कहाँ जनता था उसे???
पर कुछ लोगों का ज़िन्दगी में शामिल होने या खोने पर अपना जरा भी बस नहीं होता..
सब यूँ होता है जैसे कोई ख्वाब देखा हो...
कब और कैसे, मेरी आभासी दुनिया में शामिल हो गया और फिर उस दायरे को
लांघ गया .... बिलकुल दबे पाओं, हौले से,चुपचाप मुझे खबर तक न चली...
ये सोशल मीडिया की साइट्स पता नहीं क्यों, मुझे बहुत
भाती रही हैं | कभी कभी लगता है इसकी मुख्य वजह मेरे लिए ज़िन्दगी में दोस्ती को तरजीह देना है
तो कभी लगता है कहीं इसकी वजह मेरी दोहरी जिंदगी जीना तो नहीं? खुद को तनावमुक्त करने में बहुत मददगार रही हैं ये
मित्रता भरी दुनिया... दरअसल मैं हूँ भी वास्तविकता मे थोड़ा चुप! शांत! पर इस सोशल मीडिया पर मुखर व मित्रवत।
उसने कब मुझे फ्रेंड रिकुएस्ट भेजी, कब मैंने एक्सेप्ट की, याद नहीं।
फिर याद करने लायक कोई वजह भी तो नहीं था। सरसरी तौर पर एक फेक प्रोफ़ाइल जैसा ही
तो था, बिना रियल फोटो के, यहाँ तक की
"अबाउट मी" में भी ज्यादा कुछ खास नहीं लिख रखा था उसने।
हाँ ! उसकी पहली बात जो याद है मुझे, जब मैंने अपने एक मित्र की
कविता शेयर की थी अपने वाल पर, कविता वास्तव मे मुझे ऐसी लगी थी जो बेहतरीन थी, पर उसको
बड़ी नागावर गुजरी, और मेरे इनबॉक्स में उसका
मैसेज चमका - "कुमार साब! इस कविता को शेयर करने की वजह?"
उफ़्फ़! एक दम से मैंने चिढ़ कर कहा - क्यों? तुम्हें
क्या परेशानी, मुझे पसंद आया, शेयर किया, बस। और
जिसकी रचना है, मुझे नहीं लगता उसको कोई दिक्कत होगी।
बस ये छोटी सी "तू-तू में-में" जान पहचान की शुरुवात थी , फिर कब और
कैसे वो इतना करीबी हो गया, पता ही नहीं चल पाया। बाद में
उसी मित्र ने बताया, जिसकी कविता मैंने शेयर की थी, कि "इस
बंदे की जिंदगी के कुछ गिने चुने दिन ही बचे हैं, किसी ऐसे
रोग से ग्रसित है।" इस्स !!!!!!
शायद ये जान कर मैं खुद में बदलाव महसूस कर रहा था... उसके पोस्ट पर बरबस नज़र
चली जाती, उसका सबसे बात करना दीखता तो ख्याल आता जरुर की कैसे जीता होगा ये...जानते हुए
भी की... ज़िन्दगी उसे पहले ही दाँव पर लगा चुकी है...
