जिंदगी की राहें

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Thursday, March 28, 2013

मैं व मेरी परछाई





10 वाट के बल्व की हलकी रौशनी
हाथो में काली चाय से भरा
बड़ा सा मग
बढ़ी हुई दाढ़ी
खुरदरी सोच व
मेरी, मेरे से बड़ी परछाई !

है न आर्ट फिल्म
के किसी स्टूडियो का सेट
एवं मैं !
ओह मैं नहीं ओमपुरी
जैसा खुरदरा नायक !

परछाई से मुखातिब
हो कर -
तू कब छोड़ेगा मुझे
'उसने'
'उसकी मुस्कराहट ने'
और 'उसके साथ की मेरी ख़ुशी'
सब तो चले गए ....

फफोले आ गए होंठो पर
मुस्कुरा न पाने की वजह से
पर तू ...
रौशनी दीखते ही
मेरे वजूद से निकल पड़ता है
और रौशनी छुटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'
वजूद मेरा खुरदडा थोडा
और थोडा कड़वा-गरम
जैसे ड्रामेटिक क्लाइमेक्स के साथ
मैं व मेरी परछाई ............!!


41 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

बढ़िया विचार |

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Unknown said...

Parchaayi sadaa hamara sath deti hai n especially tab jab sab sath chodh jaate hain :)

ऋता शेखर 'मधु' said...

और रौशनी छुटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'

bahut hi sunder !!

neetta porwal said...

अगर कहूँ कि कविता बहा ले गयी अपने साथ तो शत प्रतिशत सत्य होगा .... साकार होती आहिस्ते आहिस्ते अपनी छाप छोडती बेहतरीन कविता ... कई अंश बहुत ही सुन्दर बन पड़े हैं .... बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..वाह ....... !!

कालीपद "प्रसाद" said...

सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ- बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .
latest post हिन्दू आराध्यों की आलोचना
latest post धर्म क्या है ?

अज़ीज़ जौनपुरी said...

रछाई से मुखातिब
हो कर -
तू कब छोड़ेगा मुझे
'उसने'
'उसकी मुस्कराहट ने'
और 'उसके साथ की मेरी ख़ुशी'
सब तो चले गए .... सुन्दर अभिव्यक्ति

Girish Kumar Billore said...

कमाल का बिम्ब वाह
है न आर्ट फिल्म
के किसी स्टूडियो का सेट
एवं मैं !
ओह मैं नहीं ओमपुरी
जैसा खुदरा नायक !

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत बढ़िया.....
धीमी आंच पर पकी हुई कविता...

अनु

रंजू भाटिया said...

बहुत ही बढ़िया लगी यह रचना ..सच के बहुत करीब ...ग्रेट

Rohit Singh said...

हमका तो लगा कि गुरुदत्त जी आकर खड़े हो गए हैं....काहे कि अइसा सिचुएशन क्रिएट करके उसका दृश्य तो डायरेक्टर ही न खीचता है। परछाई हाय रे तेरी कहानी

अशोक सलूजा said...

मैं व मेरी परछाई ............अकेले में बतियाते हैं.हसते हैं ,रोते हैं और फिर गाते हैं.और फिर एक हो जाते हैं ......
खुबसूरत अहसास !
शुभकामनायें!

vandana gupta said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (30-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर said...

ओह मैं नहीं ओमपुरी

sandhya jain said...

फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'
वजूद मेरा खुरदडा थोडा
और थोडा कड़वा-गरम
जैसे ड्रामेटिक क्लाइमेक्स के साथ
मैं व मेरी परछाई ....बहोत ही सुंदर अभिव्यक्ति

sandhya jain said...

फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'
वजूद मेरा खुरदडा थोडा
और थोडा कड़वा-गरम
जैसे ड्रामेटिक क्लाइमेक्स के साथ
मैं व मेरी परछाई .....bahut sunder

nayee dunia said...

परछाईयाँ साथ ही तो रहती है ....बहुत बढ़िया

रचना त्यागी 'आभा' said...

खुरदरी सोच व
मेरी, मेरे से बड़ी परछाई !.....
और
रौशनी दीखते ही
मेरे वजूद से निकल पड़ता है
और रौशनी छुटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में.........

उम्दा पंक्तियाँ बन पड़ी हैं !! वास्तव में पूरी कविता ही खूबसूरत है :))

Neeta Mehrotra said...

