जिंदगी की राहें

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Wednesday, July 16, 2014

डस्टबिन


मेरे घर के कोने में पड़ा
नीले रंग का प्लास्टिक का
सुन्दर सा बाल्टीनुमा डस्टबिन
है उसमे लीवर-सा सिस्टम
ताकि उसको पैर से दबाते ही
लपलपाते घड़ियाल के मुंह के तरह
खुल जाता है ढक्कन !!
सुविधाजनक डस्टबिन
समेट लेता है हर तरह का कूड़ा
जूठन/धूल/कागज़/और भी
सब कुछ /  बहुत कुछ
बाहर से दिखता है सलीकेदार
नहीं फैलने देता दुर्गन्ध
नहीं बढ़ने देता रोग के कीटाणु
है अहम्, मेरे घर का डस्टबिन
आखिर हैं हम सफाई पसंद लोग !!

अगर मैं खुद को करूँ कम्पेयर
तो पाता हूँ, मैं भी हूँ
एक शोफिसटिकेटड डस्टबिन
सहेजे रहता हूँ गंदगी अन्दर
तन की गंदगी
मन की गंदगी, हर तरह से
गुस्सा/इर्ष्या/जलन/दुश्मनी
हर तरह का दुर्गुण/अवगुण
है, अहंकार का ढक्कन भी
पर, हाँ, बाहर से टिप-टॉप
एक प्यारा सा मस्तमौला इंसान
अन्दर पड़ी सारी दुर्भावनाएं
फ़रमनटेट करती है
और अधिक कंडेंसड  हो जाती है
और फिर, गलती से या अचानक
दिखा ही देती है मेरा अन्तःरूप !!

साफ़ हो जाता है डस्टबिन
एक फिक्स आवर्ती समय पर
पर मेरे अन्दर के
दुर्गुण के लेयर्स
सहेजे हुए परत दर परत
हो रहा है संग्रहित !!

काश ! स्वभावजन्य कमजोरियों से
हुई दुर्गुणों के अपच को
शब्दों के पश्चाताप से रोगमुक्त कर
सादगी भरी स्वीकारोक्ति की डूबकी लगा
साफ़ स्वच्छ छवि के साथ
एक बार फिर से हो पाता प्रतिष्ठित

एक काश, ही तो कहना होगा
प्रियोडीकली !!
और मेरे सर के ऊपर का आसमान
पूर्ववत रहेगा सुन्दर
सम्मोहक नीला !!



15 comments:

Unknown said...

बहुत बेबाकी से लिखा मुकेश जी बधाई

राजीव कुमार झा said...

बहुत सुंदर.

Unknown said...

behad khubsurat...

Shalini kaushik said...

अगर मैं खुद को करूँ कम्पेयर
तो पाता हूँ, मैं भी हूँ
एक शोफिसटिकेटड डस्टबिन
सहेजे रहता हूँ गंदगी अन्दर
तन की गंदगी
not only you ,every person on this earth like a dustbin .nice expresion .thanks

Shalini kaushik said...

अगर मैं खुद को करूँ कम्पेयर
तो पाता हूँ, मैं भी हूँ
एक शोफिसटिकेटड डस्टबिन
सहेजे रहता हूँ गंदगी अन्दर
तन की गंदगी
not only you ,every person on this earth like a dustbin .nice expresion .thanks

जीवन और जगत said...

एक साधारण सी चीज़ पर असाधारण रचना

प्रतिभा सक्सेना said...

कूड़ा निकाला और सामने से हटा लिया यही बड़ी बात है - हरएक का अपना डस्टबिन होता है. कूड़ा होना भी स्वाभाविक है.माने कोई चाहे न माने! .

yashoda Agrawal said...
This comment has been removed by the author.
yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना शनिवार 19 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

संजय भास्‍कर said...

वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ...।

राजेंद्र अवस्थी. said...

वाह...बड़ी खूबसूरती से आपने मानव स्वभाव की कमियों को शब्द दिये हैं...जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है...लाजवाब।

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Anju (Anu) Chaudhary said...

सार्थक शब्दों के साथ खूबसूरत अभिव्यक्ति

Preeti 'Agyaat' said...

शानदार रचना, एक अलग ही रंग लिए, सुंदर अभिव्यक्ति !

दिगम्बर नासवा said...

असल सफाई की प्रतीक्षा तो इसी डस्टबिन को है ... और ये सफाई भी हमने खुद ही करनी है ...