तो बस ऐसे ही हमारे नेट
लाइफ मे शामिल हुआ ये शख्स , हर दिन लाइक्स और छोटे मोटे कमेंट्स के माध्यम से
प्रागाढ़ता बढ्ने लगी, फिर धीरे धीरे म्यूचुअल दोस्तों की संख्या भी बढ्ने लगी।
वो जब भी ऑनलाइन आता तो उसकी ज़िंदादिली व मस्ती अंदर तक खुशी ला देती। उसके शब्दों
से खुशियाँ छलकती थी, बेशक वो दर्द में डूबा होता। एक दम जोकर जैसी जिंदगी, खुद दर्द में डूबकर सबको
खुश देखना, कोई उस से सीखे। कहीं पढ़ा भी था - "वेदना के सुरों में ही स्वर्गिक
संगीत की सृष्टि होती है"
उसके इस ज़िंदादिली के कारण कभी-कभी मुझे संदेह भी होता था कि ऐसा कैसे हो सकता
है, इतने दर्द में जीता हुआ व्यक्तित्व ऐसे खुशियों से बगिया महकाए। मैंने अपने मित्र से इस बात को कनफर्म करने की
कोशिश भी की, क्या वास्तव में उसकी जिंदगी इतनी छोटी है? हमारे एक ग्रुप का अहम सदस्य कब बन गया, ये भी नहीं
समझ मे आया, हर कोई बस इसी बंदे को मिस करते ... । पर हाँ, मुझे उसका कुमार साब या सिन्हा
साब कहना उतनी खुशी नहीं देता था , हर वक़्त लगता, मैं इस से
उम्र मे बड़ा तो हूँ, मुझे इसको भैया संबोधित करना चाहिए। शायद ये मेरी उसके
लिए अपनेपन की वो भावना थी जो मैं व्यक्त ही नहीं कर पा रहा था..पर हाँ मेरे अंदर
उसमे मेरा छोटा भाई दिखने जरुर लगा, कह नहीं पा
रहा था बस...पर कोई नहीं, उस बंदे का सिर्फ खुश होना ही खुशी देता था। मैं मन ही मन
चाहता जरुर था और मानता भी था... एक दो बार अपने मित्र से ही उसका हाल चल पूँछ कर
अपने बड़े भाई होने की जरुरत और अनुभूति को निभा लेता था... इस से ज्यादा कुछ करने के
काबिल भी नहीं था।
पर अब वो अब वो बंदा धीरे धीरे 4-5 दिन में एक बार आता। पर जब भी आता, सिर्फ और
सिर्फ खुशियाँ उसके चारो और बिखरी नजर आती। अब उसके ऑनलाइन दिखने का समय धीरे धीरे
कम होने लगा था, कहीं अंदर से बुरा भी लगता। पर क्या करना, जिंदगी तो
रुकती नहीं, कुछ पल या क्षण के लिए याद आ जाता फिर हम भी अपने दुनिया
मे मस्त हो जाते, अपने दिनचर्या मे भूल जाते थे।
कुछ मित्रों के सहयोग से मैंने उसके शब्दो से बुनी हुई कुछ रचनाओं को एक साझा कविता
संग्रह मे भी शामिल करने की कोशिश की थी, ताकि शायद इसी बहाने वो कुछ पल के लिए सच में मुस्कुराया
हो।
पर जैसे वो हम सब की दुनिया में एकदम से शामिल हुआ था, वैसे ही एक
दम से गायब भी हो गया। वो पिछले करीबन एक महीने से ज्यादा दिनों से नहीं दिखा।
शायद ............ पर इस शायद में कितने सारे सोच शामिल हो जाते हैं, है न......
।
उसके लाइक पेज में सबसे ज्यादा पेज डेथ से रिलेटेड थे... जैसे "लाइफ
आफ्टर डैथ" उसका ज़िन्दगी जीने का ज़ज्बा बस इसी जन्म तक सीमित नहीं था... वो
शायद और जीना चाहता था...जो वो किसी से कह नहीं पता था...उसकी विवशता...उसकी
नियति... सब एक तरफ और उसकी जिंदादिली...सब पर हावी... यही वजह थी की वो कम समय
में ही कई मित्रों का बेस्ट फ्रेंड बस चूका था... पर उसके मन की उथल पुथल का
अंदाज़ा भी कोई नहीं लगा पा रहा था...
और फिर....
उसके पेज में उसके अभिन्न ने पिछले दिनों स्टेटस डाला था "पिछले शनिवार
को वो गुजर गया" ....... उफ़्फ़! उस क्षण का अनुभव शब्दों में बयान करना मेरे
लिए मुश्किल है... मैं उस वक़्त सोच में पड गया खुद के लिए कुछ ज्यादा
दिक्कत सी बात नही पर... मेरा अन्तर्मन कह रहा था, काश वो सच
में फेक प्रोफ़ाइल ही होता, जो एक दिन एक दम से मेरे लिस्ट
से गायब हो जाता, और फिर....
फिर क्या 1074 मित्रों की सूची से एक कम होना, किसको फरक
पड़ता है...
