जिंदगी की राहें

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Sunday, April 27, 2014

इतवार


छह व्यस्त दिन गुजारने के बाद
आ ही गया इतवार
सोचा, खूब आराम करूंगा,
पूरे दिन सो जाऊंगा
करूंगा, खुद को रेजुविनेट !!
पर नींद या ख्वाब
कभी आते हैं बुलाने पर?
भटक रहा हूँ
जबरदस्ती के बंद पलकों के साथ
ढूंढ रहा हूँ स्वयं को
उपस्थिति व अनुपस्थिति के बीच
टंगी दीवाल घड़ी के पेंडुलम की तरह
एक आवर्त में
खोजता हुआ सारांश
न जाने किस विस्तार का
सिलसिला फिल्म के अमिताभ की तरह
तुम होते तो ऐसा होता
तुम होते तो वैसा होता
मेरी कुंद पड़ी सोच भी
बिस्तर पर मुर्दे की तरह लेटे
मेरी ही शिथिल पड़ी दोनों बाँहों के बीच
कसमसाती हुई कर रही मुलाक़ात
आखिर इतबार की सुबह जो है ......
छोड़ो !
बहुत हुआ खुद को ढूँढना उंढना
ऐंवें, सुकून की चाहत
मसनद पर मुँह छिपा कर
शुतुरमुर्ग जैसी फीलिंग की साथ
चलो !
व्यस्त होना ही बेहतर
हर दिन के दिनचर्या मे ही
मिलेगा सुकून का विस्तृत आकाश
अपना आकाश !
~मुकेश~

11 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

जितना व्यस्त रहें उतना सुकून से गुज़रता है दिन...बस अपनी मर्जी के काम किये जाएँ..
:-)

अनु

संध्या शर्मा said...

व्यस्तता भी एक तरह से सुकून ही देती है, दिन कैसे पलक झपकते बीत जाता है पता ही नहीं चलता जरा सा आराम मिला नहीं की फिक्र, सोच आकर खड़ी हो जाती हैं ... व्यस्त रहो , मस्त रहो

दिगम्बर नासवा said...

दिमाग कहाँ सोता है या सोने देता है ... जितना व्यस्त रहे इंसान उतना ही अच्छा है ..

Anju (Anu) Chaudhary said...

सपनों की अनूठी दुनिया

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना बुधवार 30 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

कौशल लाल said...

बहुत सुन्दर.....

कविता रावत said...

खाली दिमाग का शैतान का .. व्यस्त रहने का भी एक अलग ही रोमांच है ... रविवार को तो हमारा दिन कब बीत गया पता ही नहीं चलता ... घर परिवार में काम ही काम ..

आशीष अवस्थी said...

बहुत ही सुंदर , मुकेश भाई धन्यवाद !
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डॉ. मोनिका शर्मा said...

सटीक ...प्रभावी, व्यस्त रहना ही बेहतर है....

संजय भास्‍कर said...

भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति....

Daisy jaiswal said...

बहुत खूब
व्यस्त रहना ही बेहतर