जिंदगी की राहें

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Friday, October 5, 2012

मेहँदी का पेड़
























पता है ?
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़,
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली
.
घर के पिछले दरवाजे की किवाड़... 
जिससे नजर आता है अब भी, वो मेंहदी का पेड़
उखड रहा है चौखट से..
पीछे जो खेत है,
उसकी जमीन भी हो
गयी है उसर...
होते ही नहीं अंकुरित
लगे हुए मटर...
तुमने जो नीला कोट दिया था
वो अभी भी बक्से  में पड़ा है
आई ही नहीं इत्ती सर्दी..
घनेरे छाये मेघ भी 
बस... गड गडा कर उड़ जाते हैं
शायद उन्हें भी  लगता है-
क्यूं बरसे जिंदगी भर ?......
.
"मेरे शब्द"... उनको तो, क्या हो गया,
कैसे बताऊँ ?
हर बार रह जाते हैं, थरथरा कर
बोल ही नहीं पाते कुछ
सब कुछ तो बदल गया
.
पर पता नही क्यूं
तुमने जो लगाया था
मेहँदी का पेड़
उसके पत्ते आज भी
लाल कर देते हैं हथेली...
आज भी...!!