हर बार ऐसा क्यों होता है
अँधेरी सुकून भरी रात में
नरम बिछौने पर
नींद आने के बस
कुछ पल पहले
मन के अन्दर से
अहसासों के तरकश से
शब्दों के प्यारे बाण
लगते हैं चलने...
मन ही मन
कभी-कभी वास्तविक घटनाओं पर
तो कभी काल्पनिकता
की दुनिया में
हो जाते हैं गुम ... और
बस फटाक से
रच जाती है कविता
.
पर ओह!
सुबह का ये नीला आकाश
दिखते ही ...
दूध-सब्जी लाने में
बच्चो को स्कुल भेजने में
न्यूज पेपर के व्यूज में
आफिस की तैयारी में
सो जाते हैं सारे सहेजे शब्द
गडमगड हो जाते हैं एहसास ....
अँधेरी सुकून भरी रात में
नरम बिछौने पर
नींद आने के बस
कुछ पल पहले
मन के अन्दर से
अहसासों के तरकश से
शब्दों के प्यारे बाण
लगते हैं चलने...
मन ही मन
कभी-कभी वास्तविक घटनाओं पर
तो कभी काल्पनिकता
की दुनिया में
हो जाते हैं गुम ... और
बस फटाक से
रच जाती है कविता
.
पर ओह!
सुबह का ये नीला आकाश
दिखते ही ...
दूध-सब्जी लाने में
बच्चो को स्कुल भेजने में
न्यूज पेपर के व्यूज में
आफिस की तैयारी में
सो जाते हैं सारे सहेजे शब्द
गडमगड हो जाते हैं एहसास ....
सारा रचना संसार
खो जाता है
सारे शब्द भाव उड़ जाते हैं
शब्द सृजन की हो जाती है
ऐसी की तैसी
दूसरी रात आने तक ...
और फिर अंदर चलता रहता है
उथल-पुथल ....
ये क्यों होता है
हर दिन ???
खो जाता है
सारे शब्द भाव उड़ जाते हैं
शब्द सृजन की हो जाती है
ऐसी की तैसी
दूसरी रात आने तक ...
और फिर अंदर चलता रहता है
उथल-पुथल ....
ये क्यों होता है
हर दिन ???
कैसे रच पाएगी कविता :) :)
______________________________
अगर हर रात का शब्द सृजन कागजों पर उतर जाये तो हम भी बड्डे वाले कवि होते !!
(एक क्लिक मेरे कैमरे से)
39 comments:
सटीक अभिव्यक्ति!!
शान्तचित और व्यग्रता का भेद!!
बहुत सही कहा आपने हर लिखने वाले के साथ यही होता है कविता के द्वारा बढियां अभिव्यक्ति ...!!
ऐसा इसलिए होता है कि जब आप अकेले होते हैं तभी आप खुद से बात कर पाते हैं अपने मन में चल रहे द्वंद को समझ पाते हैं या समझने की कोशिश कर पाते हैं तभी जो भाव उमड़ते है वह कभी कहानी तो कभी कविता या आलेख का रूप बन जाते हैं।
वैसे हम जैसों के दिमाग में तो कभी भी कुछ भी आ जाता है और हम उसे तुरंत पन्नो पर उतार देते हैं। :)
सच में, उस वक़्त ही मन में ऐसे भाव क्यों आते हैं जब उसे मन में रख पाना या लिख पाना मुश्किल होता है. रोज़मर्रा के जीवन के अनुभव का सटीक वर्णन. शुभकामनाएँ.
:):) बड़े वाले कवि पढ़ कर मुस्कुराहट आ गयी .... सबके साथ ही शायद ऐसा होता है ...
sundar abhiwykti ...rachna to aese hi rachi jaati hai
जब मन हल्का होने लगता है, भाव अपनी स्पष्टता लिये चले आते हैं।
यहाँ बड़ा कवि कौन है???
लिखते जाए बस....नापिए मत!!!
फोटो बहुत अच्छा है..nice click..
अनु
वाह जी पर जिंदगी के इन्हीं दूध, सब्जी और बच्चों के बीच जो रची जाती है कविता वे आपकी इस कविता की तरह ही हमेशा खूबसूरत होती है. यथार्थ
बेहद खूबसूरत सोच ....मुझे लगता है कि हर लिखने वाले के साथ ऐसा ही होता है ...मेरे ही अनुभव लिख दिए हो जैसे तुमने
kavita bahut achchi lagi.... sunder likha... aur photographs to bahut hi sunder hain....
होता है ऐसा ही सबके साथ हर उस बार ,
जब हम चीजों को समय से नहीं सहेजते है,
क्या ठहरा है?कोई ज्वार,गुबार या फिर विचार ,
सागर का पानी, पानी की लहरे सब समझते है ,
बहुत सुंदर है कविता आपकी ।
शिव मिश्रा
bahut sundar aur sachchi rachna !
कल्पना और यथार्थ के बीच जीवन और सृजन ...
सुंदर रचना .
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति, फ़ोटो बड्डी जोरदार है, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर रचना।।
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sundar rachna .sab ke sath hota hain aisa .....
आपकी यह रचना आज शुक्रवार (19-07-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बिल्कुल सच...रोज़ ऐसा ही होता है...
शायद इसलिए की, ये बस वो ही क्षण होते हैं जब आप बस अपने साथ होते हैं.. बाकी सारे रूप सिमट जाते हैं.. विश्राम करते हैं.. और तब आप धीरे से स्वयं से साक्षात्कार करते हैं.. बतियाते हैं.. तब कविता फूटी है.. बह उठती है.. बहुत सुन्दर लिखा है मुकेशजी.. आपकी सादगी की कायल हूँ.. सीधे सादे ढंग से बहुत बड़ी बात कह देते हैं.. बहुत बड़े वाले कवि हैं आप.. शुभम्.
कल्पना को शब्दों में उतारने के लिए माकूल वक़्त की जरुरत होती है ....!
बहुत सुन्दर रचना आपकी !
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(20-7-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
नून तेल लकड़ी के चक्कर में कवी की हालत पतली हो जाती है -सही कहा आपने
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sahi kaha mukesh ..srajan pal me ho jata hai pal me doop nikal aati hai shabdo ka khek tanhaiyon ke saath
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
:) ख़याल कभी भी, कहीं भी.... बस....आ जाते हैं...
(आपकी ये रचना शायद पहले भी कहीं पढ़ी है... ऐसा लगता है...)
~सादर!!!
इसका बेस्ट तरीका है ...कलम किताब सिरहाने रखकर सोना......आजसे..!!!!
खूबसूरत सोच .....!
:)Nice click
:)Nice click
bhaut hi alag aur behtreen andaaz.....
सही कहा आपने मुकेश भाई बिलकुल ऐसे हि होता है मेरे साथ भी अब तो एक आँख खोल कर जल्दी से फ़ोन में लिख लेती हूँ कई बार
मुबारक हो जी....वड्डे कवि होने का सपना अब तक जिंदा है जी.....
सच्ची बात , कोई -कोई ही कागज़ पर उतर पाता है
हाँ,ऐसा सबके साथ होता है
भाव जगत एवं वस्तु जगत का यही फासला है जिसे विरले ही नाप पाते हैं ! बहुत सुंदर रचना !
भाव जगत एवं वस्तु जगत का यही फासला है जिसे विरले ही नाप पाते हैं ! बहुत सुंदर रचना !
बहुत सुन्दर रचना आपकी मुकेश भाई
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
sahi kaha apne apni rachna kay madhyam say.....aisa shayad har likhne wale kay saath hota hai
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