जिंदगी की राहें

जिंदगी की राहें

Followers

Friday, June 15, 2012

~: जिंदगी :~

कभी कभी ....
सुबह की सतरंगी धुप भरी भोर..
दिखती है, एकदम अलग
एक अलग मायने के साथ
और जिंदगी
में कुछ खुबसूरत पल
खिल उठते हैं
कलियों से फूलो में बदलते हुए....
जिंदगी पाती है
एक नया खुबसूरत अर्थ
बदलता हुआ आयाम..
पाता है एक विस्तार जिंदगी में
कहीं दूर से आने वाली आवाज
...... की तरंगे
संगीतमय लगती है कानो को....
गुद-गुदा देती है ...
है ना............!
मन...
मन का आँगन
हो जाता है सुवासित !
बहुत सी छोटी छोटी बातें
अनाम यादें
अनकहा रिश्ता
हमें रचता है
ऐसे ही तो बन जाती है
जिंदगी.....
खुशनुमा कभी कभी .... !
आशाओं के कण से
सिंची एक हरी भरी बेल सी.......!..
दिलकश............!!
कर देती है अन्दर
तरोताजा कभी कभी .... !!!
जैसे छोटे बच्चे के
मुख से टपक रहा हो
केडबरी चोकलेट का रस....!!
या अभी अभी हुई
बारिश की बूंदों से
भींगा हुआ खुबसूरत सा
हसीन चेहरा !!
.

Friday, May 18, 2012

~ कल और आज ~



"अगे मैया

मर जइबे"

छाती की बढती धड़कन

का दर्द

या,

कभी कभी न पढने का बहाना !

फिर

मचा देती थी

कोहराम......... मेरी दादी माँ!

.

आज पूरी रात

अथाह परेशानियों के दर्द तले

सो जाते हैं

सिसकते हुए, बिना आंसू के

और फिर नयी सुबह

"टिंच" पैंट शर्ट के साथ

हल्की मुस्कराहट के साथ

पहुँच जाते हैं ऑफिस ! ऑफिस !!


Thursday, May 3, 2012

facebook पे हम !






विभिन्न लुभावनी


बदलती

display picture

के साथ

यहाँ नजर आते हैं हम ।

उस पर दिखते likes

की संख्या से

अपने को खुश करते हैं हम ।

पर आईने के सामने

खुद को खड़ा करने से

बचते हैं हम ।

घर पर trust को तोड़ कर

बहुतों बार विश्वास और भरोसे

से wall को सजाते हैं हम ।

मन व उसकी उड़ान को

key board से computer screen

तक बांध कर रखते हैं हम ।

काम बेशक कम हो

उपलब्धियों की लिस्ट से

खुद को सजाते हैं हम ।

Jeans, t-shirt मे बैठकर

कानो मे लगे earphone

पर Madonna की आवाज के साथ

भारतीय संस्कृति बचाने

की topic पर

हिस्सा लेते हैं हम ।

चमकती आंखे हैं

पर दृष्टि नहीं

दर्द एवं पीड़ा से

लुटपीट कर

अपने को सरताज बनाते हैं हम |

बेशक पूरी जिंदगी

एकाकीपन मे काट दी

दोस्ती पर हर दिन

नए शेर post करते हैं हम ।

गंदी नजर, घृणित सोच के साथ

हर समय female friend

के दिल पर

राज करने की कोशिश

करते हैं हम ।

अपनो से बेशक

मुंह फुलाए रहे

आभासी दुनिया मे

muaaaah.।

kisses..।

love...।

जैसे शब्द जताते हैं हम ।

स्वयं को

दो profile मे

बाँट कर

दोहरी जिंदगी जीने की कोशिश

करते हैं हम.।

अपने काले चेहरे को बेदाग

दिखाते हैं हम..।

ऐसे है हम.।

facebook पे हम ।

- मुकेश सिन्हा

Tuesday, April 24, 2012

मेरे अंदर का बच्चा
























मेरे अंदर का बच्चा

क्यूँ करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।



जब मैं था

खूबसूरत सा गोलमटोल बच्चा

तो मेरे अंदर का बच्चा

बना हुआ था पूरे घर का प्यारा।

दादा-दादी का दुलारा |



जब मैं हो गया था जवान

थी उम्र कुछ कर दिखाने की

थी उम्र प्यार की, रोमांस की

पर, वक़्त की जरूरत

व कमियों मे खोने लगा मैं

लेकिन वो अंदर का बच्चा

भर देता एक अदम्य ताकत मुझमें

लड़कर थके हुए जीवन

के शुरुआत मे भी

सँजो कर रखता था

 से मुझको ।



हर एक नए दिन मे

मेरे अंदर का वो साहसी बच्चा

प्यार से कहता

"आज तू जरूर जीत पाएगा"

