जिंदगी की राहें

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Wednesday, October 9, 2024

खिड़की




खिड़की के पल्ले को पकड़े
कोने से
जहाँ से दिख रहा था
मेरा वर्गाकार आकाश
मेरे वाला धूप
मेरा ही सूरज व चन्दा भी
मेरी वाली उड़ती चिड़िया भी...

दूर तक नजर दौड़ाए
छमकते-छमकाते पलकों के साथ
आसमान की ओर नजरें थमी
तो जेहन खन-खन बजता रहा
घनघनाती रही बेसुरी सांसे
पर लफ्ज नहीं बुदबुदाते
मोड़कर पलकें
जमीं की ओर
लौटती रही आंखें

ऐसे में, बस
इंतजार अंतहीन हुआ करता है

- मुकेश



Monday, September 9, 2024

~ प्रणय निवेदन, ऐसी भी ~

 


बेशक कभी जाहिर न कर पाया
कि करता हूँ प्रेम
या है कोई अलग सा आकर्षण
हां, कभी कहा भी तो वो लगा
ऐसे जैसे
दिया गया हो मित्रवत एप्लिकेशन

पर चाहतों का गुब्बारा उड़ता रहा
चाहते न चाहते
अटकते रहे, स्क्रॉल करते हुए
बातों मे आदरसूचक शब्दों के साथ भी
ढूंढते रहे, गुलाबी चमक
उम्र के ढलान पर
जीते रहे जिंदगी की आभासी शरारतों को

हाँ, मन के अंदर से हर वक्त आई
हल्की सी व्हिसपर करती हुई आवाज कि
किसी शाम बैठेंगे तुम्हारे साथ
चाय की चुस्कियों संग
और फिर कहेंगे धीमे से
कल भी आना, आओगी न...

और ये शाम बराबर आए,
बस इतनी सी रहेगी उम्मीद
ठीक न !

- मुकेश कुमार सिन्हा



Tuesday, July 16, 2024

लव एंड लस्ट


वर्षों की पहचान, अंतरंगता और 

स्नेहिल सम्पर्क की सीढियों पर थम कर 

आया एक प्रश्न।

ये लव है या है लस्ट।

प्रेम व वासना के महीन अंतर में 

कहीं तैरने लगा एक जरुरी प्रश्न

पर क्या ही कहूँ कि अगर 

है दोनों जरूरी, है अन्योन्याश्रय


क्योंकि वर्षों की अंतरंगता के

बाद स्वीकारा तो है तुमने कि

कहीं हुआ तो नहीं प्रेम?

शायद ये एहसास है 

या वासना का ही उद्गार था

जो प्रश्न बन कर कौंध गया।


प्रश्न तो कभी कभी

बस होते हैं जरूरी

क्योंकि प्रेमिल संवाद को देते हैं ठौर।

ठीक कुछ ऐसा जैसे 

मेरे सपनीली अँधेरी शाम में

तुम हुई थी करीब

खोती हुई चेतना को मेरे कांधे पर रख कर

और मैं महसूस रहा था

उन गर्म सांसों से भरी आहों को

जो कॉलर के पास बनियान को भिगोती रही

और भीगता मेरा मन

कह ही उठा - ये वासना ही तो है

जो जी रहा हूँ इस खास पल को

तभी सपने ने टूट कर पूछा 

लव या लस्ट?


इस अजीब से प्लेटोनिक पल में

बेशक़ जी रही थी वासना

पर ढूंढ रही थी प्रेम को।

तभी तो तुम्हारे कांपते लबो ने कहा

मुझे वासना नहीं,

तुम्हारा प्रेम चाहिए।

और, और...मिला था एक बोसा।

शायद गर्माहट भरी साँसों ने

मेरे होंठों को काट लिया था।


सपनों को कहाँ पता होता है

किसी भी भावों का

वो तो गर्म चाय के केतली की

वो वाष्प है, जिसमें स्वाद नहीं होता

पर कह ही उठते हैं

आह, इस चाय पर मर जाऊं


पता है नहीं मिलेगा कभी

वो ख़ास आगोश

कि खुद से पूछूं -

जी रहा हूँ 'लव या लस्ट'

पर, पर सांसों की तरंगदैर्ध्य

हर उस पल में रही उच्चतम बिंदु पर

जब जब तुम थी कहीं 

मन के बेहद करीब।

हां, प्रेम को चाहिए गर्माहट 

है मन को जरूरत

तुम्हारी बांहों का आगोश 

हथेलियों ने हर बार 

खुद ही एकदूसरे को रगड़ कर

पैदा की है चिंगारी

चादर की सिलवटों ने भी 

उसी क्षण पूछा था

- क्या बॉस, लव या लस्ट।


अंततः बस कहना ही पड़ा

कितनी खूबसूरत हो तुम

ये तो कहलायेगा -  सिर्फ प्रेम।

एक यादगार तस्वीर 





Friday, March 29, 2024

चमकते रहना !!

 


दूर तक पसरा है कुहासा
शायद है असर प्रदूषण का
पर फिर भी
छमकती दिख रही हो तुम ही
कहीं ऐसा तो नहीं
कुहासे के मध्य
जैसे फ़ैल गया हो
सूर्यप्रकाश का उजास
पुरनम के चांद सा खिला सूरज
दिन निकल आया है
पर क्यों मन कहता है
दिन सिमटा रहे
हां, तुम्हारे होने का अहसास भर से
गरमाया हुआ है कमरा
कह रहा मन, कि हो कुछ ऐसा
जैसे कुहासे के बदरियों के बीच
यदाकदा आ रही हो
कुछ मोटर कारें कुछ ट्रकें कुछ बाइक्स भी
कर्तव्य-पथ पर दूर से नजदीक
और उनके लाइट्स की चकमक ऐसी
जो बता रही हर पल
तुम चमकती हो मेरे अन्दर
बेशक लोधी रोड से गुजरते हुए
लगा ऐसे जैसे, कुहासा हो चुका परिवर्तित
कोहरे में
पर घने होते नम बूंदों पर भी
होती है किरणें अपवर्तित या परावर्तित
फिर तुम्हारी चमक तो है मेरे अन्दर तक
समाहित
क्या करूँ, इतना ही कहूँगा
कुहासा हो या अँधेरा
चमकते रहना
आखिर तुम्हारे प्रिज्मीय गुणों में
तुमने कुछ चुम्बकत्व के गुणों को भी
सहेजा है
तभी तो अपने उतर-दक्षिण दिशा से इतर
आकर्षित होता रहा हूँ हर पल
चकमक प्रकाश हो मेरी तुम
उर्वर ही रहेंगी मेरी कल्पना
फिर से बोलूं ?
चमकते रहना !!
~ मुकेश