माँ के फटे आँचल
को पकड़े गुजर रहा था
बाजार से ननकू
ऐ माँ! वो खिलौने वाली कार
दिलवा दो न !
बाप रे, वो महंगी कार
ना बेटा, नहीं ले सकते
चलो माँ, वो टाफी/चिप्स ही दिलवा दो न
पेट खराब करवानी है क्या
क्यों परेशान कर रहा है
लगातार …………
घर आने ही वाला है
खाना भी दूँगी, प्यार व दुलार भी मिलेगा बेटा
मेरा राजा बेटा
चल अब चुपचाप !
पर माँ, घर मे चावल-दाल
कुछ भी तो नहीं है
तुमरे अचरा में पैसे भी तो नहीं
कहाँ से आएगा खाना
चुप कर, चल घर
जीने भी देगा, या चिल्लाते रहेगा !
माँ, ये पके आम ही दिलवा दो
देखो न कैसे चमक रहे .....
उफ़्फ़!
(कलपती माँ का दर्द, कौन
समझाये?)
53 comments:
मार्मिक कविता ...
sach mein kitna dard hai Maa ke mann mein yeh sirf vo hi jaan sakti ...so touching n close to heart lines Mukesh ji ......
ओह बहुत मार्मिक रचना ..दिल के बहुत करीब लगी यह
dard bhari rachan.....sach mey kya kare maa...paise say greeb par pyar say sabse ameer
brhad marmik prastuti
उफ्फ बेहद मार्मिक रचना, मुकेश भाई यदि शब्दों अनुमोदन करने का प्रयास करूँ तो वस्तुतः संभव नहीं है ऐसी गहन हृदास्पर्शी रचनाएँ इतनी आसान नहीं होती, कितना असहज महसूस कर रहा हूँ कुछ कहने को शब्द नहीं है, आपको हृदय से अनेक अनेक बधाइयाँ. जय हो
मर्म पर प्रहार करती बहुत ही सशक्त प्रस्तुति ! मन द्रवित हो गया और आँखें नम हो गयीं !
:-(
सच पढ़ कर अच्छे नहीं लगते....
अनु
मुकेश भाई..थोड़ा सा विस्तार में जाना चाहूंगा..अक्सर पिता का जिक्र रह जाता है...मां का दर्द दिखता है क्योंकि आंसू से बहता है..पिता की छाती के अंदर उठती हुक औऱ आंसू दिखते नहीं..मतलब ये नहीं होता कि उसे दर्द नहीं होता...
ये दर्द साझा है मां का पिता का....मां बच्चे को झूठी दिलासा देती है और आंसू बहाती हैं....पिता पत्नी और बच्चे का दर्द देखता है..आंसू पी जाता है..और फिर से कमर कस कर मैदाने जंग में जुत जात है...बच्चे की छोटी इच्छा पूरी करने...पत्नी के बहते आंसू पोंछने....अपना सबकूछ भूल जाता है...
गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है ,दिल को दर्द हीन बना देता है
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दिल छू गयी ..... मार्मिक रचना
बेहद मार्मिक एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
सुन्दर रचना
गरीब की पीडा गरीबी ही समझ सकती है, पर हकीकत यही है. मार्मिक रचना.
रामराम.
marmik rachna ..
bahut hi umada rachana .....aur ek maa ki bebasi :'(
कड़वी सच्चाई को कहती मार्मिक रचना
bahut hi bhavnatmak .
!!
सच में गरीबी कितना बड़ा अभिशाप है...बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!
निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!
निशब्द करती रचना.. माँ के मज़बूरी को चित्रित करती बेजोड़ रचना !!
सच अकसर नि:शब्द कर जाता है :(
:(:(...काश यह सिर्फ कविता होती..सच नहीं .
एक पहलू मातृत्व का ये भी ........
Maa to maa hoti hai..mamta se otprot si..par kya kare koi maa,mamata bhi to abhiwyakt paiso se hi hoti hai...behud bhavpurn or marmik rachna......
आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जिंदगी का ये सच कड़वा सा है .....पर है खरा सा सच ....जो शायद कभी नहीं बदलेगा
(मैं .... rohitash kumar के कथन से सहमत हूँ )
यही सच्चाई है हमारे देश की भूखा बचपन, मजबूर माँ...
मार्मिक अभिव्यक्ति
सच के करीब ले गई ये रचना ... रोज दो चार होती हूँ ऐसे दॄश्यों से ....जब कई ननकू आसपास से गुजरते हैं माँ का आँचल पकडे़.....
yatharth sachmuch bohat kadwa hota hai....bohat achcha likha hai aapne
us maa ki sochkar sihar gayi...chitra achchha lagaya.
ओह ....बहुत मार्मिक रचना ...
marmik
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
ऐसा ही होता है जब मान को मारना होता है . ....बहुत मार्मिक
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है,बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
मार्मिक चित्रण.
बहुत मार्मिक ..
मर्म को गहरे तक छू गया... जाने कितने बच्चे भूखे रह कर माँ के दिल को घायल कर जाते हैं..
bahut marmik kavita..... dil ko chhu gai.......
..कितना दर्द समाया हुआ है शब्दों में!
मार्मिक ... मर्म को छूती हुई गुज़रती है रचना ...
क्या कहूँ बहुत ही मार्मिक रचना...एकदम दिल से...इसलिए दिल को छु गई :-)
न जाने और कितने दुःख बदे हैं एक माँ के नसीब में ......औलाद की भूख.....सबसे कष्टदायक
मार्मिक रचना...बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ
मार्मिक कविता...दर्द उभर कर सामने आ रहा है..बेबस मां का
बेहद मार्मिक रचना
सीधे दिल तक पहुंची
बचपन तो मासूम है और माँ की ममता वर्णन के अतीत ...
मन का दर्द छिपा मन रहता,
सहता रहता, कुछ न कहता।
करुण चित्रण...
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