"अगे मैया
मर जइबे"
छाती की बढती धड़कन
का दर्द
या,
कभी कभी न पढने का बहाना !
फिर
मचा देती थी
कोहराम......... मेरी दादी माँ!
.
आज पूरी रात
अथाह परेशानियों के दर्द तले
सो जाते हैं
सिसकते हुए, बिना आंसू के
और फिर नयी सुबह
"टिंच" पैंट शर्ट के साथ
हल्की मुस्कराहट के साथ
पहुँच जाते हैं ऑफिस ! ऑफिस !!
41 comments:
किस तरह वजनदार होती है ज़िन्दगी .... तकलीफों के बावजूद कोई शोर नहीं , सूजी आँखों की भी सफाई - रात सो नहीं सके .... और जिम्मेवारियां . अब तो दादी माँ का कोहराम भी काम नहीं आता आज की व्यवस्था में
जिंदगी के दो रूपों का बहतु भावुक कर देने वाली तुलना... सुन्दर कविता..
ऐसी ही हैं जिंदगी ....दुःख तकलीफ ..उफ्फ्फ
सहना ही है जीवन के हर पल..
भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति।
यही है आज की जीवन शैली...दर्द को भीतर रखना है और चेहरे पे मुस्कुराहट चिपकाना हैः)
छाती की बढती धड़कन का दर्द या, कभी कभी न पढने का बहाना !फिर मचा देती थी कोहराम......... मेरी दादी माँ!
अपने वट वृक्षों के नेह ..सुरक्षा भरे स्पर्श और दुलार मनुहार की शीतल छाँव तलाशता मन ही मन सिसकता दुबका बाल हृदय .....
“सो जाते हैं ... ...सिसकते हुए, बिना आंसू के ...और फिर नयी सुबह हल्की मुस्कराहट के साथ "टिंच" पैंट शर्ट के साथ ” हल्की मुस्कराहट के साथ “...
बड़े होने के कुछ नुकीले दंश जिसे स्वीकारते अकुलाता मन ...
भावुक रचना .. बहुत शुभकामनाये !!
jindagi ki aapdaaahpi her roj badastur jaari rehti hai , suraj ki kirano ki trha hum b kabhi kabhi kai kirdaro mai bikher jaate hai , to kabhi samunder ki trha her saahil per khud mai hi bandhe rehte hai , ... mukesh bhaiya , padhker achaa laga ,.. :)ultimate
जय हो ...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - 'क्रांतिकारी विचारों के जनक' - बिपिन चंद्र पाल - ब्लॉग बुलेटिन
अब तो दर्द भी बे-दर्द हो चला है |
आज की भागती दौड़ती ज़िंदगी .... रोने का भी वक़्त नहीं मिलता ... सुंदर प्रस्तुति
गहन भाव लिए ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....!!
''न मिलता गम तो बर्बादी के अफ़साने कहाँ जाते ...?
अगर दुनिया चमन होती तो वीराने कहाँ जाते ...?
चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला ...
अगर होते सभी अपने तो बेगाने कहाँ जाते ....?''
लाता जी का बहुत पुराना गाना याद आ गया ...आपकी कविता पढ़ कर ...!!
बहुत अच्छा लिखा है मुकेश ...
शुभकामनायें ...!!
Sach.....yahee hai zindagee!
बचपन एक हसीं ख्वाब.....इसमें कितने भी गोते लगाते रहे....एक दिन बहार निकलना ही पड़ेगा... यथार्थ की तेज़ धूप में...जीवन चाशनी को पकाना ही होगा...एक अनिवार्य अकाट्य सत्य..
तब मन ' पे बस नहीं था अब बस सब 'मन' में है ..अंतर्मन .''अथाह परेशानियों के दर्द तले सो जाते हैं.''..वाह्य आवरण..एक दम 'टिंच'..मुस्कान .वो तो एक तार की चाशनी में पगी.....सब जानते हैं..सब मानते हैं...परन्तु..स्वीकारते हैं...उसी 'टिंच' से रूप को..सहूलियत इसी में है....
हमेशा की तरह..एक गंभीर विषय पे सादगी सेभारी ..पूर्ण अभिव्यक्ति...ढेर सारा प्यार मुकेश..शुभकामनायें.....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
भावुक कर देने वाली रचना....
बहुत अद्भुत रचना है आपकी....बधाई स्वीकारें
नीरज
वाह रे नखरे .......बाबूआ करे ढोंग ...ददिया उठाये नाज़
अच्छी कविता
आज कौन उठाएगा नाज़ ...खुदे दर्द झेलो खुदे खुश हो लो
यह जीवन है इस जीवन का यही है, यही है, रंग रूप थोड़े ग़म हैं थोड़ी खुशियाँ यही है,यही है रंग रूप....:-)
भावपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति...
कल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... तू हो गई है कितनी पराई ...
व्यक्तिक अनुभूतियों के माध्यम से आज की जीवन शैली का भावात्मक चित्रण बढ़िया है, सुन्दर शैली और मार्मिक कथ्य, बधाई स्वीकारें !
बहुत सुन्दर और भावप्रणव..!
कितना सटीक चित्रण किया है ज़िन्दगी के दोनो रूपों का मुकेश ………कल और आज मे आये बदलाव को बहुत ही खूबसूरती से सहेजा है।
कविता बनते बनते रह गई।
अब कौन मनाये !!
ाब दादी माँ जैसी सहन शक्ति कहाँ रझी है । सुन्दर रचना\
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
बेहतरीन अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर ...
सामंजस्य और समझौते जिंदगी के हिस्से हैं
तस्वीरें लाजवाब हैं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
बहुत ही संवेदनशील कविता..
jindgi kabhi ek si nahi rahti na...parivartan badlav chalta rahta hai anvarat ...gahan abhivyakti
बहुत कुछ कहते हुए चित्रों के साथ मर्म को छूती हुई कविता |
jindago ko aayene mein utar diya apne.. bahut achhi saarthak prastuti,,..
niyati ke aage kisi ka jor nahi..
Asha Pandey: मइया तो मइया ही होली ना उनकर जयसेन केहू ना .......Wednesday at 17:55 · UnlikeLike · 1.
Sunita Tiwari : yahi sach hai jeevan ka.....bt koi koi dard itna adhik hota hai ki us sev ubarne me samay lag jaata hai.......anyways...sundar abhivuakti.......Thursday at 16:00 · UnlikeLike · 1.
Roli Bindal Lath: kal se aaj tak ka safar...bade hone ka processThursday at 08:01 · UnlikeLike · 1.
Anand Dwivedi: अथाह परेशानियों के दर्द तले
सो जाते हैं
सिसकते हुए, बिना आंसू के
... ...
dadi ke bahut kareeb rahe ho tum lagta hai ?
sundar kavita bhai !See moreWednesday at 17:06 · UnlikeLike · 2.
this is it mukesh . kudos .
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