जिंदगी की राहें

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Monday, March 14, 2011

छज्जे छज्जे का प्यार

[पिछले दिनों "जी टीवी" पर के धारावाहिक "छज्जे छज्जे का प्यार" कि शुरुआत हुई, बस देखते देखते तुकबंदी सी कुछ बना दी है...अब आप लोग भी झेलें..........:)]



बड़े से और बड़े होते शहर

पर सिमटती हुई जमीन
जिस कारण कम होते घर
एक आम कोलोनी के घर.
अतृप्त प्रेमी-प्रेमिका के बाँहों जैसे
एक दूसरे में आलिंगनबद्ध 
जिस कारण संकरी से संकरी होती गलियां
जैसे हो गयी हो लखनऊ की  भूलभुलैया..

फिर इन घरों के छज्जे '
नए नवेले जोड़ो की  तरह
हर दूसरे  छज्जे को 
स्पर्श करने के लिए बेक़रार
इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे 
तो सूखती बड़ियाँ और अचार 
कभी मर्दों के अर्थशास्त्र की  बहस
चाय की  चुस्कियों के साथ
तो कभी बीबियों के हाथ की सूखती मेहँदी...
और साथ में शिकायतें और गप्पे हजार..
या फिर बच्चो की हुड -दंग
जो अंततः कभी कभी बन जाता जंग-ए-मैदान  !!

पर इन सबके अलावा
कभी कभी इन छज्जो से मिल जाती है 
सोलह की छोरी तो अठारह का छोरा 
और दो जोड़ी बेक़रार आँखें
किताब या कपड़ो की  ओट  का सहारा लेकर 
पर इस डर में भी दीन-दुनिया से अलग
सिहर जाते  है दो शरीर..
पनप उठता है प्यार....
जो दिल से होते हैं बेक़रार..
ऐसा है छज्जे छज्जे का प्यार........
प्यार......
.

67 comments:

vandana gupta said...

वाह जी वाह्………।बहुत ही सुन्दर चित्र उकेरा है कविता के माध्यम से सब कुछ समेट लिया और प्रेम का भी चित्रण कर दिया…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

आनंद said...

bhai achi lagi ye tukbandi aapki....kuchh drishya achhe ban pade hain bhai.jaise ki...
फिर इन घरों के छज्जे '
नए नवेले जोड़ो की तरह
हर दूसरे छज्जे को
स्पर्श करने के लिए बेक़रार
इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे
तो सूखती बड़ियाँ और अचार ...mubarak ho bhai holi bhi to aagaya hai.

अरुण चन्द्र रॉय said...

मुकेश भाई कविता बढ़िया बनी है.. प्यार के विभिन्न आयामों की सुन्दर प्रतुतिकर्ण है आपकी किवता... मैं टी वी तो नहीं देखता लेकिन शायद यह सीरिअल सोनी पर आ रहा है...

Unknown said...

अब जगह नहीं बची है तो छज्जा ही सही। आने वाले दिनों दिनों में यह भी हो सकता है कि छज्जों में परस्पर कनेक्शन कर दिया जाए। एक घर से दूसरे घर में आना-जाना सहज हो जाए। आपने सुंदर लिखा है। बधाई।

Arunesh c dave said...

सुंदर एवं भावपूर्ण

प्रवीण पाण्डेय said...

छज्जे का प्यार पुराने घरों का प्रतीक भी है। नये फ्लैटों में वह संभव नहीं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अरे वाह!
आपने तो बहुत सुन्दर रचना बना दी!

નીતા કોટેચા said...

bahut badhiya likha hai..aap logo ki hindi ..sach..hame kab aayegi itni achchi hindi...

Shalini kaushik said...

bahut samayik abhivyakti...

रश्मि प्रभा... said...

इन सबके अलावा
कभी कभी इन छज्जो से मिल जाती है
सोलह की छोरी तो अठारह का छोरा
की दो जोड़ी बेक़रार आँखें
किताब या कपड़ो की ओट का सहारा लेकर
पर इस डर में भी दीन-दुनिया से अलग
सिहर जाते है दो शरीर..
पनप उठता है प्यार....
जो दिल से होते हैं बेक़रार..
ऐसा है छज्जे छज्जे का प्यार........
प्यार.....waah bhai waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज कल तो छज्जे ही कहाँ मिलते हैं ? तुकबंदी में भी काफी एहसास समेट लिए हैं ..

