कवितायेँ मन की सोच, अहसास होती है, जिन्हें शब्दों में पिरो कर कवि ह्रदय अपने को सबके सामने रखता है| कविताओं के द्वारा फूटने वाले शब्द, एक सदाबहार वृक्ष की पुष्प के भांति है, जिससे निकलता सुगंध उस वृक्ष की सारी विशेषताएं बता देता है|
पिछले दिनों मेरी मित्र ब्लोगर "श्रीमती अंजू चौधरी" की प्रथम काव्य संग्रह "क्षितिजा" का विमोचन अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, प्रगति मैदान, नई दिल्ली में हुआ | इसका प्रकाशन "हिंदी युग्म" ने किया है| उम्मीद थी, विमोचन के बाद कवियत्री के हस्ताक्षर से युक्त पुस्तक की एक प्रति मिल जाएगी...:). पर, हम पिछले कतारों में बैठे एक आम पाठक को ये नसीब नहीं हुआ.| पर अंततः करीब डेढ़ महीने बाद ही सही, 4-5 बार मुफ्त की प्रति के लिए मनुहार करने के बाद कोरियर के द्वारा भेजी गयी "क्षितिजा" मेरे हाथो में थी | तो लगे हाथो, एक दम से एक नेक ख्याल मन में आया, क्यूं न समीक्षा जैसी कोशिश अपने शब्दों में की जाये... | उसूल भी बनता है, क्योंकि 250/- मूल्य की पुस्तक मुफ्त में मेरे हाथो में थी.|
सर्वप्रथम पुस्तक की मुख्यपृष्ठ एक बहुत ही सार्थक चित्रण के साथ कवियत्री के नारी मन के द्वंदों को दर्शाता हुआ दिख रहा है और इसके लिए प्रकाशक को शत प्रतिशत नंबर मिलने चाहिए |
अब रचनाओ पर आते हैं, वैसे तो ये संग्रह कवियत्री के अलग-अलग समय के अलग अलग सोच को दर्शाते हैं, पर श्री व्यथित सर (जिन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिखी है ) के अनुसार सच में , इन रचनाओ में स्त्री की सम्पूर्णता को समेट रखा है ..|
“लिखते लिखते रूकती
लेखनी का असमंजस
पढने के बाद
समझ का असमंजस.......”’
पुस्तक के प्रथम कविता की पहली चार लाइने ही बताने लगती है की कैसे कवित्री का स्त्री मन भावनाओं, संवेदनाओं को प्रकट करने में असमंजस की स्थिति में खुद को पा रही है |
“......मैंने तो हूँ तेरे संग
तेरे हर रंग में
तेरे हंसी में
तेरे ही सोच में
तेरे हर बात में
तेरे उड़ानों में
तेरे हर कल्पना के रंगों में...........”
कितने आम से शब्द, पर अन्दर तक छूने वाली सोच से रु-ब-रु हो जाते हैं इस संग्रह में ...:)... है न!!
“..........
मेरी दोस्ती
मेरा साथ
मेरा अकेलापन
अब तेरा साथ
मेरी यादें बन जाये
कहीं अफसाना
सब है हम दोनों के मध्य
इन्हें संभाल के रखना
...............”
एक स्त्री मन का मित्रता में विश्वास दिखाने वाली खुबसूरत कविता ... दो टुक शब्दों में समझाई हुई...:)
कवियत्री अपने हर रचना में कुछ कहती हुई, कभी मन की बात तो कही दर्द को उकेरती हुई .. पर जो खासियत है, वो ये है की छोटे छोटे साधारण से शब्द एक साथ समाहित हो कर दिल को छूते हैं, और यही खासियत है .. इस रचनाकार के रचना की...:)
“अहंकार के अहम् में
हर कोई अँधा यहाँ
दौलत के नशे में चूर
हर इंसान
उस शुन्य में भटकता सा क्यूँ है.....”
कभी कभी लगता है सिर्फ प्रेम, अकेलापन व खुद के अहसासों को शब्दों में जीया है कवियत्री ने पर कुछ रचनाएँ एक दम अलग बयां करती है ..
“... हे गौतम बुद्ध
तुम एक भाव
जरुर हो
पर पूर्ण कविता नहीं..........”
इस पुस्तक के अंत में एक रचना है "चाय का कप"“
तो चाय का कप तो नहीं
तुमने मेरे हाथो में
अपनी शब्दों से बुनी
जो क्षितिजा को पकडाया
तो तुम्हारे अहसास
तुम्हारे शब्द
का सम्प्रेषण
मेरे मन तक
उड़ते हुए
पहुँच पाया....”
बस हर कवि की यही तो इच्छा होती है की उसके शब्दों से बुना हुआ ताना-बाना पाठक के मन-मस्तिष्क में उतर पाए.. और अंततः मेरी समझ कहती है
वो सफल रही...!
अंजू चौधरी आप बहुत आगे जाओगे, ऐसा मुझे लगता है ...:)
आभार !
28.04.2012.... एक बात और आप सबसे कहना है, श्रीमती अंजू चौधरी को इस किताब के लिए पिछले दिनों नागपुर में महादेवी अवार्ड से नवाजा गया !!
मुकेश कुमार सिन्हा
28 comments:
Ye sangrah padhne ka bada man ho raha hai!
