मेरे अंदर का बच्चा
क्यूँ करता है तंग
अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।
जब मैं था
खूबसूरत सा गोलमटोल बच्चा
तो मेरे अंदर का बच्चा
बना हुआ था पूरे घर का प्यारा।
दादा-दादी का दुलारा |
जब मैं हो गया था जवान
थी उम्र कुछ कर दिखाने की
थी उम्र प्यार की, रोमांस की
पर, वक़्त की जरूरत
व कमियों मे खोने लगा मैं
लेकिन वो अंदर का बच्चा
भर देता एक अदम्य ताकत मुझमें
लड़कर थके हुए जीवन
के शुरुआत मे भी
सँजो कर रखता था
से मुझको ।
हर एक नए दिन मे
मेरे अंदर का वो साहसी बच्चा
प्यार से कहता
"आज तू जरूर जीत पाएगा"
पर वो बात थी अलग
सुबह की जीत
बन जाती
शाम की हार |
फिर भी वो बच्चा
हर दर्द व विषाद के बाद भी
मुझमे भर देता खुशी
कुछ क्षणिक मुस्कुराहट
"कल जीतेंगे न" |
मेरे अंदर का बच्चा
क्यूं हर बार दिल से बनाये अपने को
क्यों दिखाता है गुस्सा
क्यों सँजो कर रखता है प्यार ।
आज़ भी वो बच्चा
कभी कूकता है कान मे
तो कभी खींचता है बाल
इस कठोर से जीवन मे भी
कभी तो लाता है मासूमियत
तो कभी कभी
मचलता है उसका दिल
भर देता है छिछोरी हरकत
मेरे अंदर का ये कमजोर बच्चा
पर छोटे से दुख मे भी कराहता है
छटपटता है ..।
ढूँढता है .। किसी को
पर किसको ? पता नहीं ?
मेरे अंदर का बच्चा
क्यूँ करता है तंग
अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।
37 comments:
वाह...............
बेहतरीन अभिव्यक्ति........
बहुत बढ़िया.
ये अन्दर का बच्चा बचा रहे बस काफ़ी है वरना ज़िन्दगी कभी कभी तो बचपन कहाँ गया जान भी ना पाती है
सुंदर प्रस्तुति ... एक बच्चा सबके अंदर रहता है ....
हम सबके अंदर एक बच्चा है..जो हमें इंसान बनाये रखता है.
सुन्दर प्रस्तुति.
हर इन्सान में एक शिशु छिपा होता है और हमे पवित्र बनाये रखता है छल प्रपंचों से।
मन का बच्चा हर पल कुछ न कुछ नया करने को उत्सुक रहता है।
भावमय शब्द संयोजन लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
ऐ जिंदगी
मैं रुका रहा
पर मुड गई तुम्हारी
डगर
वन-झरने सी तुम
मुझे भिगोती रही ...भिगोती रही |....अनु
हर दर्द व विषाद के बाद भी ,
मुझमे भर देता खुशी ,
पर छोटे से दुख मे भी ,
ढूँढता है .... किसी को ,
पर किसको ? पता नहीं ?(किसी भी अपने को)
हर इंसान में एक छोटा बच्चा सदैव रहे , तो जिंदिगी कितनी आसान होगी .... रचना समझा गई.... !!
बहुत अच्छी रचना।
मन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति..... हर में बच्चा तो रहता ही है....
अरे वाह! क्या बात है.... बढ़ी लिखा है मुकेश जी...
एक बचपन ही तो है जिसकी ख्वाहिश हर इंसान को होती है...
जब हम हारते नहीं.. जीतते नहीं.. रोते नहीं.. हँसते नहीं.. पर फिर भी खुश रहते हैं..
यह बच्चा अगर मरते दम तक जिंदा है तो हमने ज़िन्दगी सही जी हा..
आपकी कविता एक दूसरी कविता की पंक्तियाँ याद दिला गयी...
मेरे अंदर का बच्चा
बड़ों की दुनिया देखकर
बड़ा होने से डरता है..
सबके अंदर एक छोटा बच्चा छुपा रहता हैं ..जो कभी मचलता तो कभी चहकता हैं ..कभी हारता भी हैं तो कभी जीतता भी हैं ..हम सब इसी हार -जीत के खेल में कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला .....बहुत सुंदर कविता जैसे दिल निकाल दिया हो पन्नो पर और रक्त की स्याही से अपने अरमान लिख दिए हो ..बहुत खूब मुकेश ...
bahut hi khusurat abhivykti aur sachhee si prastuti.
ये छोटा बच्चा वाकई बहुत परेशान करता है
वही छोटा बच्चा तो हिम्मत है और हुडदंग मचाके कहता है , अभी तो मंजिलें और भी हैं ,,,,
hum sabke ander yeh chota sa bacha rehta hai n iske huddang ki vajah se hi jivan mein ras hai varna jivan neeras bann jaaye !!!!!!!!!!!!!!!
