जिंदगी की राहें

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Saturday, March 24, 2012

आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा!!


दृश्य एक :-
बम और गोले की खेंप
पहुँच जाएगी समय पर
ढा दो दहशत
बिछा दो लाशें
बजा दो ईंट पर ईंट
फ़ाड़ दो सत्ताधारी सरकार के कान
फोन पर आ रही थी -
.... फुसफुसाहट भरी आवाज...!


दृश्य दो :-
भड़ाम!!
कुछ लाल मांस के चीथड़े
आसमान में उड़ते
हलकी सी ख़ामोशी
और फिर
खून, खून..
खून से लथपथ लाशें..
व कराहता शरीर
दहाड़ मारती आवाजें
और फिर नीरवता
आतंकवाद का खूनी चेहरा
डरावना........!! भयावह !


दृश्य तीन :-
हजारों की भीड़
साथियों !!
वक्त आ चुका है -
अब हम न झुकेंगे
कमर कस कर करेंगे
मुकाबला
चुन-चुन कर लेंगे बदला
इस निकम्मी सरकार को भगाओ
तालियाँ...
गड़गड़ाहट...!!!


क्या समझ में आया??
तीनो दृश्यों से दिख पाया??
आतंकवाद का  राजनीतिक चेहरा !!

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............

54 comments:

Dr. Vandana Singh said...

आतंकवाद का खूनी चेहरा
डरावना........!! भयावह !

सही कहा आपने... मानव की हठधर्मी से व्याकुल मानवता...डरी..सहमी... पर इस समस्या पर जीत हासिल करनी है... जीतना ही होगा...यें केन प्रकारेण...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Vandana hamne aatankwad aur rraaajniti ke gathjor ko deekhane ki koshish ki thi...!!
thanx for comment..

Kailash Sharma said...

आज आतंकवाद और राजनीति एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं..बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...

Dr. Vandana Singh said...

मुकेश... चाहें राजनीति हो या आतंकवाद..,मानवीय व्यवहार... हठधर्मी शब्द से अभिप्राय आप शायद समझे नहीं... शुभकामनाएं..:)

shikha varshney said...

आतंकवाद और राजनीति समानार्थी शब्द लगते हैं अब तो.
बेहतरीन प्रस्तुति.

Archana Chaoji said...

शिर्षक ऐसा भी हो सकता है ---
राजनीति का आतंकवादी चेहरा!!

प्रवीण पाण्डेय said...

मानव इतिहास का एक वीभत्स रूप, आतंकवाद।

सदा said...

सार्थकता लिए सटीक लेखन ...आभार ।

***Punam*** said...

एक वीभत्स रूप, आतंकवाद..!

vandana gupta said...

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............
काश इतनी सी बात ये सियासतदान समझ पाते …………मगर सब जगह राजनीति चलतीहै फिर चाहे वो लाशों पर ही क्यों ना करनी पडे।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Shastri sir.. bahut bahut dhanyawad!!

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत अच्छा लिखे हैं सर!


सादर

Anju (Anu) Chaudhary said...

देश की राजनीति में कुछ नहीं बदलेगा....
अगर कुछ बदलना होता तो अब तक बदल चुका होता ...आतंकवाद अब पहले से भी ज्यादा हावी हो चुका हैं राजनीति में ....

sangita said...

सही और मानव की जिद्द की पराकाष्ठा का बखूबी प्रदर्शन किया है आपने।बधाई स्वीकारें और मेरे ब्लॉग पर भी अभिवादन स्वीकारें आभार.

SANDEEP PANWAR said...

सिन्हा जी बेहद ही खतरनाक माहौल हो गया है आज का, कही भी कोई सुरक्षित नहीं लगता है।

Aruna Kapoor said...

आतंकवाद के खौफ से सारी दुनिया ग्रसीत है...इसका नेस्त-नाबूद होना बहुत जरूरी है!

Pallavi saxena said...

सही है आतंकवाद और राजनीति अब एक ही सिक्के के दो पहलू हो चुके हैं सार्थक एवं सटीक रचना...

रचना प्रवेश said...

सही लिखा आपने ...आज आतंकवाद और राजनीति एक दूसरे का पर्याय बन गए है ....काश तस्वीर का रूप बदल जाता

Madhuresh said...

Aisi raajneeti to bahut hi gambheer

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहद सार्थक और गंभीर लेखन....

शुक्रिया इस नायाब प्रस्तुति के लिए..
सादर.

मेरा मन पंछी सा said...

आज की राजनीती में मानव कल्याण की सोच कम और आतंक बढ़ता ही जा रहा है...इस बात को बहुत सार्थक रूप में व्यक्त किया है आपने.....
बहुत ही बढ़िया रचना...

रश्मि प्रभा... said...

excellent

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कटु सत्य को कहती अच्छी प्रस्तुति ... आतंकवाद को राजनीति ही पाल रही है ...

palash said...

राजनीते का मुखौटा हटाती- सुन्दर रचना...
बारुद के ढेर , बुझा सकते है माना घरों के दीप, तो क्या, इक चिगारीं ही काफी है आतंकवाद की हस्ती मिटाने को..........
राजनीति भी हमसे है , और राजनेता भी हमी से है
ये और बात कि हम ही खामोश खामोश से बैठे है....

babanpandey said...

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............
wish like this situation .//

रेखा श्रीवास्तव said...