खुबसूरत रचना ... मन को सीधे छू गयी

शिवम् मिश्रा said...

शीर्षक दिखते ही सब से पहले दिमाग मे आया ... मैं व मेरी परछाई - अक्सर साथ रहते है ... ;)


बाकी तो हुज़ूर आप भी जानते ही है कि आज आप कमाल किए है ... अब हम भला क्या कहें ... फिर भी ...

वाह हुज़ूर वाह !!

जय हो मुकेश भाई !


आज की ब्लॉग बुलेटिन 'खलनायक' को छोड़ो, असली नायक से मिलो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Anju (Anu) Chaudhary said...

परछाई ....हम सब की जिंदगी का सच

प्रवीण पाण्डेय said...

कम से कम साथ तो सदा निभाती है।

Manav Mehta 'मन' said...

बहुत बढ़िया

सुनीता शानू said...

मुकेश यह कहना गलत नही होगा कि ये एक बेहतरीान अहसासों से लिपटी हुई रचना है एक ही साँस में पढ़कर उतर जाता है इंसान कुछ और माँज दिया जाये तो क्या कहने। बहुत-बहुत बधाई मज़ा आ गया पढ़ कर।
शानू

Sadhana Vaid said...

बहुत ही खूबसूरत अहसासों से सजी एक बहुत ही खूबसूरत रचना ! मन को गहराई तक़ छूती एक अनुपम कृति ! शुभकामनायें !

रश्मि प्रभा... said...

तुम और तुम्हारी परछाईं - दोनों के भावनात्मक वजूद में साम्यता है, किसी के जैसा नहीं, अपने जैसा अपनी यात्रा में

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

Unknown said...

रौशनी दीखते ही
मेरे वजूद से निकल पड़ता है
और रौशनी छुटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में.........
हर साया रोशनी का मोहताज होता है ..... :)

वाणी गीत said...

साए का अस्तित्व रौशनी से ही है !

Saras said...

रौशनी दीखते ही
मेरे वजूद से निकल पड़ता है
और रौशनी छुटते ही
फिर से
सिमट आता है मेरे आगोश में
मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'....तब तो सच्चा साथी हुआ न ......जो बुरे वक़्त पर साथ रहे ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत बढ़िया ...एक अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत कविता

दिगम्बर नासवा said...

अपनी ही परछाइयों में खुद का एहसास ढूंढती .. विचार की तरह फैलती रचना ...
बहुत खूब ...

Divine Anand said...

बहुत ही बढियाँ रचना है. बिलकुल किसी आर्ट फिल्म जैसा...चाय की चुस्की के साथ ढलता हुआ सूरज और ये कविता...क्या बात हो..?

Divine Anand said...

बहुत ही बढियाँ रचना है. बिलकुल किसी आर्ट फिल्म जैसा...चाय की चुस्की के साथ ढलता हुआ सूरज और ये कविता...क्या बात हो..?

Cloud said...

khubsurat ...

Unknown said...

मेरे इतने करीब की
समा जाता है मुझमे
एक अहसास की तरह
'मैं हूँ न तेरे साथ'

सुन्दर अभिव्यक्ति

अलका गुप्ता 'भारती' said...

वाह्ह्ह्हह्ह सुन्दर प्रस्तुती ......

shikha varshney said...

क्या बात है ...काली चाय का मग, ओमपूरी सा खुदरा नायक, और ड्रामेटिक क्लाइमेक्स क्या गज़ब के बिम्ब हैं विचारों की अभिव्यक्ति लिए.
बहुत खूब.

Dr. Vandana Singh said...

परछाई और आईना अक्सर ही कविता मे ताक झांक करते है... और व्यक्तित्व के अनछुवे पहलुओं को भी उजागर कर देते है...ऐसी अभिव्यक्ति सहज नहीं होती... बहुत मर्मस्पर्शी बन पड़ी है आपकी कविता... अनेकानेक शुभकामनाए,,,:)

डॉ. जेन्नी शबनम said...

परछाईं... सिर्फ मेरी, मेरी ही होती, मेरे लिए मेरे साथ... गज़ब की अभिव्यक्ति, बधाई मुकेश.

Jyoti khare said...

बहुत सुन्दर रचना

aagrah hai mere blog main bhi sammlit hon khushi hogi

jyoti-khare.blogspot.in