अच्छा परिचय!! सार्थक प्रतिक्रया!!
अच्छा किया अपना धर्म निभा कर.हम भी जान गए क्षितिजा की विशेषताएं.
itni prateeksha to karni bhi chahiye.badhai pustak milne ke liye aur mitr ki pustak chhapne ke liye.
bahut sundar prastuti.मंज़िल पास आएगी.
अंजू जी कि कवितायेँ ह्रदय से निकले उदगार हैं ....वे निश्चय ही बहुत आगे जाएंगी ...उन्हें शुभकामनायें ...और आपको बधाई इस सार्थक प्रयास के लिए ....
बढ़िया समीक्षा ..
बेहद उम्दा तरीके से आपने बताया 'क्षितिजा' के बारे मे ... मौका मिला तो जरूर पढ़ेंगे !
सुन्दर समीक्षा ...
बहुत अच्छी समीक्षा...........
शुभकामनाये अंजु जी को और आपको भी..........
सादर.
बहुत अच्छी समीक्षा
अंजु जी को और आपको शुभकामनाएँ!
अच्छी समीक्षा...बेहद उम्दा
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...!!!
सुन्दर समीक्षा!
बेहतरीन समीक्षा...
एक अच्छी कोशिश।
साधुवाद आपका कि आपने यह स्वीकार किया कि मु्फ्त की प्रति पाने के लिए आपने चार-पांच बार आग्रह किया तब जाकर आपको प्रति प्राप्त हुई। पर मुकेश भाई मुफ्त पाने का यह आग्रह क्योंकर। मुझे लगता है ऐसा करके हम पाठक के नाते स्वयं को अपमानित करते हैं। दूसरी ओर लेखक को भी एक ऐसी स्थिति में डाल देते हैं जहां उसके लिए मु्फ्त में सबको प्रतियां देना संभव नहीं होता। यह बात मैं हाल ही में प्रकाशित अपने कविता संग्रह 'वह, जो शेष है'के बाद हुए अनुभवों के आधार पर कह रहा हूं।
वाह मुकेश शानदार समीक्षा की है अब तो तुम भी समीक्षक बन गये ………सच मे सूक्ष्म अवलोकन किया है।
Vaah Ek saarthak post.
सरल शब्दों में व्यक्त मन के भाव, अंजूजी को बहुत बधाई..
उत्सुक करती समीक्षा...
आदरणीया अंजू जी को सादर बधाईयाँ...
सुंदर समीक्षा । पढने को प्रेरित करती ।
hmmmmmm
lekhak mann ko sahi padhaa aapne
badhayi
abhaar nimantran ke liye
naaz
कविताएँ तो अच्छी लगी ही ,साथ में समीक्षा भी ....:)
मुकेश ...पहले तो क्षमा चाहूँगी कि नेट पर ना हो पाने की वजह से मैं ब्लॉग जगत से दूर रही ...
मोबाईल नेट पर तुम्हारी ''क्षितिजा '' को लेकर लिखी गई ..समीक्षा पढ़ने को मिली
बहुत सटीक शब्दों में लिखा हैं तुमने ...उसके लिए आभार
और आप सभी साथी लेखकों का भी जो हमको पढते हैं और हौंसला बढ़ाते हैं ...उनका भी दिल से शुक्रिया
मुकेश ...पहले तो क्षमा चाहूँगी कि नेट पर ना हो पाने की वजह से मैं ब्लॉग जगत से दूर रही ...
मोबाईल नेट पर तुम्हारी ''क्षितिजा '' को लेकर लिखी गई ..समीक्षा पढ़ने को मिली
बहुत सटीक शब्दों में लिखा हैं तुमने ...उसके लिए आभार
और आप सभी साथी लेखकों का भी जो हमको पढते हैं और हौंसला बढ़ाते हैं ...उनका भी दिल से शुक्रिया
सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
कृपया मेरी १५० वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें , अपनी राय दें , आभारी होऊंगा .
बढ़िया समीक्षा.... आप अच्छे आलोचक भी हैं... मेरी पुस्तक भी आई है ज्योतिपर्व प्रकाशन से... कभी उसकी भी समीक्षा कीजिये...
बहुत ही अच्छी समीक्षा की है आपने ...आभार
अंजू चौधरी जी की अनुपम कृति 'क्षितिजा' को मिले महादेवी वर्मा सम्मान मिलने पर कोटि कोटि बधाई...क्षितिजा...अर्थात सीता यानि नारी के विविध रूप.....क्षितिज ..जहाँ धरती आकाश के मिलन का भ्रम होता है....उससे उत्पन्न..नारिनुमा वस्तु.. .. के चित्रण..अपने में बहुत कुछ समेटे होगा..जिसे अंजू जी ने .. शब्दों में बांधा है..रचनाएँ नहीं पढ़ी अभी मैंने..पर इस समीक्षा ने उत्सुकता बढ़ा दी है....
इस नयी विधा में पहली सार्थक कोशिश के लिए तुम्हे बधाई...और शुभकामनायें...आगे की समीक्षाओं और नव सृजन के लिए '..
बहुत अच्छी समीक्षा बधाई आपको, आपकी मित्र को !
आभार .......
अच्छी समीक्षा की है ...
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