छोटी छोटी
नन्ही, खुबसूरत व प्यारी सी बच्चियां !
पार्क में, घर के सामने
खिलखिलाती दौड़ती है
साथ ले जाती मन को
दुनियावी विसंगतियों से दूर
भुला देती है हर स्याह सफ़ेद!
कुछ पलों के लिए
परियों के देश सा
अहसास देता है ये पार्क
जब चंचल, खुशियों भरी हंसी
ठुनकन व गुस्सा
सब गड्डमड्ड करके
एक साथ खिलती है कलियाँ
और, बच्चियां !!
हाँ! चाहता है मन
भूलूं उम्र के रंग
भागूं खेलूं उनके संग
जी लूं सतरंगी बचपन!
उफ़, पर ये हर दिन की न्यूज
जिसमे होता है बच्चियों का शोषण व बलात्कार
कलंकित करती छुअन
फिर उनसे उपजते
उनको ही तार तार करते व्यूज
लग ही जाता है ब्रेक स्वयंमेव हाथों में
महसूसने लगता हूँ
नागफनी की टहनियां!!
खुद के हाथ ही लगते हैं ऐसे
जैसे दरिन्दे की लम्बी नाख़ून भरी हो झाड़ियाँ
न न न! ऐसे में लहुलुहान न हो जाएँ
ये बचपन, ये परियां !
दहलता है दिल
फुट पड़ता है ज्वालामुखी कहीं अन्दर! क्यूँ?
हर दिन! हर पल!
दिख ही जाता है खलनायक
खूनी आँखे ! आईने में !!
मर्द हूँ न!
साफ़ नज़र के लिए
आईना पोछने लगता हूँ
ढूंढ़ नहीं पाता रक्त सम्बन्ध
पर ये अखबार
उनके जलते समाचार
जलाते हैं यार !!
इस जलन ने शायद
आज कुछ हौसला भर दिया
सच ही तो हो तुम सब
मेरी परियां
हाँ सच ...
मेरी इसकी उसकी सबकी परियां
परों वाली परियां!!
तुम्हारे परों में
इन्द्रधनुषी रंगों में
एक रंग मेरा एक उसका
और एक उसका भी होगा
उड़ो जितना उड़ सको!!
पंखो की ताकत
तुम्हे तुम्हारे आस्मां तक ले जाएगी
खुद को अकेला ना समझना !!
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नन्ही, खुबसूरत व प्यारी सी बच्चियां !
7 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (31-03-2015) को "क्या औचित्य है ऐसे सम्मानों का ?" {चर्चा अंक-1934} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
bahut sundar .....aage mujhe abhi koi shabd nahi mil rahe ...
bahut pyari abhiwyakti sundar shabdon ke sath....
काश!!! की सभी इन नन्ही पारियों को एक महकते हुए फूल और चहकती हुई चिड़िया की भांति ही देख पाते तो शायद आज हमारा आँगन (समाज) एक उपवन से कम न होता। बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत सी सुंदर व सामयिक रचना........काश सभी लोग इस नजर से उन बच्चियों को देख पाएं और सभी बच्चियां सुरक्षित रहें।
सामयिक ..सटीक..मन को छू लेने वाली रचना !
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