जिंदगी
कहाँ रुकती है.... सच है |
39 comments:
:(:( जिन्दगी सच में नहीं रूकती. पर ऐसे लोग जिन्दगी जीने का जज्बा सिखा जाते हैं.
...ऐसे भी जिया जाता है!...मन को किसी गहराई तक ले जाने की क्षमता इस कहानी में है!..आभार!
सुना था
लाइफ़ आफ़्टर डैथ के बारे में
मगर आज रु-ब-रु हो गया ………तुम्हारे जाने के बाद
ज़िन्दगी जैसे मज़ाक
और मौत जैसे उसकी खिलखिलाती आवाज़
गूँज रही है अब भी कानों में
भेद रही है परदों को
अट्टहास की प्रतिध्वनि
और मैं सोच में हूँ
क्या बदला ज़िन्दगी में मेरी
और तुम्हारी ………जब तुम नही हो कहीं नहीं
फिर भी आस पास ही मेरे
मेरे ख्यालों में ख्याल बनकर
तब आया समझ इस वाक्य का अर्थ
होती है लाइफ़ आफ़्टर डैथ भी ……अगर कोई समझे तो!!!
मुकेश ये ख्याल उभरा तुम्हारे उस अनदेखे दोस्त को श्रद्धांजलि स्वरूप
याद रहेगा वो अपनी लफ़्ज़ों में .कस्तूरी सा महकता हुआ ..ज़िन्दगी तुम इतनी बेदर्द क्यों हो :(
बहुत मर्मस्पर्शी !!!! समझ नही आ रहा, क्या लिखूँ !!! :((
अंतर्मन तक छू गई कहानी ,
कुछ ऐसे भी जीते हैं....
साभार........
shabd nahin hain kehne ko Mukesh ji...
hmm zindagi kahan rukti hai
chal raha hai sab pehle ke jaise hi
magar ek kami ke sath..:'(
हाँ ज़िन्दगी रूकती नहीं ....... पर कुछ है जो ठहर जाता है और आगे की ज़िन्दगी में साथ साथ चलने लगता है .
वह कौन था - जानने की उत्कंठा हुई,ऐसे लोग जो लीक से परे दर्द को ख़ुशी बना जीते हैं,वे बहुत कुछ सीखा जाते हैं .......... पर इतना ही काफी है कि 'अब मैं नहीं हूँ' .... पर है न जीने की राह में
बहुत अच्छी कहानी लिखी है मुकेश जी ... ह्रदय स्पर्शी
सच कहा मुकेश ...ज़िन्दगी कब रूकती है ...पर ऐसे लोग ज़िन्दगी का एक बहुत ही एहम फलसफा दोहरा जाते हैं...ज़िन्दगी बड़ी होनी चहिये ..लम्बी नहीं...उस थोडीसी ज़िन्दगी में इतनी ख़ुशी देदो की अकेले क्षणों में उसका कोई तो साथी हो ...
काश गुज़रा वक़्त लौट पाता .... ज़िंदगी आगे ही बढ़ती है .... 1074 मित्रों की सूची से एक कम होना, किसको फरक पड़ता है... पर जहाँ उसकी जगह थी .....वो जगह आज भी ख़ाली है .... कभी तनहाई में ऐसा लगता है कि वहाँ कोई है ... पर दर्द के अलावा कुछ भी नहीं होता वहाँ ... और घेर लेती हैं मुझे कुछ यादें ...
ni shabd karti aapki aapbiti ....... jyada to nhi parantu do - char meri bhi bat hue thi Rajat se . bahut achche insaan they ... main samjh sakttttti hun tumhaara or neelu ka dukh ...kon kahta hain k yeh aabhasi duniya hain yehe par har koi aabhas nhi hain kuch rishte sach mei dil ke gahre tak jud jaate hain
ishwar Rajat ki aatma ko sukoon de or aap ko or neelu ko is dukh se baahar aane ki shakti ..
