(क्या रे, अब आए तुम?)
मेरे घर की बूढ़ी
आवाज कौंधी
जैसे ही दाखिल हुआ, पुराने घर में
गाँव की सौंधी
मिट्टी, उड़ती धूल
बड़ा सा कमरा, पुराने किवाड़
ठीक बीच में, बड़ा सा पुराना पलंग
सब शायद कर रहे थे
इंतज़ार
लगा, सब एक साथ ठठा कर हंस पड़े, भींगी आंखो से
मुककु !! आए न तुम
! इंतज़ार था तुम्हारा !!
खुशियों से आंखे
छलकती ही है
अंगना, बीच में बड़ा सा तुलसी चौरा
(पिंडा)
जो देती थी, बचने का मौका, मैया के मार से
वो भी मुसकायी
भंसा घर (किचन) में, चूल्हे के धुएँ से
काली पड़ चुकी
दीवारें
जिसने देखा था मुझे
व दूध रोटी की कटोरी
छमक कर हो गई
सतरंगी
कमरे के सामने का
ओसरा, वहाँ लगी चौकी
यहाँ तक की घर के
पीछे की बाड़ी
बारी में झाड व
लहराती तरकारी
अमरूद, नींबू, नीम, खजूर के वो सारे पेड़
चहकते हुए खिलखिलाए
लगा, जैसे, वैसे
ही चिल्लाये
जैसे खेलते थे
बुढ़िया कबड्डी
और होता था मासूम
कोलाहल !!
आखिर एक आम व्यक्ति
भी
होता है खास, जब होता है घर में
खुद-ब-खुद कर रहा
था अनुभव
नम हो रही थी आँखें, खिल रही थी स्मृतियाँ
मैंने भी मंद मंद
मुसकाते हुए
इन बहुत अपने
निर्जीव/सजीव से कहा
16 comments:
बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति.....loved it :-)
waah..bahut shaandaar abhivyakti ..sach hai jo mazaa chajju ke chaubaare , vo na balkh na bukhare :)...ghar aisa hi hota hai !!!!!!!!
waah..bahut shaandaar abhivyakti ..sach hai jo mazaa chajju ke chaubaare , vo na balkh na bukhare :)...ghar aisa hi hota hai !!!!!!!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन उपलब्धि और आलोचना - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
purani yaden yesi hi dilkash hoti hai.....sundar abhiwyakti...
bahut bahut sajeev rachna......ek aam vyakti bhi hota hai khas, jab hota hai ghar me.
तुम्हारी बातें
आँखें नम कर देती हैं
हार्दिक शुभकामनाएँ
reality ko sabdo me badhna bahut mushkil hota hai.....बेहद खुबसूरत :) :)
बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...
वाह, सुन्दर रचना।
sundar abhivyakti , man ke bhav sahajta se uker diye hai , cute se badhai aapko
पुलकित शब्द और छलकती व्यंजना !
ये तो फेसबुक पर पढ़ लिया था...loved it ! :)
ये तो फेसबुक पर पढ़ लिया था...loved it ! :)
utam-***
Very good website, thank you.
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