पर वो बात थी अलग

सुबह की जीत

बन जाती

शाम की हार |

फिर भी वो बच्चा

हर दर्द व विषाद के बाद भी

मुझमे भर देता खुशी

कुछ क्षणिक मुस्कुराहट

"कल जीतेंगे न" |



मेरे अंदर का बच्चा

क्यूं हर बार दिल से बनाये अपने को
क्यों दिखाता है गुस्सा

क्यों सँजो कर रखता है प्यार ।



आज़ भी वो बच्चा

कभी कूकता है कान मे

तो कभी खींचता है बाल

इस कठोर से जीवन मे भी

कभी तो लाता है मासूमियत

तो कभी कभी

मचलता है उसका दिल

भर देता है छिछोरी हरकत

मेरे अंदर का ये कमजोर बच्चा

पर छोटे से दुख मे भी कराहता है

छटपटता है ..।

ढूँढता है .। किसी को

पर किसको ? पता नहीं ?


मेरे अंदर का बच्चा


क्यूँ करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।





Friday, April 13, 2012

"क्षितिजा"




कवितायेँ मन की सोच, अहसास होती है, जिन्हें शब्दों में पिरो कर कवि ह्रदय अपने को सबके सामने रखता है| कविताओं के द्वारा फूटने वाले शब्द, एक सदाबहार वृक्ष की पुष्प के भांति है, जिससे निकलता सुगंध उस वृक्ष की सारी विशेषताएं बता देता है|

पिछले दिनों मेरी मित्र ब्लोगर "श्रीमती अंजू चौधरी" की प्रथम काव्य संग्रह "क्षितिजा" का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में हुआ | इसका प्रकाशन "हिंदी युग्म" ने किया है|  उम्मीद थी, विमोचन के बाद  कवियत्री के हस्ताक्षर से युक्त पुस्तक की एक प्रति  मिल जाएगी...:). पर, हम पिछले कतारों में बैठे एक आम पाठक को ये नसीब नहीं हुआ.| पर अंततः करीब डेढ़ महीने बाद ही सही, 4-5 बार मुफ्त की प्रति के लिए मनुहार करने के बाद कोरियर के द्वारा भेजी गयी "क्षितिजा" मेरे हाथो में थी | तो लगे हाथो, एक दम से एक नेक ख्याल मन में आया, क्यूं न समीक्षा जैसी कोशिश अपने शब्दों में की जाये... | उसूल भी बनता है, क्योंकि 250/- मूल्य की पुस्तक मुफ्त में मेरे हाथो में थी.|

सर्वप्रथम पुस्तक की मुख्यपृष्ठ एक बहुत ही सार्थक चित्रण के साथ कवियत्री के नारी मन के द्वंदों को दर्शाता हुआ दिख रहा है और इसके लिए प्रकाशक को शत प्रतिशत नंबर मिलने चाहिए |

अब रचनाओ पर आते हैं, वैसे तो ये संग्रह कवियत्री के अलग-अलग समय के अलग अलग सोच को दर्शाते हैं, पर श्री व्यथित सर (जिन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है ) के अनुसार सच में , इन रचनाओ में स्त्री की सम्पूर्णता को समेट रखा है ..|

“लिखते लिखते रूकती
लेखनी का असमंजस
पढने के बाद
समझ का असमंजस.......”’
पुस्तक के प्रथम कविता की पहली चार लाइने ही बताने लगती है की कैसे कवित्री  का स्त्री मन भावनाओं, संवेदनाओं को प्रकट करने में असमंजस की स्थिति में खुद को पा रही है |
 
 “......मैंने तो हूँ तेरे संग
तेरे हर रंग में
तेरे हंसी में
तेरे ही सोच में
तेरे हर बात में
तेरे उड़ानों में
तेरे हर कल्पना के रंगों में...........”

कितने आम से शब्द, पर अन्दर तक छूने वाली सोच से रु-ब-रु हो जाते हैं इस संग्रह में ...:)... है न!!

