अजीब सी जिंदगी
अलग सा फसाना
नगण्य उम्मीद
और फिर सब कुछ पा जाना
शायद लिखा जा सकता
या लिखा गया था
एक प्रेम तराना !!
कुछ बहुमूल्य पलों का साथ
था हाथों मे हाथ
कभी पकड़े,
कभी थरथराए
एक दूसरे की
सिर्फ थी सामने नजरें
थी चमकती बोलती आंखे
थे अनबोले से एहसास
थी समीपता
थी नादानियाँ
थी बचकानी हरकतें
था तरंगित मन
बोलो! क्या नाम दूँ उसको
मनचला,
मतवाला, अलबेला !!
छोड़ो न,
रहने देते हैं
क्या है जरूरी ?
हर प्यार जैसे
एहसास को
संवेदना को
मिल ही जाये मंजिल
पर फिर भी
प्यार तो है प्यार
कुछ पलों का अनमोल प्यार!!
11 comments:
kabhi kuch paane ki chaah
kabhi khushiyon ka parityaag
kabhi tut jaane ka
kabhi kisi ko tut kar chahne ka
isi ko kehte hain pyaar
kabhi kuch paane ki chaah
kabhi khushiyon ka parityaag
kabhi tut jaane ka
kabhi kisi ko tut kar chahne ka
isi ko kehte hain pyaar
बहुत सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
behud khubsurat bhavon se sazi sarthak rachna...
बहुत सुन्दर लिखा है..अनमोल ही होती है..प्यार
बहुत सुंदर रचना !!
बहुत सुंदर रचना !!
प्रेम की इतनी व्याख्याएं देखीं..लेकिन यह अभिव्यक्ति अद्वितीय है.. इसी बात को कितनी बार कितने तरह से कहा गया है.. लेकिन यहाँ अभिव्यक्ति की नवीनता न सिर्फ प्रेम को अपितु उस अनोखे और स्वर्गिक समबन्ध को एक नयी ऊंचाई प्रदान करता है.. एक आत्मीय सम्बन्ध जिसे न किसी शब्द के बन्धन में बांधा जा सकता है, न ही अभिव्यक्ति के किसी माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है.. एक सम्बन्ध जो आदम और हव्वा की पहल से आज तक शास्वत है!!
अद्भुत मुकेश भाई! अप्रतिम!! अनमोल!!
बेहद भावपूर्ण, बधाई.
मन को छूती प्रस्तुति आभार
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