महंगे कीमती फ्लावर वेस में
करीने से लगा व सजा मेरा जीवन
मूल पौधे से कट कर फिर भी
पानी व खाद के साथ
एसी कमरे मे सजा कर
बढ़ा दी गई लाइफ मेरी
पर कहाँ रह पाता मेरा
जीवन
वो पौधे से जुड़े रह कर खिलना
और फिर गर्मी व अंधड़ में
जल्द ही मुरझा जाना
मुझे तो दे दो ऐसा ही जीवन
दरख्तों से जुड़े रह कर
मुसकाना,
खिलखिलाना
और फिर यूं ही गिरती पंखुड़ियों
की
बिछती शैया मे शामिल हो जाना
मैं तो चाहता बस ऐसा ही जीवन
पर रासायनिक खादों से भरपूर
जीवन देकर,
फिर तोड़ कर
अंततः फ्लावर वेस में सजा कर
मत करो बरबाद मेरा जीवन
बिखेरने दो सुरभि मुझे
पराग निषेचन के लिए
आने दो मेरी पंखुड़ियों पर
तितलियों व भँवरों
को
जुड़े रहने दो मुझे कंटीली झड़ियों
से
मानों न एक खिलते फूल
का सादर निवेदन
मुझे दे दो मेरा जीवन !!
28 comments:
बहुत खूबसूरती से अपने दिल की बात कह गए भाई
तुम्हारी सारी मुरादें पूरी हो
हार्दिक शुभकामनायें
कृत्रिम आशियाना - प्राकृत स्थिति से परे मैं भी कृत्रिम !!! चाहिए वही प्रकृति
सुंदर रचना.
मूल पौधे से कट कर फिर भी पानी व खाद के साथ एसी कमरे मे सजा कर बढ़ा दी गई लाइफ मेरी..SACH ME APNI JADON SE KAT JANA BAHUT DUKHAD HOTA HAI..AWESOME POEM
bahut pyari rachna ke badhai....
कितना भी हो सजा संवरा... फिर भी जरुरत प्राकृतिक की ही
सुन्दर रचना.
सुंदर रचना ...बधाई :)
umda rachna
'पुष्प की अभिलाषा' तब और अब... सुंदर अभिव्यक्ति....!!!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सब 'उल्टा-पुल्टा' चल रहा है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
प्राकृतिक रूप से खिला जीवन ही यथेष्ट है .... लेकिन आज सब कृत्रिम जीवन ही जी रहे हैं ... न गर्मी बर्दाश्त होती है न सर्दी
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
बहुत उम्दा .....
sunder bhav aur lay...prakriti ki baat hi alag hai !1
कितनी सुन्दर सोच..
bahut sundar abhivakti.
संग्रह हो या संपोषण..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! वाकई एक फूल के लिये गुलदस्ते में सज जाने से कहीं बेहतर है प्राकृतिक रूप से कटीली झाड़ियों में ही खिले रहना !
bahut sundar abhivyakti
phool ho ya koi paudha .. use apne prakrtik roop me hi jude rehna shreshthkar lagta hai ...
बिखेरने दो सुरभि मुझे
पराग निषेचन के लिए
आने दो मेरे पंखुड़ियों पर
तितलियों व भँवरों को
जुड़े रहने दो मुझे कंटीली झड़ियों से
मानों न एक खिलते फूल
का सादर निवेदन
मुझे दे दो मेरा जीवन !!
बहुत सुंदर रचना।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (26-10-2013)
"ख़ुद अपना आकाश रचो तुम" : चर्चामंच : चर्चा अंक -1410 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
kritrim sukh-subidha ke bich rahte hue bhi manavman prakritikta aur aajadi hi chahta hai....sahaz-sundar abhiwyakti....
मानों न एक खिलते फूल
का सादर निवेदन
sundar abhivykti
फूलों की मूक भाषा को संवेदित किया है ...
सुन्दर अर्थ्पोर्र्ण रचना ...
sundar rachna
वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
bahut sundar mukesh ji
बहुत उम्दा...बधाई...
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