जिंदगी की राहें

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Friday, March 29, 2024

चमकते रहना !!

 


दूर तक पसरा है कुहासा
शायद है असर प्रदूषण का
पर फिर भी
छमकती दिख रही हो तुम ही
कहीं ऐसा तो नहीं
कुहासे के मध्य
जैसे फ़ैल गया हो
सूर्यप्रकाश का उजास
पुरनम के चांद सा खिला सूरज
दिन निकल आया है
पर क्यों मन कहता है
दिन सिमटा रहे
हां, तुम्हारे होने का अहसास भर से
गरमाया हुआ है कमरा
कह रहा मन, कि हो कुछ ऐसा
जैसे कुहासे के बदरियों के बीच
यदाकदा आ रही हो
कुछ मोटर कारें कुछ ट्रकें कुछ बाइक्स भी
कर्तव्य-पथ पर दूर से नजदीक
और उनके लाइट्स की चकमक ऐसी
जो बता रही हर पल
तुम चमकती हो मेरे अन्दर
बेशक लोधी रोड से गुजरते हुए
लगा ऐसे जैसे, कुहासा हो चुका परिवर्तित
कोहरे में
पर घने होते नम बूंदों पर भी
होती है किरणें अपवर्तित या परावर्तित
फिर तुम्हारी चमक तो है मेरे अन्दर तक
समाहित
क्या करूँ, इतना ही कहूँगा
कुहासा हो या अँधेरा
चमकते रहना
आखिर तुम्हारे प्रिज्मीय गुणों में
तुमने कुछ चुम्बकत्व के गुणों को भी
सहेजा है
तभी तो अपने उतर-दक्षिण दिशा से इतर
आकर्षित होता रहा हूँ हर पल
चकमक प्रकाश हो मेरी तुम
उर्वर ही रहेंगी मेरी कल्पना
फिर से बोलूं ?
चमकते रहना !!
~ मुकेश