Neelam said...

कभी कभी इन छज्जो से मिल जाती है
सोलह की छोरी तो अठारह का छोरा
की दो जोड़ी बेक़रार आँखें
किताब या कपड़ो की ओट का सहारा लेकर
पर इस डर में भी दीन-दुनिया से अलग
सिहर जाते है दो शरीर..
पनप उठता है प्यार....
जो दिल से होते हैं बेक़रार..
ऐसा है छज्जे छज्जे का प्यार........

bahut badhiya likha hai..aapki hindi ..sach..hame kab aayegi itni achchi hindi...:) Mukesh ji plss seekha hi dijiye hume bhi aise likhna..:)"

सदा said...

वाह ...बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ...।

दिलबागसिंह विर्क said...

bahut sunder kvita

अंजना said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@वंदना जी.. बस मैंने तो कोशिश कि है...:)
@आनंद भैया...आप तो बस कुछ भी लिखो, उसका अच्छा कह दो
@अरुण जी............सच में एक दम से दिमाग से उतर गया, ये सोनी टीवी पे ही शायद दिखा रहा है..
@अरुणेश जी...........स्वागत
@प्रवीण जी........सही में..पर मैंने बताया न ये तुकबंदी उस धारावाहिक को समर्पित है:)
@डॉ शास्त्री...........सर आपके कमेंट्स सर आँखों पर:)

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मुकेश जी,
आप जिसे तुकबंदी कह रहें हैं वह तो प्यार की बड़ी ही खूबसूरत कविता है जो छज्जे पर उगकर दिलों तक पहुँच जाती है !
आज तक न जाने कितने दिलों को जोड़ने वाली इस छज्जे के प्यार की कविता आपकी कमल से मुखरित होकर अच्छी लगी !
आभार इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए !

दिगम्बर नासवा said...

छज्जे के प्यार को नया रूप दे दिया है आपने ... नये रंग में निखरेगा अब ये प्यार महा नगरों में ....

Shekhar Suman said...

मुझे तो पहले लगा जी टीवी के साथ कहीं आपका अनुबंध तो नहीं हो गया...
फिर देखा ये तो मुफ्त की पब्लिसिटी है...:P
बहुत खूब ...

Anonymous said...

छज्जे छज्जे का प्यार...........एक दम सही विषये चुना है आपने लिखने के लिए..बधाई स्वीकार करे ..(.पर आज कल वो छज्जे मिलते कहाँ है )

Udan Tashtari said...

छज्जे छज्जे प्यार..कुछ यादें...


बहुत बेहतरीन रचना.

Patali-The-Village said...

सुंदर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति। धन्यवाद|

Kailash Sharma said...

फिर इन घरों के छज्जे '
नए नवेले जोड़ो की तरह
हर दूसरे छज्जे को
स्पर्श करने के लिए बेक़रार
इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे
तो सूखती बड़ियाँ और अचार

बहुत भावपूर्ण शब्दचित्र उकेरा है...बहुत संवेदनशील रचना..

Dr (Miss) Sharad Singh said...

किताब या कपड़ो की ओट का सहारा लेकर
पर इस डर में भी दीन-दुनिया से अलग
सिहर जाते है दो शरीर..
पनप उठता है प्यार....
जो दिल से होते हैं बेक़रार..
ऐसा है छज्जे छज्जे का प्यार........
प्यार......


गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई

kshama said...

Wah...wah! Maza aa gaya....harek shabd me zindagee chhalak rahee hai!

केवल राम said...

कविता के माध्यम से आपने जीवन को अभिव्यक्त कर दिया और प्रेम की विभिन्न भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है ..आपने इतना सुंदर चित्र खींचा है कि सब कुछ घटित होते हुए लग रहा है ..आपका आभार मुकेश जी

ज्योति सिंह said...

फिर इन घरों के छज्जे '
नए नवेले जोड़ो की तरह
हर दूसरे छज्जे को
स्पर्श करने के लिए बेक़रार
इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे
तो सूखती बड़ियाँ और अचार ..
sundar vichar ,abhi chand roj huye aur aapne ise apne shabo me badi sundarata se utaar liya .sundar likha hai .