“..........
मेरी दोस्ती
मेरा साथ
मेरा अकेलापन
अब तेरा साथ
मेरी यादें बन जाये
कहीं अफसाना
सब है हम दोनों के मध्य
इन्हें संभाल के  रखना
...............”
एक स्त्री मन का मित्रता में विश्वास दिखाने वाली खुबसूरत कविता ... दो टुक शब्दों में समझाई हुई...:)
कवियत्री अपने हर रचना में कुछ कहती हुई, कभी मन की बात तो कही दर्द को उकेरती हुई .. पर जो खासियत है, वो ये है की छोटे छोटे साधारण से शब्द एक साथ समाहित हो कर दिल को छूते हैं, और यही खासियत है .. इस रचनाकार के रचना की...:)
  
“अहंकार के अहम् में
हर कोई अँधा यहाँ
दौलत के नशे में चूर
हर इंसान
उस शुन्य में भटकता सा क्यूँ है.....”
कभी कभी लगता है सिर्फ प्रेम, अकेलापन व खुद के अहसासों को शब्दों में जीया है कवियत्री ने पर कुछ रचनाएँ एक दम अलग बयां करती है ..

“... हे गौतम बुद्ध
तुम एक भाव
जरुर हो
पर पूर्ण कविता नहीं..........”

इस पुस्तक के अंत में एक रचना है "चाय का कप"“
तो चाय का कप तो नहीं
तुमने मेरे हाथो में
अपनी शब्दों से बुनी
जो क्षितिजा को पकडाया
तो तुम्हारे अहसास
तुम्हारे शब्द
का सम्प्रेषण
मेरे मन तक
उड़ते हुए
पहुँच पाया....”

बस हर कवि की यही तो इच्छा होती है की उसके शब्दों से बुना हुआ ताना-बाना  पाठक के मन-मस्तिष्क में उतर पाए.. और अंततः मेरी समझ कहती है
वो सफल रही...!
अंजू चौधरी आप बहुत आगे जाओगे, ऐसा मुझे लगता है ...:)
आभार !

28.04.2012.... एक बात और आप सबसे कहना है, श्रीमती अंजू चौधरी को इस किताब के लिए पिछले दिनों नागपुर में महादेवी अवार्ड से नवाजा गया !!

मुकेश कुमार सिन्हा

Saturday, March 24, 2012

आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा!!


दृश्य एक :-
बम और गोले की खेंप
पहुँच जाएगी समय पर
ढा दो दहशत
बिछा दो लाशें
बजा दो ईंट पर ईंट
फ़ाड़ दो सत्ताधारी सरकार के कान
फोन पर आ रही थी -
.... फुसफुसाहट भरी आवाज...!


दृश्य दो :-
भड़ाम!!
कुछ लाल मांस के चीथड़े
आसमान में उड़ते
हलकी सी ख़ामोशी
और फिर
खून, खून..
खून से लथपथ लाशें..
व कराहता शरीर
दहाड़ मारती आवाजें
और फिर नीरवता
आतंकवाद का खूनी चेहरा
डरावना........!! भयावह !


दृश्य तीन :-
हजारों की भीड़
साथियों !!
वक्त आ चुका है -
अब हम न झुकेंगे
कमर कस कर करेंगे
मुकाबला
चुन-चुन कर लेंगे बदला
इस निकम्मी सरकार को भगाओ
तालियाँ...
गड़गड़ाहट...!!!


क्या समझ में आया??
तीनो दृश्यों से दिख पाया??
आतंकवाद का  राजनीतिक चेहरा !!

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............

Friday, March 2, 2012

शेर सुनाऊं...



















कब और कैसे शेर सुनाऊं!!


हो जाये भोर, छिटके हरीतिमा

...तो शेर सुनाऊं!!

गरम चाय का कप

सुबह सुबह जबरदस्ती उठाना...

तो कैसे शेर सुनाऊं!!

बच्चो कि तैयारी

प्यारी की फुहारी..

तब शेर कैसे सुनाऊं!!

टूथ ब्रश, सेविंग ब्रश, जूते का ब्रश

सबको है जल्दी...

कैसे शेर सुनाऊं!!

आफिस के लिए हो रहा लेट

करना है नाश्ता...

कैसे शेर सुनाऊं!!

सामने पड़ी है फाइलें

काम का बोझ

किस तरह शेर सुनाऊं !!

दिमाग में चल रहे हैं

छत्तीस काम

कहाँ से शेर लाऊं !!

हो गयी शाम

पहुंचे घर

बच्चो की फरमाइश

दब गयी शेर...

अब शेर कैसे सुनाऊं!!

सब्जी, दूध, राशन

पर्स में पैसे

आमदनी अट्ठन्नी

खर्चा रुपैया

शेर हो गया ग़ुम.

कैसे शेर सुनाऊं !!

हो गयी रात

प्रिये के बंधन में

आने लगी नींद..

खिलने लगे खबाब

ऐ!!!

कानो में प्यार के बोल

क्या? प्यार से शेर बुदबुदाऊं........!!!!