ये आतंकवाद बगैर राजनीतिक पनाह के पलता नहीं है, यही कारण है कि ये नेता और राजनीति में आतंकवादियों को सरकारी मेहमान बना कर उनको पाला जा रहा है. जिन्हें फाँसी दिया जन चाहिए उन्हें हम पाले हुए है किस लिए ? क्योंकि होने वाले धमाकों और उनमें मरने वाले लोगों में इन जिम्मेदार लोगों और राजनेताओं के परिवार का कोई नहीं होता है.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

राजनीतिक आश्रय ही तो पनपने का मौका देता है इन्हें ...... कटु सत्य

Saras said...

बहुत सुन्दर मुकेशजी ....दुःख होता है इन लोगोंकी इन्सेंसिविटी देखकर .....कैसे कोई इन परिस्तिथियों को भुना सकता है ....सार्थक रचना !

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सार्थक चिंतन...
हार्दिक बधाई...

सूफ़ी ध्यान श्री said...

कटु सत्य की अभिव्यक्ति ....विचारणीय और चिंतनीय

दर्शन कौर धनोय said...

आंतंकवाद अब हमारी नसों में धुल चूका हैं ..और खून बनकर बह रहा हैं ...अब किसी को कुछ नया नहीं लगता ,कुछ खुर्स -पुसर होती हेई फिर सब शांत !

सूफ़ी ध्यान श्री said...

कटु सत्य की अभिव्यक्ति ....विचारणीय और चिंतनीय

अरुण चन्द्र रॉय said...

बहुत बढ़िया मुकेश जी... आपकी श्रेष्ठ कविताओं में एक... कविता में भाव है.. आक्रोश है... सोच है...

Meenakshi Mishra Tiwari said...

मैं सहम जाती हूँ उन द्रश्यों को देखकर.... जिनमे कोई किसी का बेटा/बेटी ... कोई किसी का पति/पत्नी ... कोई किसी की माँ/पिता... भाई/बहन ....होता है...

दिल दहल जाता है.... काश की तीसरा द्रश्य सच हो जाये.... और हम सब एक हो जाएँ...

बहुत अच्छे विचार

शिवम् मिश्रा said...

इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - बर्गर नहीं ककड़ी खाइए साथ साथ ब्लॉग बुलेटिन पढ़ते जाइए

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सही कहा आतंकवाद के पीछे राजनीतिक चाल भी होती है. सरकार, सत्ता, पक्ष-विपक्ष, नेता, सबकी महत्वाकांक्षायें और किसी तरह इन सबको काबू में करने के लिए कूटनीतिक चाल और फिर आतंकवाद का सहारा... बहुत सटीक व्याख्या किया है, शुभकामनाएँ.

Rajiv said...

Bahut sahi kaha.

निर्झर'नीर said...

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............काश!!!!!!!!!!!!!!

Rachana said...

क्या समझ में आया??
तीनो दृश्यों से दिख पाया??
आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा !!

काश!! आतंकवाद के डोर से
नहीं जुड़ी होती राजनीति
तो कायम हो पाता
अमन और चैन...
सिर्फ चैन.............
kya khoob chehra dikhaya hai kamal hai
rachana

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Chanda Jaiswal: kaaashhhh ... is kaash ne hi tabaah kar diyaa hamaare desh kO5 April at 13:57 · UnlikeLike · 1

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Rashmi Bhardwaj: बहुत अच्छी कविता ... वाकई आजकल राजनीति और आतंकवाद समानार्थी हो गए हैं5 April at 19:18 · UnlikeLike · 1

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Shweta Agarwal: Sahi.Kaha Bilkul...Par Kaaaaasssshhh Ke Aisa Sach Mein Ho Pata....Aapki Soch Ko Salaam Mukesh ji....Bahut Gehri Baat Hai Aur Aapne Ek Kaash Mein Keh Dii......waaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaahh....Bahut Khub.6 April at 17:36 · UnlikeLike · 1

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Alok Mittal: ye to sab jante hai ki aatankwad kitna bhayanak hai...our unko rajniti ka kitna sahra hai....bhale hi aam janta mare.....bahut badhiya likha aapne Mukesh Kumar Sinha ji7 April at 18:58 · UnlikeLike · 1

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Roli Bindal Lath: rajneeti me se neeti gayab hai abMonday at 10:31 · UnlikeLike · 1

Anupama Tripathi said...

बिल्कुल सच्ची तस्वीर खींच दी ....!!
बहुत सुंदर लिखा है मुकेश ...!!

vijay kumar sappatti said...

this is an outstanding work. kudos yaar

kuldeep thakur said...

आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 28/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

सूचनार्थ,
आपकी यह बेहतरीन रचना शुकरवार यानी 28/12/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जाएगी…
इस संदर्भ में आप के सुझाव का स्वागत है।

सूचनार्थ,

nayee dunia said...

अच्छी और सटीक रचना ........

Bhavna....The Feelings of Ur Heart said...

aaj kal to rajneeti aur aatankvaad ka fark hi pata nahi chalata .... achhi prastuti ki hai aapne iss kavita ke jhariye

Asha Lata Saxena said...

पूर्ण रूप से सही बैठती रचना कल के बम ब्लास्ट पर |
आशा

shalini rastogi said...

आज के परिपेक्ष्य को सही रूप में चित्रित करती रचना !

Sarika Mukesh said...

बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति...।बधाई स्वीकारें!

Subhash Chandra said...

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति एवं उदगार हैं और इस बारे में की जाने वाली टिप्पणियां भी काफी सार्थक हैं लेकिन इस प्रकार की टीका-टिप्पणी करने से आतंकवाद मिट नहीं सकता है। हम मात्र एक दूसरे को ढ़ाढस बंधाते हैं लेकिन आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने से सभी कतराते हैं... और उन लोगों में शायद मैं भी शामिल हूं।