Amen
ज़िंदगी नहीं रुकती सच है मगर ऐसे लोगों की कमी हमेशा खलती है ज़िंदगी में,क्यूंकि ऐसे लोग ज़िंदगी में बहुत कम मिला करते है।
जिन्दगी में कुछ लोग मिलते हैं जो हमें जीने का तरीका बता जाते हैं
जब कोई दिल के करीब का जाए तो बहुत दुःख होता है :( :(
मर्मस्पर्शी
मर्मस्पर्शी कहानी
latest postउड़ान
teeno kist eksath"अहम् का गुलाम "
बहुत मर्मस्पर्शी. नहीं मालूम ये कहानी है या सच. पर ये सच है कि किसी के गुजर जाने के बाद उसकी कमी ज्यादा अखरती है. क्या मालूम मृत्यु के बाद का सत्य... लेकिन ऐसा जिंदादिल शख्स सभी की यादों में जीता है और ज़िंदगी जीना सिखा जाता है. मित्र को श्रधांजलि.
झकझोर कर रख दिया इस कहानी ने | रोंगटे खड़े कर दिए | सादर आभार !
:( होता है ...और ज़िन्दगी रुकती भी नहीं .....
बहुत मार्मिक कहानी है ......
उस जिंदादिल इंसान को दिल से नमन
जब ये सोच उभर आये...काश वो एक प्रोफाइल फेक होता... जबकि अक्सर हम चाहते हैं कि... काश फलां प्रोफाइल रियल होता... ये आत्मीयता की वो स्थिति है जो आभासी दुनिया और वास्तविक दुनिया के भेद को ही मिटा देती है... मैं दुआ करती हूँ कि... आपकी संवेदनशीलता बनी रहे...
लोग चले जाते हैं और कुछ दिन बाद जिंदगी फिर यूँ ही चल पड़ती है। तमाम सवालात पीछे छुट जाते हैं बिना जवाबों के ही।
वास्तविकता से परिचित कराती सुन्दर प्रस्तुति।
जिंदगी चलने का नाम है ... जिन्दा दिली बस याद रह जाती है ...
is khabar se related maine aapka status padha tha fb pe... aaj yaha poori daastaan padhi... sach bahut ajeeb si ghatnae hoi hai hamari zindagi mei...
par aaj aapko itne dino baad padhna acchha laga...
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 16/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जिन्दगी .. इस रास्ते पर तो जन्म के साथ ही चलने नही बल्कि दौड़ने लगती है, हम बस समझ ही नहीं पाते जब जाने-अंजाने कोई आगे निकल जाता है तो मन में एक अजीब सा शून्य उभर आता है
... मन को छू गई आपकी यह पोस्ट
सादर
बहुत मर्मस्पर्शी...ज़िंदगी चलती रहती है लेकिन कुछ लम्हे ज़िंदगी को यादगार पल दे जाते हैं...
जिंदगी तो हमेशा चलती रहती है,इसी दौर में न जाने कितने जाने अनजाने सम्पर्क में आते है फिर बिछड जाते है,सार्थक प्रस्तुति.
जिदंगी चलती रहती है..पर निशानों और यादों का टोकरा और भारी हो जाता है...इंसान थक जाता है..पर जीवन अपनी रफ्तार से चलता रहता है सांसों की अंतिम डोर तक।
सच,......भला कब रूकती है जिंदगी........केवल कुछ पल को .... ,कब कौन कब तक इंतजार करता है ?
koi jaane ke baad bhi dhadkata rahe yahi hai life after death..
बहुत मर्मस्पर्शी भाव हैं ... ज़िंदगी कहाँ रुकती है ....
Kambkht jindgii kahan rukti hai..!!!
shayd pahli baar aap ke blog par aaee hun ,puri post padh kar aankhon me aansu aa gaye ,kyun aayen ,smjh nahin aa rha ,shayd aap ke madhym se hum bhi us shksh se jud gaye
मुझे नहीं पता कि ये कहानी है या आपबीती...
काश कि कहानी ही हो...
बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति.
अनु
क्या लिखते हैं भैया आप! बहुत बढ़ियाँ. ये सच में हुआ था क्या?
उफ्फ...मार्मिक
क्या कहूँ ...सिवाए इसके कि उस जिंदादिल इंसान को दिल से नमन और श्रद्धांजलि ....!
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