खिड़की के पल्ले को पकड़े
कोने से
जहाँ से दिख रहा था
मेरा वर्गाकार आकाश
मेरे वाला धूप
मेरा ही सूरज व चन्दा भी
मेरी वाली उड़ती चिड़िया भी...
दूर तक नजर दौड़ाए
छमकते-छमकाते पलकों के साथ
आसमान की ओर नजरें थमी
तो जेहन खन-खन बजता रहा
घनघनाती रही बेसुरी सांसे
पर लफ्ज नहीं बुदबुदाते
मोड़कर पलकें
जमीं की ओर
लौटती रही आंखें
ऐसे में, बस
इंतजार अंतहीन हुआ करता है
- मुकेश
Showing posts with label आकाश. Show all posts
Showing posts with label आकाश. Show all posts
Wednesday, October 9, 2024
खिड़की
Thursday, December 1, 2016
तड़ित
फटे हुए एम्प्लीफायर स्पीकर की तरह
गडगड़ाता बादल, नमी से लबालब
ट्रांसफॉर्मर के कनेक्शन वाले मोटे तार से
ओवरलोडेड पॉवर सप्लाई के कारण
कड़ कड़ाती बिजली, जो दूर तलक़ दिख रही
किसी रोमांटिक मूवी की बेहद ख़ूबसूरत अभिनेत्री सी
भीगे पल्लू के साथ भागती बारिश
ठहरती/थमती कभी तेज चालों से झनमनाती
कभी लयबद्ध तो कभी बिना किसी लय के
सारा फैला एक टुकड़ा आकाश
राजकपूर की मंदाकिनी सा
गीला-गीला हो उठा,
है हर एक की नजर
आकाश के विस्तार पर जमी
बिखरे टूटे पत्ते व
भीगी सौंधी मिट्टी की महक
चुपके से कह उठी
हाँ वो अभी अभी तो आई थी
एक या दो बूँद
मेरी पलकों पर भी छमकी
आखिर उसकी ही वजह से
बेमौसम मेरे मन का मानसून
टपक पड़ा
स्मृतियों में दरकती मेरी तड़ित
कहीं, तुम मुझे जला मत देना ..........
पल भर में !!
लेबल:
अभिनेत्री,
आकाश,
एम्प्लीफायर,
ट्रांसफार्मर,
तड़ित,
पॉवर,
मानसून,
मिटटी,
स्मृतियाँ
Friday, August 28, 2015
प्यार कुछ ऐसा होता है क्या ?
प्यार कुछ सायकल सा होता है न
जिसके पैडल तो ऊपर नीचे करने होते हैं
जबकि चक्का गोल होता है
पर बढ़ता है सीधे आगे की ओर !!
खड़खडाता हुआ, कभी कभी डगमगाता हुआ भी !!
प्यार उस कुकर सा भी होता है,
जो भीतर ही भीतर उबलते उबालते
स्नेह की खिचडी को पकाता है
और फिर मारता है सीटी
चीखता हुआ ........... !!
जैसे तप कर पूरा हुआ!
आओ अब चख लो इस प्रेम को।
प्यार उड़ते एरोप्लेन सा, सोचना
कितना हसीन सा पल, वो अफसाना
जब होता है महसूस
कोई बाहें फैलाएं, खुद में समेटे
उड़ाते ले जा रहा, वृहतर आकाश में
दूर - बहुत दूर !!
चलो नया सोचो
प्यार फेसबुक के इनबॉक्स सा होता है
सब समझते हैं, सिर्फ प्यार गढ़ा जा रहा है
स्टेटस पर, अपने दीवाल पर
और पता नहीं कब इनबॉक्स प्यार प्रेषित हो जाता है !!
'लव यू' या कोई शेर-गजल या ताजा तरीन पिक्चर
लौटता मेसेज कह सकता है ..........थैंक्स !! लव यू टू !!
प्यार तो ऐसा ही कुछ भी होता है
जो सोचो, जिसको सोचो, सब में प्यार ही प्यार
बस नजरिये की बात
सोच की बात
सम्प्रेषण की बात .......
दिल से दिल को जोड़ने की बात !!
________________
प्यार ! प्यार !! प्यार !!!
(डिस्क्लेमर: ये नितांत जरुरी है, कि रचना को पढ़ते समय, उसको लिखने वाले से न जोड़ा जाये )
Monday, July 21, 2014
धरती और आकाश
ए आकाश !!
