जिंदगी की राहें

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Tuesday, August 22, 2017

अपाहिज प्रार्थना



"या देवी सर्वभूतेषु...."
गूंजती आवाज के साथ
जैसे ही शुरुआत की प्रार्थना की
पर नाद अनुनाद में बंध कर
बिना किसी मुकम्मल गूँज के
धप्प से दब कर रह गयी प्रार्थना!
बेशक रही हो
अंतर्मन से निकली आवाज
पर, सिसकती रुंधी हुई
किसी दूर बैठी लड़की की आवाज के
हल्के से रुदन में खो गयी प्रार्थना!
ऐसे लगा, प्रार्थना ने की हो कोशिश
सफ़र कर देवियों तक पहुँचने की
पर पगडण्डियों से हाइवे/ मेट्रो तक
जाने की दौड़ में
वाहन के पायदान पर फिसल गयी प्रार्थना!
अपाहिज हो कर बेचारी..
ऐसे में कचरा ढोने वाले
म्युनिस्पेलीटी के ट्रक पर
उछल कर बैठ ही गयी प्रार्थना!
न ही हवाओं ने दिया साथ
न ही संघनित बादल ही ले जा सके
खुद के साथ दूर तलक
बहुत बुरा हुआ, बादलों ने बरस कर
सूखी मिटटी में खो दी
सच्चे दिल की प्रार्थना!
ये इन्कार कुछ कहता है शायद
मत करो सिर्फ प्रार्थना!!
समझ गये न, क्या कह रही है देवियाँ !!
~मुकेश~

लोकजंग में प्रकाशित कविता "एक्वारजिया"

Tuesday, August 1, 2017

भीगती कविता


काश मेरे शब्द होते
बारिश की बूंदों से निश्छल
जो भावों के रूप में संघनित हो कर
हरहरा कर बरस पड़ते
और, बस बन जाती ताजगी भरी 
मासूम सी कविता!
काश मेरे उदर के बदले
दिमाग में गुडगुड करते अक्षर
फिर एंटासिड की गोली की तरह
सहेजे हुए उसके प्रेम सिक्त बोल
उन अक्षरों को बना देती
प्रेम कविता !
काश तुम्हारा सौंदर्य, लावण्य,
जिसको देख कर मेरे कलम में
भर जाती
सन-स्क्रीन लोशन व टेलकम पाउडर
ताकि कागज़ पर उतर पाती
यौवन के रस को छलकाती
बेहतरीन सी कविता !!
काश
कोई तो वजह होती
ताकि बन पाती
तुम्हें समर्पित करने हेतु
एक खास कविता !
____________________
काश !


😊💐