म से ही प्रकाशित हुआ और उस समय दोस्तों ने उसे हाथों हाथ लिया । उस संग्रह से इतनी भर खुशी मिली कि 800 प्रतियों का पहला संस्करण खत्म होने के बाद, दूसरे संस्करण को छापा गया। 😊

इसके बाद "लाल फ्रॉक वाली लड़की" छोटी सी लप्रेक संग्रह को बोधि प्रकाशन ने प्रकाशित किया। डरते-डरते, जिसका प्रकाशन हुआ, उसको सराहना के शब्दों का अंबार मिला। ये कहना बेशक अतिशयोक्ति होगी पर ये सच है कि उन दिनों जारी बेस्ट सेलर लिस्ट्स में कइयों से बिक्री में ऊपर थी ये चहकती लड़की वाली किताब। अंततः नव भारत टाइम्स ने वर्ष की लिस्ट में इसको दर्ज भी किया 😊

तो करीबन तेरह वर्षों से कविताएँ लिख रहा हूँ और तीसरी किताब के प्रकाशन की बाट जोह रहा हूँ। सोचा था पुस्तक मेले में इसकी चहचहाट को सँजोउंगा । पर ऐसा लगता है जैसे समय ने सब कुछ को स्टेचू कह रखा हो । 😊

तो तकिया कलाम जैसे शब्द "... है न !"  मेरे कविताओं में बराबर आते हैं, उसे ही शीर्षक बना कर हिन्द युग्म नया संग्रह ला रहा है। कवरपेज की पेंटिंग मित्र डॉ. अंजना टण्डन ने बनाई है, जो स्वयं में वरिष्ठ और समर्थ कवयित्री हैं । उनका स्नेह मेरे लिए आशीष जैसा ही है 😊

फिर से बता रहा हूँ, मेरी कविताओं में प्रेम होता है, होता है विज्ञान - भूगोल आदि आदि। और साथ मे होते हैं रिश्ते, स्नेह व प्यार।  कवर को मेरे छोटे भाई से मित्र दिव्य ने देखते ही कहा - मैं देख पा रहा हूँ कि इस बार लाल फ्रॉक वाली लड़की बड़ी (mature) हो गयी है और हमिंग बर्ड पेड़ पर, अपने और साथियों के साथ आ गयी है (सामाजिक हो गयी है)। ... है न! 😊

तो
सपनों की सरजमीं है ये
और फिर, जिस पर
उम्मीदों का चद्दर ओढें
अहसासों के तकिये पर
लेटा हूँ मुंह ओंधे

बस इतना करना
मेरे बाएं काँधे पर हौले से थपकी देकर कहना
उम्मीदों की लकीरें चेहरे पर बेशक ज्यादा हैं
फिर भी, लिखते रहना
पढ़ेंगे हम ।

... है न !    #है_न । 😊💝