जिंदगी की राहें

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Friday, June 27, 2025

रजनीगंधा या रेन लिली




आज टैरेस पर टहलते हुए

रजनीगंधा की भीनी ख़ुशबू
और रेन लिली की गुलाबी चमक
छा गई कहीं भीतर तलक...
बारिश भी आई
बस तुम्हारी ख़ुशबुओं की तरह...
तुम मुस्काई,
जैसे लटों पर
छतरी से फिसली कोई बूँद
झिलमिलाई हो चुपचाप...
अपने प्रिज्मीय अपवर्तन के साथ
तुम्हारे शब्द भी
उस पल हँस पड़े थे —
काश!
तुम होती रजनीगंधा
और तुम्हारी फ्रॉक पर
टँकी होती गुलाबी लिली...
और मैं, हाँ मैं
माली सा जुड़ा रहता
तुम्हारी देखभाल में
चुपचाप, मगर मगन...
काश! तुम होती
मेरे गमलों की कोई खिलती कविता...!
रचते रहता दिन रात 🥰