Minakshi Pant said...

kya khub andaz hai pyaar ko darshane ka pyaar ka pyaar ho gya chai bhi pi li mehndi wale haath bhi yaad kar liye or kisi ko khbar tak bhi n hui .
bahut shandar rachna

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सिकुड़ती गलियों और छतों के बीच फैलता प्यार!!अच्छा समेटा है आपने.. सही शब्द मैदाने जंग है जंगे मैदान नहीं!!

दर्शन कौर धनोय said...

बहुत सुन्दर कविता लिखी है-- आपने तो इस सीरियल की पब्लिक -सिटी ही कर दी --बहुत खूब !

Urmi said...

वाह! क्या बात है! बहुत खूब लिखा है आपने!

मेरे भाव said...

फिर इन घरों के छज्जे '
नए नवेले जोड़ो की तरह
हर दूसरे छज्जे को
स्पर्श करने के लिए बेक़रार
इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे
तो सूखती बड़ियाँ और अचार......

chhajje ghar ki aantrik dasha ke baare mein bhi bahut kuchh kah jaate hain. achchha prayas.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@नीता जी, शायद पहली बार आयी आप, स्वागत है आपका.........
@शालिनी जी , रश्मि दी, सदा, दिलबाग, अंजना ............धन्यवाद्
@संगीता दी...बस कोशिश करी है मैंने...:)
@नीलम आप हर बार मुझे झार पे क्यूं चढाते हो :)

वाणी गीत said...

पुराने समय के माहौल को साकार कर दिया कविता ने ..
इतनी फुर्सत वाले परिवार और बच्चे अब कहाँ रह गए हैं ..
आनेवाले धारावाहिक से जोड़कर अच्छा चित्र खिंचा है !

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय मुकेश जी
नमस्कार !
आपने तो बहुत सुन्दर रचना बना दी!
बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति

संजय भास्‍कर said...

सुंदर प्रस्तुति

संजय भास्‍कर said...

कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

डॉ. जेन्नी शबनम said...

छज्जे पर प्यार छज्जे पर घर संसार, आम-ख़ास बातें और कभी होती तकरार...क्या बात है, बहुत बढ़िया लिखा आपने, बधाई मुकेश जी|

लाल कलम said...

bahut sundar
achhi chitratmak prastuti

निर्मला कपिला said...

ाभी तो सीरियल शुरू हुया है देक्ल्हते हैं उसमे भी आपकी कविता जैसे ही रंग होंगे या नही। वैसे मलखान सिंह जी ने भी सही कहा। अब गार्डन मे तो शिवसेना कभी बजरंग दल कहर ढाते हैं छ्ज्जे पर किसका डर? सुन्दर कविता के लिये बधाई।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@हाँ दिगंबर सर.............ऐसा ही लगता है मुझे..:)
@ज्ञानचंद जी आपके शब्द मुझे प्रेरित करेंगे...धन्यवाद्...
@हा हा हा हा...........काश ऐसा हो जाये शेखर!!
@वो तो बस जो मन में आया, चला दिया कलम....है न अंजू जी..:)
@धन्यवाद् समीर भैया, "पताली:", कैलाश सर.., डॉ. शरद
@क्षमा..अगर ऐसा है , तो अच्छा लग रहा है...मन में..!

Neeraj said...

शीर्षक गीत बनवा दीजिये

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बहुत सुन्दर रचना .....तीनों बंद अच्छे .....आखिरी बंद फागुन के रंग |

POOJA... said...

वाह आपने तो पूरे-पूरे सीरियल की व्याख्या कर दी...
बहुत खूब...

Sanjay Swaroop Srivastava said...

इन्ही छज्जो पे सूखते कपडे
तो सूखती बड़ियाँ और अचार
कभी मर्दों के अर्थशास्त्र की बहस
चाय की चुस्कियों के साथ
तो कभी बीबियों के हाथ की सूखती मेहँदी...
और साथ में शिकायतें और गप्पे हजार..
या फिर बच्चो की हुड -दंग
जो अंततः कभी कभी बन जाता जंग-ए-मैदान !!

आम दिनचर्या को छज्जे के माध्यम से बखूबी उकेरा है आप ने ..... बधाई सुन्दर रचना के लिए ....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@केवल जी आभार तो आपका है, जो आप इतने प्यारे से कमेन्ट देते हो..:)
@बस ज्योति जी, कोशिश कि है............
@ हे हे हे...हाँ मिनाक्षी, यही तो जिंदगी है.....एक आम जिंदगी...:)
@बड़े भैया, अभी ठीक करता हूँ............
@दर्शन जी..............देखिये ने अब तक टीवी वालो ने पब्लिसिटी करने के एवज में कुछ भी नहीं दिया..:डी

ZEAL said...

