जिंदगी की राहें

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Sunday, June 23, 2019

फितरत



मान लो 'आग'
टाटा नमक के
आयोडाइज्ड पैक्ड थैली की तरह
खुले आम बिकती बाजार में
मान लो 'दर्द'
वैक्सड माचिस के डिब्बी की तरह
पनवाड़ी के दूकान पर मिलती
अठन्नी में एक !
मान लो 'खुशियाँ' मिलती
समुद्री लहरों के साथ मुफ्त में
कंडीशन एप्लाय के साथ कि
हर उछलते ज्वार के साथ आती
तो लौट भी जाती भाटा के साथ
मान लो 'दोस्ती' होती
लम्बी, ऐंठन वाली जूट के रस्सी जैसी
मिलती मीटर में माप कर
जिसको करते तैयार
भावों और अहसासों के रेशे से
ताकि कह सकते कि
किसी के आंखों में झांककर
मेरी दोस्ती है न सौ मीटर लम्बी
छोड़ो, मानते रहो
क्यूंकि, फिर भी, हम
हम ठहरे साहूकार
आग की नमकीन थैली में
दर्द की तीली घिस कर
सीली जिंदगी जलाने की
कोशिश में खर्च कर देते है
पर, नहीं चाहते तब भी
कमर में दोस्ती की रस्सी बांध
समुद्री लहरों पर थिरकना
खुशिया समेटना, खिलखिलाना
खैर, दोस्त-दोस्ती भी तो
माँगने लगी है इनदिनों
फेस पाउडर की गुलाबी चमक
जो उतर ही जाती है
एक खिसियाहट भरी सच्चाई से
सीलन की दहन
बंधन की थिरकन
नामुमकिन है सहन
आखिर यही तो है इंसानी फितरत
है न!!!
~मुकेश~

Thursday, June 6, 2019

सुट्टे की धमक


सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
कि क्या सोचूं ?
जी.एस.टी. के उपरान्त लगने वाले टैक्स पर करूँ बहस,
या, फिर आने वाले पे कमिशन से मिलने वाले एरियर का 
लगाऊं लेखा जोखा
या, सरकारी आयल पूल अकाउंट से
पेट्रोल या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी पर तरेरूं नजर
पर, दिमाग का फितूर कह उठता है
क्या पैसा ही जिंदगी है ?
या पैसा भगवान् नहीं है,
पर भगवान की तुलना में है ज्यादा अहम् !
और, अंततः, बस अपने भोजपुरी सिनेमा के रविकिशन को
करता हूँ, याद, और कह उठता हूँ
"जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा"
अब, अंतिम कश लेने के दौरान
चिंगारी पहुँचती है फ़िल्टर वाले रुई तक
भक्क से जल उठता है
तर्जनी और मध्यमा के मध्य का हिस्सा
और फिर बिना सोचे समझे कह उठता हूँ
भक्क साला .....
जबकि कईयों के फेसबुक स्टेटस से पा चुका हूँ ज्ञान
गाली देना पाप है
रहने दो, डेली पढ़ते हैं, डब्बे पर
स्मोकिंग इज इन्ज्युरिअस टू हेल्थ
जलते गलते जिगर की तस्वीर के साथ
फिर भी, वो धुएं का अन्दर जाना,
आँखों को बाहर निकलते हुए महसूसना
है न ओशो के कथन जैसा
बिलिफ़ इज ए बैरियर, ट्रस्ट इज ए ब्रिज !
लहराता हूँ हाथ
छमक कर उड़ जाती है सिगरेट, साथ ही
हवाओं के थपेड़े से मिलता है आराम
फिर बिना सोचे समझे महसूसता हूँ
उसके मुंह से निकलने वाले जल मिश्रित भाप की ठंडक
देती है कंपकपी
ऐसे भी सोचा, उसकी दी हुई गर्मी ने भी दी थी कंपकंपी
अंततः
दिमाग कह उठा, कल का दिन डेटिंग के लिए करो फिक्स
प्यार समय मांगता है
बिना धुंआ बिना कंपन
बेटर विदाउट सिगरेट ... है न !!!!
~मुकेश~