जिंदगी की राहें

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Monday, April 14, 2014

मनीप्लांट



मनी प्लांट की लताएँ
हरी भरी होकर बढ़ गई थी
उली पड़ रही थी गमले से बाहर
तोड़ रही थी सीमाएं

शायद पौधा अपने सपनों मे मस्त था
चमचमाए हरे रंगे में लचक रहा था
ढूंढ रहा था उसका लचीला तना
आगे बढ़ने का कोई जुगाड़
मिल जाये कोई अवलंब तो ऊपर उठ जाए
या मिल जाए कोई दीवार तो उस पर छा जाए

पर तभी मैंने हाथ में कटर लेकर
छांट दी उसकी तरुणाई
गिर पड़ी कुछ लंबी लताएँ
जमीन पर, निढाल होकर
ऐसे लगा मानों, हरा रक्त बह रहा हो
कटी लताएँ, थी थोड़ी उदास
परंतु थी तैयार, अस्तित्व विस्तार के लिए
अपने हिस्से की नई जमीन पाने के लिए
जीवनी शक्ति का हरा रंग वो ही था शायद

गमले की शेष मनी प्लांट
थे उद्धत अशेष होने के लिए
सही ही तो है, जिंदगी जीने की जिजीविषा

आखिर जीना इतना कठिन भी नहीं ......।
.. तमसो मा ज्योतिर्गमय ।।

~मुकेश~




7 comments:

Unknown said...

Really awesome words ..Mukesh ji jeena rehna itna kathin nhi par zindagi ko jeena sach mein kathin hi hai ....

Parul Chandra said...

बहुत सुंदर है मनी प्लांट की कहानी..जीना सिखाती हुई।

Shalini kaushik said...

very nice expression .

Unknown said...

jine ki jijivisha ko puri tarah puri karti hai...Maniplant...kitni lachili..kitna samayojan...

आशीष अवस्थी said...

बढ़िया रचना , मुकेश सर धन्यवाद व स्वागत है मेरे लिंक पे -
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~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )

दिगम्बर नासवा said...

जीने कि आशा लिए ... मनी प्लांट .. बहुत खूब ...

Preeti 'Agyaat' said...

सच कहा..जीना इतना कठिन भी नहीं !