जिंदगी की राहें

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Monday, March 12, 2018

सिगरेट



गोल गोल घूमते
लगातार छल्लों पर छल्ला
अजीब सी कशमकश का धुंआ
बाहर आकर दूर तक जाता हुआ
जब पहली बार खींचा था अन्दर तक कश
होंठ से लगा था, गोल्ड फ्लेक वाली
फ़िल्टर वाला सिगरेट !


हुई थी आँखे लाल
डबडबाई थी पलकें
था अन्दर से एक अनजाना सा डर भी
फिर, कुछ पलों तक
जलती अंतड़ियों के साथ
स्टाइल से खांसा था उसने
क्योंकि नहीं बताना था
पहली बार पी गयी थी सिगरेट !

आखिर कॉलेज के
नए रंगरूटों के बीच
था जतानी खुद की अहमियत
कहते थे लड़के, तुम लगोगे बॉस !
बॉस यानी डर! गर्वान्वित होता चेहरा !
ये होगा तब,
जब उँगलियों में जकड़ी होगी सिगरेट !

बीता समय, बीते दिन
वो पहली बार डर दिखाने की
जो की गयी थी कोशिश व जतन
आज खुद को डरा रही थी
वही शुरुआत वाली लत
आज बस चुकी थी अन्दर,
चाहत होती हर समय, एक सिगरेट !

अभी अभी, डॉ. बत्रा के
क्लिनिक से निकला था वो बाहर
थोडा ज्यादा ही दुबला
थोडा पिचके गालों के साथ
फिर भी रुका, खोके पर, पचास के नोट के साथ
देना यार,
रेड एंड वाइट! एक पैकेट सिगरेट !

~मुकेश~


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