यह बच्चा ही तो है जो जीवन को सोल्लास बनाए रखता है । बहुत सुन्दर कविता
शोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
प्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
meer andar ka bachcha..jo aaj bhi zinda hai....
waah...bahut hi sunder lekhan
abhaar
naaz
जब तक अन्दर का बच्चा जीवित है तभी तक सार्थक जीवन है...बेहतरीन प्रस्तुति..
बहुत बढ़िया मुकेश भाई... अपने भीतर के बच्चे को बचा रहने दें...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/5.html#comments
अच्छा है जो हर दिल में बसा रहे बच्चा और कायम रहे थोड़ी बहुत मासूमियत इंसान में...
बेहद जरूरत है...
आज के दौर में... शुभकामनाएं...
बच्चा जीवित हो उठा आपकी रचना के साथ,सभी के अन्दर छुपा होता है और होता है सबसे नटखट,सबसे मासूम.खुबसूरत रचना....
Bahut khoobsurat hai ye bachcha ...mujhe milna hai usase
bahut badhiya kavita...bhitar ke bachha ko bachha hi rahne den...
मेरे मन है कितना सच्चा
रहता है इस में एक बच्चा
बचपन कब का छूट गया
केशोर्य भी तो रूठ गया
आज भी यह मचलता है
जब भी होने लगती है जिन्दगी बदरंग
करने लगता है हुढ़दंग
...........
सपने अपने अब अपने कहा रहे
अपने भी अपने अब अपने कहा रहे
में वोह भी नही जो रही थी कभी
बदल गयी है दुनिया मेरी सभी
आँखे बंद करके देखा करती हु नवरंग
जब मेरा बचपन करता था हुढ़दंग
.............
जी लेते है हम जिन्दगी अपनी
बच्चे की मानिद
जब पाते है गोदी में
एक अपना सा बचपन
खुश होकर तालिया
बजा कर
कूकता है तब
मेरे अंदर का बच्चा
पूरे होते है सपने उसके सतरंग
मेरे अंदर का बच्चा
करता है तंग
अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।:)))))))))))))))))))))) बहुत अच्चा लिखा मुकेश सिन्हा जी आपने
Ranju Bhatia मेरे अंदर का ये कमजोर बच्चा
पर छोटे से दुख मे भी कराहता है
छटपटता है ..।
ढूँढता है .। किसी को
पर किसको ? पता नहीं ?...बहुत सच्ची रचना ...सही में तलाश करता है हर दिल .और हर दिल बच्चा है .यदि नहीं तो ज़िन्दगी नीरस हो जाए ..बधाई खूबसूरत रचना के लिएTuesday at 17:33 · UnlikeLike · 2
Indu Puri Goswami hm sbhi me hota hai yh bchcha. hmi use daant dptkr chup baitha dete hain.dheere use hm.................wo hme bhoolne lgta hai. pr ise jinda rkhna. jinme mra wo insaan kahlane layk hi n rhe. tumhare us bchche ko dekha hai maine. tumhari aankhon se jhankta hai.jhgde me dikhai deta hai 'didiya! tuuuuu.....' kahne wala bhi is poori duniya me ek wahi to hai. wo hmesha rhe jaisa hai waisa hi.....usi roop me. bda kroge to duniya ke daanv pech seekh jayega. :)Tuesday at 21:31 · UnlikeLike · 1
Riya Love mast pic .....aur jabardast swaaal....... aakhir ye baccha kiyun chipka h mujhse .......main to kab ka bada hogya ......fir kiyun .....bachpna dikhata h .....jahan tahan .... ????
par acchhha hi h .....kuch pal is bacche wale type bita k acchhha acchha sa lagta h ....
kuch pal to masumiyat ...sacchayi ....nichhal bhaw....selflessness...saath hoti h :)Tuesday at 21:21 · UnlikeLike · 1
Riya Love mast pic .....aur jabardast swaaal....... aakhir ye baccha kiyun chipka h mujhse .......main to kab ka bada hogya ......fir kiyun .....bachpna dikhata h .....jahan tahan .... ????
par acchhha hi h .....kuch pal is bacche wale type bita k acchhha acchha sa lagta h ....
kuch pal to masumiyat ...sacchayi ....nichhal bhaw....selflessness...saath hoti h :)Tuesday at 21:21 · UnlikeLike · 1
Shweta Agarwal मेरे अंदर का बच्चा
क्यूँ करता है तंग
अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग!!
waaaaaaaaaahh bahut hi sunder aur sachi bhawnaon par aadharit hai aapki ye rachna.....aapko badhayi aisi practical base par dilse rachna ko apne shabdon mein dhaal kar bahut hi badhiya pesh kash.....aapko badhayi12 hours ago · UnlikeLike · 1
दरअसल सारी लाध्यी इस भीतर के बच्चे के लिये ही है न मुकेश . मेरे मन की कविता .. ३ हग्स मेरे तरफ से.
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