बुझाओ न मेरी प्यास
सूखी धूल उड़ाती, तपती गर्मी से
जान तो छुड़ाओ
ठुनकती हुई नवोदित हिरोइन की तरह
बोल उठी हमरी धरती अनायास !!
यंग एंग्री मैंन की तरह
पहले से ही भभका हुआ था बादल
सूरज की चमकती ताप में जलता
गुर्रा उठा हुंह, कैसे बरसूँ
नहीं है मेरे में अभी बरसने का अहसास !!
पता नहीं कब आयेंगे
पानी से लदे डभके हुए मेघ भरे मॉनसून
और कब हम बादलों में
संघनित हो भर जायेंगे जल के निर्मल कण
ए धरती सुनो, तुम भी तो करो प्रार्थना
हे भगवन, भेजो बादल, तभी वो सुनेंगे तुम्हारी अरदास!!
वैसे भी इस कंक्रीट जंगल में
भुमंडलीकरण ने हर ली है हरियाली
फिर भी भले, जितने भी बीते दिन
हो सकता है लग जाये समय, पर
ए धरती, आऊंगा भिगोने
ऐसा तुम रख सकती हो आस !!
भिगोता रहेगा तुम्हे, हमारे
रिश्तो का नमी युक्त अहसास
भींग जाओ तुम तो
फ़ैल जाएँ चहुँ ओर खुशियाँ
चमक उठे पेड़, चहचहाने लगे विहग
मैं आऊंगा, छमछम – छमाछम
बरसाऊंगा नेह जल
सुन रही हो न !!
कह रहा तुम्हारा आकाश, रखना विश्वास !!
मिलन होगा,
जरुर होगा
मिलेंगे एक दिन हम
धरती और आकाश !!
एक मौनसुनी कविता :)
Sunday, April 27, 2014
इतवार
छह व्यस्त दिन गुजारने के बाद
आ ही गया इतवार
सोचा, खूब आराम करूंगा,
पूरे दिन सो जाऊंगा
करूंगा, खुद को रेजुविनेट !!
आ ही गया इतवार
सोचा, खूब आराम करूंगा,
पूरे दिन सो जाऊंगा
करूंगा, खुद को रेजुविनेट !!
पर नींद या ख्वाब
कभी आते हैं बुलाने पर?
भटक रहा हूँ
जबरदस्ती के बंद पलकों के साथ
ढूंढ रहा हूँ स्वयं को
उपस्थिति व अनुपस्थिति के बीच
टंगी दीवाल घड़ी के पेंडुलम की तरह
एक आवर्त में
खोजता हुआ सारांश
न जाने किस विस्तार का
कभी आते हैं बुलाने पर?
भटक रहा हूँ
जबरदस्ती के बंद पलकों के साथ
ढूंढ रहा हूँ स्वयं को
उपस्थिति व अनुपस्थिति के बीच
टंगी दीवाल घड़ी के पेंडुलम की तरह
एक आवर्त में
खोजता हुआ सारांश
न जाने किस विस्तार का
सिलसिला फिल्म के अमिताभ की तरह
तुम होते तो ऐसा होता
तुम होते तो वैसा होता
मेरी कुंद पड़ी सोच भी
बिस्तर पर मुर्दे की तरह लेटे
मेरी ही शिथिल पड़ी दोनों बाँहों के बीच
कसमसाती हुई कर रही मुलाक़ात
आखिर इतबार की सुबह जो है ......
तुम होते तो ऐसा होता
तुम होते तो वैसा होता
मेरी कुंद पड़ी सोच भी
बिस्तर पर मुर्दे की तरह लेटे
मेरी ही शिथिल पड़ी दोनों बाँहों के बीच
कसमसाती हुई कर रही मुलाक़ात
आखिर इतबार की सुबह जो है ......
छोड़ो !
बहुत हुआ खुद को ढूँढना उंढना
ऐंवें, सुकून की चाहत
मसनद पर मुँह छिपा कर
शुतुरमुर्ग जैसी फीलिंग की साथ
बहुत हुआ खुद को ढूँढना उंढना
ऐंवें, सुकून की चाहत
मसनद पर मुँह छिपा कर
शुतुरमुर्ग जैसी फीलिंग की साथ
चलो !
व्यस्त होना ही बेहतर
हर दिन के दिनचर्या मे ही
मिलेगा सुकून का विस्तृत आकाश
अपना आकाश !
व्यस्त होना ही बेहतर
हर दिन के दिनचर्या मे ही
मिलेगा सुकून का विस्तृत आकाश
अपना आकाश !
~मुकेश~
Subscribe to:
Posts (Atom)