और दरवाज़े से झांकती दिखती है
एक अकेली 'मैजिक आई'
शक से घूरती
उनकी परछाईं तले, नीचे, पीछे
गरीब बस्तियों की किवाड़ों पर होता है अक्सर
एक स्वास्तिक, 'ॐ', 786, कभी कोई खंडा
और दरके हुए किवाड़ों में होती हैं दरारें
कभी दो तख्तों के बीच चिरी लम्बी सी झिर्री
झिर्रियों से छनती हवा
कभी नहीं निकालती 'ओम' का स्वर
'वन वे मिरर' है 'मैजिक आई'
ज़िन्दगी को एकतरफा देख पाने का जरिया
जबकि टूटी झिर्री या सुराख
आँखों में आँखे डाले, जुड़ने का दोतरफा रास्ता
'मैजिक आई' समृद्धि की चुगली करता
जिसकी आज्ञा सिर्फ अन्दर की ओर से आँख लगाये
वो एक शख्स ही दे सकता है
उलट इसके, झिर्रियों से झांकते हुए देख सकता है
दूर तक कोई भी, अन्दर का घुप्प अँधेरा
अभाव यहीं कहीं रहता है रेंगता है
'जीवन' के नाम से जाना जाता है
चूल से लटकती तो कभी बस टिकी हुई किवाड़ों पर पुते
स्वास्तिक या 'ओम' का खुला सिरा
नहीं समेट पा रहा 'खुशहाली'
जबकि विंड चाइम की टनटनाहट
पंखे के कृत्रिम हवा के साथ भी
फैला रही समृद्धि
कल ही ख़रीदा है एक 'विंडचाइम'!
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-02-2017) को
"उजड़े चमन को सजा लीजिए" (चर्चा अंक-2595)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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