जिंदगी की राहें

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Saturday, December 29, 2012

वो जीना चाहती थी


वो जीना चाहती थी 

वो खुशहाल जिंदगी चाहती थी 
अम्मा-बाबा के सपने को पूरा करना चाहती थी ...........

अम्मा-बाबा ने साथ भी दिया 
एक छोटे से शहर से डर-डर कर ही सही 
पर भेजा था उसे इस मानव जंगल में 
वो भी उनके अरमानो को पंख लगाने हेतु 
फिजियोथेरपी की पढाई में अव्वल 
आ करा आगे बढ़ना चाहती थी 
वो जीना चाहती थी ......

वो जीते हुए पढना और बढ़ना चाहती थी 
वो नभ को छूना चाहती थी 
वो सिनेमा हाल से ही तो आयी थी उस समय 
जब उसने परदे से मन में उतारा था सतरंगी सपना ....
वो खुश थी उस रात, 
जब घर पहुँचने की जल्दी में चढ़ गए थी 
सफ़ेद सुर्ख पब्लिक बस पर 
वो तो बस जीना चाहती थी ....

उस सुर्ख सफ़ेद बस के अन्दर 
एक जीने की चाह रखने वाली तरूणी के साथ 
छह दरिंदो ने दिखाई हैवानियत 
उसने झेला दरिंदगी का क्रूरतम तांडव 
इंसानियत हुई शर्मसार 
फिर भी, हर दर्द को सहते हुए पहुंची वो अस्पताल 
तो उसने माँ को सिर्फ  इतना कहा 
माँ मैं जीना चाहती हूँ .........

तेरह दिन हो चुके थे 
उस क्रूरतम दर्द के स्याह रात के बीते हुए 
पर उसकी बोलती आँखे ....
जिसमे कभी माँ-बाबा-भाई का सपना बसता था 
दर्द से कराहते हुए भी 
उसने जीने का जज्बा नहीं छोड़ा 
तीन-तीन ओपरेशन सहा,फिर भी 
अस्पताल के आईसीयू से हर समय आवाज आती 
वो जीना चाहती थी ...

अंततः ऊपर वाले ने ही दगा दे दिया 
उस नवयुवती ने आखिर 
अंतिम सांस लेकर विदा कर ही दिया ....
आखिर जिंदगी को हारना पड़ा 
पर हमें याद रखना होगा 
"वो जीना चाहती थी"
वो बेशक चली गयी पर,
अब भारत के हर आम नारी में उसको जीना होगा 
हर भारतीय नारी को याद रखना होगा 
वो जीना चाहती थी 
वो तुम में जिन्दा है ...
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आज सोलह दिसंबर है........!!