प्रेम-कविता
प्रेम! प्यार!
इस ठहरती-दौड़ती जिंदगी में
कभी एक बार तो आए
मानो सितंबर महीने के
मेंगों शावर की तरह..
या सुनहली साँझ के
चमचमाते सूरज की तरह..
या फिर ऐसे समझो,
मन में कोई प्रेम-कविता पनपी.....
या फिर! अचानक
मूसलाधार बारिश
रेनिंग कैट्स एंड डॉग्स...
बरसे प्यार, सिर्फ प्यार
अंदर तक की संवेदनाएं हो जाएँ गीली
ऐसे जैसे सूखे बंजर विस्तार में
एक दम से उग आए.. जंगली घास... लहलहाए......
फिर?... फिर क्या ?
जिंदगी! जीवन! प्यार! खुशी!
सब आपस में गड्मगड..
फिर, बस रच जाएगा
एक सुंदर “प्रेम-गीत”!
और तब.. तब क्या ?
तब भी हवाएँ
सूखे पत्तों को उड़ा ले जायेंगी
तब भी भौरें करेंगे पुष्प निषेचन
पहले के तरह ही
पर, प्रेम-गीत वो प्रेममय हो जाएगा
बस इतना सा ही अंतर..
इसीलिए तो बस
प्रेम! जीवन में एक बार तो आए ...
बस एक बार!!
22 comments:
yahi sabse mushkil hai aana mukesh
बहुत सुन्दर..
बहुत सुंदर.
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
latest post महिषासुर बध (भाग २ )
अक्सर सोचता हूँ कोई इतना सहज सृजन कैसे कर सकता है. बहुत बढ़ियाँ.
बहुत गहनता से लिखा है ... सुंदर रवहना ।
बहुत गहनता से लिखा है ... सुंदर रवहना ।
प्रेम तो बिखरा पड़ा है आस पास ... जीवन की गहरी नज़र उठायें देख लें ...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति मुकेश जी ...
प्यार ही प्यार बेशुमार :)
सुन्दर भाव... बधाई...
बस प्यार और क्या।
बहुत सुन्दर प्रेममय रचना
प्रेम रस में पगी सुंदर रचना...
Gar nahi aaya abtak to aa jayega jald hi....behud bhavpurn rachna....
sundar bhav
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 19/10/2013 को प्यार और वक्त...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 028 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
प्रेम हैं बारिश...जो जब चाहे बरस जाए..
प्रेम हैं ठंडक...कब दिल सिहर जाए पता नही..
प्रेम हैं गर्मी...ना जाने कब रगो मे...उष्मा भर जाए..
उम्दा रचना..
प्रेमगीत बस जाये लेकर आकार
प्रेम तो बस प्रेम हो जाए एक बार
नव जीवन नव कोपल सा मन
नित नई जीवन कल्पना होती साकार
सुंदर रचना ...
प्रेम..जीवन का आधार ....बहुत सुन्दर रचना...
प्रेम को बहुत ही सुंदरता से व्याख्यायित किया है..
बहुत सुंदर रचना है मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
http://iwillrocknow.blogspot.in/
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