दो छज्जों के बीच पनपता प्रेम भी सिमट गया है शहरों की सिमटती ज़मीन के मानिंद।

DAISY ki batey DIL sein said...

aap kuch bhi likh saktey hein
hum to sochtey hi rhey jatey hein
salam hein aapko

शारदा अरोरा said...

एक आम सी बात , मगर बड़ी हट कर ..
होली की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकारें |

राजेश उत्‍साही said...

रहने को घर नहीं है
सारा जहां हमारा
छज्‍जा बचा कहां है
रोता है दिल बेचारा

हरकीरत ' हीर' said...

धारावाहिक से कविता ...
वाह कमाल की .....

kshama said...

Holi mubarak ho!

Satish Saxena said...

होली पर शुभकामनायें स्वीकार करें मुकेश भाई !!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

होली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं। ईश्वर से यही कामना है कि यह पर्व आपके मन के अवगुणों को जला कर भस्म कर जाए और आपके जीवन में खुशियों के रंग बिखराए।
आइए इस शुभ अवसर पर वृक्षों को असामयिक मौत से बचाएं तथा अनजाने में होने वाले पाप से लोगों को अवगत कराएं।

Urmi said...

बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

दिगम्बर नासवा said...

आपको और समस्त परिवार को होली की हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएँ ....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

रंग-पर्व पर हार्दिक बधाई.

Dorothy said...

नेह और अपनेपन के
इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.

आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.

Sawai Singh Rajpurohit said...

रंग के त्यौहार में
सभी रंगों की हो भरमार
ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।

आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो। आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो व सपनों को साकार करें। आप जिस भी क्षेत्र में कदम बढ़ाएं, सफलता आपके कदम चूम......

होली की खुब सारी शुभकामनाये........

सुगना फाऊंडेशन-मेघ्लासिया जोधपुर,"एक्टिवे लाइफ"और"आज का आगरा" बलोग की ओर से होली की खुब सारी हार्दिक शुभकामनाएँ..

Apanatva said...

Mukeshjee sunder prastuti......
paapad aur badiya abhee bhee sookh rahee hai kuch chato par jaan sukhad anubhooti huee.
mujhe to lag raha tha ab vohamare wala jamaana gaya .
ek arase baad laptop touch kiya hai jo kuch choota hai padne me mera hee nuksaan raha .aisaa prayas rahe ki na ho.
shubhkamnae.

Khare A said...

bahut hi achhe se majedaar dhang se apane kavita rachi!

badhai ho, holi ki shubkamnaye

Kavita Prasad said...

कितनी मासूम सी रचना है, सादगी, पुराने रिवाज़, परस्पर मेल मिलाप और सौहार्द से परिपूर्ण!

बधाई...

mridula pradhan said...

bahut achcha likhe hain.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@धन्यवाद् बबली , "मेरे भाव",
@बस वाणी जी कोशिश कि है.............आपको अच्छा लगा, यही बहुत है!
@धन्यवाद् संजय...और बधाई विवाह के लिए..
@शुक्रिया जेन्नी दी.
@दीप, नीरजे जी, शायद आप पहली बार आये, शुक्रिया
@निर्मला दी..आपके शब्द अच्छे लगे...
@सुरेन्द्र सर...धन्यवाद्
@पूजा, संजय जी, ...ऐसा है क्या..

DR. ANWER JAMAL said...

a true picture , nice.

honesty project democracy said...

हाँ सही कहा आपने अब इंसानी संवेदनाओं से भरा प्यार नहीं बल्कि कंक्रीट के छज्जों का मिलन जैसा ही प्यार हो गया है इन टीवी वालों के दिमागी दिवालियापन के समाज पर कुप्रभाव परने से....प्यार और संवेदना पर पैसा और बाजारवाद का असंतुलित प्रहार उसे लहू लुहान कर रहा है....

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

waah mukesh ji is rachna se to kayiyon ke apne bite din yaad aa gaye hongen ......... mai bhi achhuti nahi rahi bahut sunder prastuti ......