जिंदगी की राहें

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Sunday, June 9, 2013

माँ का दर्द


माँ के फटे आँचल
को पकड़े गुजर रहा था
बाजार से ननकू
ऐ माँ! वो खिलौने वाली कार
दिलवा दो न !
बाप रे, वो महंगी कार
ना बेटा, नहीं ले सकते
चलो माँ, वो टाफी/चिप्स ही दिलवा दो न
पेट खराब करवानी है क्या
क्यों परेशान कर रहा है
लगातार …………
घर आने ही वाला है
खाना भी दूँगी, प्यार व दुलार भी मिलेगा बेटा
मेरा राजा बेटा
चल अब चुपचाप !

पर माँ, घर मे चावल-दाल
कुछ भी तो नहीं है
तुमरे अचरा में पैसे भी तो नहीं
कहाँ से आएगा खाना

चुप कर, चल घर
जीने भी देगा, या चिल्लाते रहेगा !
माँ, ये पके आम ही दिलवा दो
देखो न कैसे चमक रहे .....
उफ़्फ़!
(कलपती माँ का दर्द, कौन समझाये?)


53 comments:

वंदना शुक्ला said...

मार्मिक कविता ...

Unknown said...

sach mein kitna dard hai Maa ke mann mein yeh sirf vo hi jaan sakti ...so touching n close to heart lines Mukesh ji ......

रंजू भाटिया said...

ओह बहुत मार्मिक रचना ..दिल के बहुत करीब लगी यह

Rewa Tibrewal said...

dard bhari rachan.....sach mey kya kare maa...paise say greeb par pyar say sabse ameer

अज़ीज़ जौनपुरी said...

brhad marmik prastuti

अरुन अनन्त said...

उफ्फ बेहद मार्मिक रचना, मुकेश भाई यदि शब्दों अनुमोदन करने का प्रयास करूँ तो वस्तुतः संभव नहीं है ऐसी गहन हृदास्पर्शी रचनाएँ इतनी आसान नहीं होती, कितना असहज महसूस कर रहा हूँ कुछ कहने को शब्द नहीं है, आपको हृदय से अनेक अनेक बधाइयाँ. जय हो

Sadhana Vaid said...

मर्म पर प्रहार करती बहुत ही सशक्त प्रस्तुति ! मन द्रवित हो गया और आँखें नम हो गयीं !

ANULATA RAJ NAIR said...

:-(

सच पढ़ कर अच्छे नहीं लगते....

अनु

Rohit Singh said...

मुकेश भाई..थोड़ा सा विस्तार में जाना चाहूंगा..अक्सर पिता का जिक्र रह जाता है...मां का दर्द दिखता है क्योंकि आंसू से बहता है..पिता की छाती के अंदर उठती हुक औऱ आंसू दिखते नहीं..मतलब ये नहीं होता कि उसे दर्द नहीं होता...
ये दर्द साझा है मां का पिता का....मां बच्चे को झूठी दिलासा देती है और आंसू बहाती हैं....पिता पत्नी और बच्चे का दर्द देखता है..आंसू पी जाता है..और फिर से कमर कस कर मैदाने जंग में जुत जात है...बच्चे की छोटी इच्छा पूरी करने...पत्नी के बहते आंसू पोंछने....अपना सबकूछ भूल जाता है...

कालीपद "प्रसाद" said...

गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है ,दिल को दर्द हीन बना देता है
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

Neeta Mehrotra said...

दिल छू गयी ..... मार्मिक रचना

Pallavi saxena said...

बेहद मार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

Tamasha-E-Zindagi said...

सुन्दर रचना

ताऊ रामपुरिया said...

गरीब की पीडा गरीबी ही समझ सकती है, पर हकीकत यही है. मार्मिक रचना.

रामराम.

kavita verma said...

marmik rachna ..

Bhavna....The Feelings of Ur Heart said...

bahut hi umada rachana .....aur ek maa ki bebasi :'(

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कड़वी सच्चाई को कहती मार्मिक रचना

Shalini kaushik said...

bahut hi bhavnatmak .

विभा रानी श्रीवास्तव said...

!!

Kailash Sharma said...

सच में गरीबी कितना बड़ा अभिशाप है...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...

Ranjana verma said...

निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!

Ranjana verma said...

निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!

Ranjana verma said...

निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!

निवेदिता श्रीवास्तव said...

सच अकसर नि:शब्द कर जाता है :(

shikha varshney said...

:(:(...काश यह सिर्फ कविता होती..सच नहीं .

Manjusha negi said...

एक पहलू मातृत्व का ये भी ........

Unknown said...

Maa to maa hoti hai..mamta se otprot si..par kya kare koi maa,mamata bhi to abhiwyakt paiso se hi hoti hai...behud bhavpurn or marmik rachna......

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Anju (Anu) Chaudhary said...

जिंदगी का ये सच कड़वा सा है .....पर है खरा सा सच ....जो शायद कभी नहीं बदलेगा

(मैं .... rohitash kumar के कथन से सहमत हूँ )

संध्या शर्मा said...

यही सच्चाई है हमारे देश की भूखा बचपन, मजबूर माँ...
मार्मिक अभिव्यक्ति

Archana Chaoji said...

सच के करीब ले गई ये रचना ... रोज दो चार होती हूँ ऐसे दॄश्यों से ....जब कई ननकू आसपास से गुजरते हैं माँ का आँचल पकडे़.....

Aparna Bose said...

yatharth sachmuch bohat kadwa hota hai....bohat achcha likha hai aapne

ऋता शेखर 'मधु' said...

us maa ki sochkar sihar gayi...chitra achchha lagaya.

Anupama Tripathi said...

ओह ....बहुत मार्मिक रचना ...

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

marmik

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

nayee dunia said...

ऐसा ही होता है जब मान को मारना होता है . ....बहुत मार्मिक

Rajesh Kumari said...

आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है

Rajendra kumar said...

गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है,बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

ओंकारनाथ मिश्र said...

मार्मिक चित्रण.

ज्योति-कलश said...

बहुत मार्मिक ..

मीनाक्षी said...

मर्म को गहरे तक छू गया... जाने कितने बच्चे भूखे रह कर माँ के दिल को घायल कर जाते हैं..

Unknown said...

bahut marmik kavita..... dil ko chhu gai.......

Aruna Kapoor said...

..कितना दर्द समाया हुआ है शब्दों में!

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक ... मर्म को छूती हुई गुज़रती है रचना ...

sandhya jain said...

क्या कहूँ बहुत ही मार्मिक रचना...एकदम दिल से...इसलिए दिल को छु गई :-)

Saras said...

न जाने और कितने दुःख बदे हैं एक माँ के नसीब में ......औलाद की भूख.....सबसे कष्टदायक

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

मार्मिक रचना...बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ

रश्मि शर्मा said...

मार्मिक कवि‍ता...दर्द उभर कर सामने आ रहा है..बेबस मां का

अरुणा said...

बेहद मार्मिक रचना
सीधे दिल तक पहुंची

Rahul said...

बचपन तो मासूम है और माँ की ममता वर्णन के अतीत ...

प्रवीण पाण्डेय said...

मन का दर्द छिपा मन रहता,
सहता रहता, कुछ न कहता।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

करुण चित्रण...