जिंदगी की राहें

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Friday, May 2, 2014

मेरी जिंदगी



मेरी जिंदगी 

बिना हल्दी व कम दाल से बनी 

मरघट्टी खिचड़ी सी 

आखिर अन्न जरूरी है न !

उदर के लिए !

साथ ही, 

छौंक के लिए चढ़े करछुल में

कड़कते तेल में 

फड़फड़ाते जीरे के कुछ 

बेशकीमती दानें

मेरी जिंदगी के कुछ अमूल्य सपने जैसे !!

आखिर थोड़ा स्वाद भी जरूरी है !!

__________________

मेरी जिंदगी ! मेरी अपनी !! 



15 comments:

कविता रावत said...

जिंदगी का जबर्दस्त तड़का
बहुत खूब!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सरल सहज से भाव ,पर अच्छे लगे :)

Daisy jaiswal said...

jivan main chhaunk ka tadka lagtey rehna chahiye bahut sunder rachna

Daisy jaiswal said...

jivan main chhaunk ka tadka lagtey rehna chahiye ....bhut sunder

Daisy jaiswal said...

jivan main chhaunk ka tadka lagtey rehna chahiye ....bhut sunder

Anju said...

छोटी चित्रों को बाखूबी निभाया सुन्दर भाव !!
आकाश के तरह अनंत सागर आपकी जिंदगी......खूबसूरत !!

प्रभात said...

अच्छी रचना सरल शब्दों में!

Anju (Anu) Chaudhary said...

ये तड़का यूं ही कायम रहे

कालीपद "प्रसाद" said...

विचित्र यह जिंदगी
कभी फीका कभी रंग विरंगी !!
New post ऐ जिंदगी !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बिलकुल ज़रूरी है..... जीवन से जोड़ती रचना

मीनाक्षी said...

स्वाद ज़रूरी उसके लिए तड़का भी....बस किसी को झींक या खाँसी न आए....शब्द जितने सरल और शांत भाव उतना ही उफ़ान लिए हुए...

Unknown said...

sahaz-saral shabd,umda bhav,tadka lazbab...

Asha Joglekar said...

मरघट्टी खिचडी ..............चलो जीरे के तडके ने बचा लिया।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



☆★☆★☆



छौंक के लिए चढ़े करछुल में
कड़कते तेल में
फड़फड़ाते जीरे के कुछ
बेशकीमती दाने
मेरी जिंदगी के कुछ अमूल्य सपने जैसे !!
आखिर थोड़ा स्वाद भी जरूरी है !!

वाह ! वाऽह…!
:)

आदरणीय मुकेश कुमार सिन्हा जी
मस्त कविता लिखी...

आना पड़ेगा बार-बार आपके यहां
:)

मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार


Surendra shukla" Bhramar"5 said...

अच्छी रचना ..जिंदगी का जबर्दस्त तड़का