जिंदगी की राहें

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Wednesday, July 17, 2019

'एक्वारजिया'



'एक्वारजिया'
या करूँ उसका अनुवाद तो
अम्लराज ! या शाही जल !
पर, अम्लरानी क्यों नहीं ?
ज़िन्दगी की झील में
बुदबुदाते गम
और उसका प्रतिफल
जैसे सांद्र नाइट्रिक अम्ल और
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का ताजा मिश्रण
एक अनुपात तीन का सम्मिश्रण
उफ़ ! धधकता बलबलाता हुआ
सब कुछ
कहीं स्वयं न पिघल जाएँ
दुःख दर्द को समेटते हुए
जैसे लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल के उस पार से
ताक रहा पाकिस्तान
और फिर उसकी ताकती नज़रों से
खुद की औकात दिखाते
कुलबुलाते कुछ कीड़े इस पार
वही तीन अनुपात एक जैसा ही
और फिर ऐसे ही एक असर का नतीजा
आखिर
क्यों नहीं समझ पाते हम
रोकना ही होगा इस सम्मिश्रण के
कनेक्शन को
रूमानी शब्दों में कहूँ तो
तुम और तुम्हारी नज़र
वही ख़ास अनुपात
कहर बन कर गिरती है मुझपर
अम्लीय होती जिंदगी में
खट्टा खट्टा सा
नमकीन अहसास हो तुम
द्रवीय अम्लराज का दखल
जिंदगी के हर परिपेक्ष्य में
अलग अलग नज़रिये से
फिर से बस यही सोच
कहीं पिघल न जाऊं !!
~मुकेश~