बचपन में थी चाहतें कि
बनना है क्रिकेटर
मम्मी ने कहा बैट के लिए नहीं हैं पैसे
तो अंदर से आई आवाज ने भी कहा
नहीं है तुममे वो क्रिकेटर वाली बात
वहीं दोस्तों ने कहा
तेरी हैंडराइटिंग अच्छी है
तू स्कोरर बन
और बस
इन सबसे इतर
फिर बड़ा हो गया
बनना है क्रिकेटर
मम्मी ने कहा बैट के लिए नहीं हैं पैसे
तो अंदर से आई आवाज ने भी कहा
नहीं है तुममे वो क्रिकेटर वाली बात
वहीं दोस्तों ने कहा
तेरी हैंडराइटिंग अच्छी है
तू स्कोरर बन
और बस
इन सबसे इतर
फिर बड़ा हो गया
जिंदगी कैसे बदल जाती है न
सुर चढ़ा बनूंगा कवि, है न सबसे आसान
पर
हिंदी की बिंदी तक तो लगाने आती नहीं
फिर भी घालमेल करने लगे शब्दों से
भूगोल में विज्ञान का
प्रेम में रसायन का
गणित के सूत्रों से रिश्ते का
रोजमर्रा के छुए अनछुए पहलुओं का
स्वाद चखने और चखाने की
तभी किसी मित्र जैसे, ने मारा तंज़
कभी व्याकरण पढ़ लो पहले
तुकबंदी मास्टर
पर होना क्या था
मृत पड़े ज्वालामुखी से रिसने लगी
श्वेत रुधिर की कुछ बूँदें
जो सूख कर
हो गई रक्ताभ,
खैर न बन पाये तथाकथित कवि
पर
हिंदी की बिंदी तक तो लगाने आती नहीं
फिर भी घालमेल करने लगे शब्दों से
भूगोल में विज्ञान का
प्रेम में रसायन का
गणित के सूत्रों से रिश्ते का
रोजमर्रा के छुए अनछुए पहलुओं का
स्वाद चखने और चखाने की
तभी किसी मित्र जैसे, ने मारा तंज़
कभी व्याकरण पढ़ लो पहले
तुकबंदी मास्टर
पर होना क्या था
मृत पड़े ज्वालामुखी से रिसने लगी
श्वेत रुधिर की कुछ बूँदें
जो सूख कर
हो गई रक्ताभ,
खैर न बन पाये तथाकथित कवि
बदलती जिंदगी कहाँ कुछ बनने देता है
कभी दिल से रही करीब, एक खूबसूरत ने
कहा, रहो तुम अपने मूल आधार से करीब
यही अलग करती है तुमको, सबसे
दिमाग का भोलापन ऐसा कि
स्नेह से सिक्त उसके माथे से चुहचुहाती बूंद के
प्रिज़्मीय अपवर्तन में खोते हुए
की कोशिश ध्यान की
की कोशिश मूलाधार चक्र को जागृत करने की
अजब गज़ब पहल करने की ये कोशिश कि
कोशिकाओं की माइटोकॉन्ड्रिया
जो कहलाती है पावर हाउस,
ने लगा दी आग
तन बदन में
कहा, रहो तुम अपने मूल आधार से करीब
यही अलग करती है तुमको, सबसे
दिमाग का भोलापन ऐसा कि
स्नेह से सिक्त उसके माथे से चुहचुहाती बूंद के
प्रिज़्मीय अपवर्तन में खोते हुए
की कोशिश ध्यान की
की कोशिश मूलाधार चक्र को जागृत करने की
अजब गज़ब पहल करने की ये कोशिश कि
कोशिकाओं की माइटोकॉन्ड्रिया
जो कहलाती है पावर हाउस,
ने लगा दी आग
तन बदन में
जिंदगी फिर भी कहकहे लगाती हुई खुद से कहती है
क्या कहूँ अब जिंदगी झंड ही होती रही
फिर भी बना रहा है घमंड
आखिर खुशियों का ओवेरडोज़
दर्द भरी आंखो मे कैसे बहता होगा
पर बहाव ओवरडोज़ का हो या भावो के अपचन का
लेकिन इंद्रधनुष देखने को भीगापन तो चाहिए ही।
फिर भी बना रहा है घमंड
आखिर खुशियों का ओवेरडोज़
दर्द भरी आंखो मे कैसे बहता होगा
पर बहाव ओवरडोज़ का हो या भावो के अपचन का
लेकिन इंद्रधनुष देखने को भीगापन तो चाहिए ही।
है न।
6 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (08-09-2019) को " महत्व प्रयास का भी है" (चर्चा अंक- 3452) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
शानदार प्रस्तुति ... सरल शब्दों में सबकुछ बयां करती श्रेष्ठ रचना
: ब्लॉग पंच
Enoxo multimedia
गज़ब कहा है ।
बहुत अच्छे - कई यादें और भावनाएँ उमड़ आयीं
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